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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इन सब आपत्तियोंको ध्यानमें रखकर संशोधित किया गया तो सत्याग्रहका फिरसे चालू किया जाना निश्चित है।

गांधीजीके स्वाक्षरों में अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ५७७४) की फोटो-नकलसे।

४१. भेंट : 'स्टार' के प्रतिनिधिको[१]

[जोहानिसबर्ग
अप्रैल २८, १९१३ या उससे पूर्व]

'स्टार'के एक संवाददाताको भेंट देते हुए श्री गांधीने बताया कि प्रवासी विधेयक भारतीय समाजको तबतक ग्राह्य नहीं होगा जबतक उसमें मौजूदा अधिकारोंकी रक्षा तथा प्रजातिगत भेदको समाप्तिके सम्बन्धमें समझौतेका मूल सिद्धान्त समाविष्ट नहीं किया जाता।

यह बिलकुल सच है कि फ्री स्टेटके भारतीय समाजकी कोई स्थानीय मांगें नहीं है। और यह भी सच है कि फ्री स्टेटमें किसी भी भारतीयके प्रवेशकी सम्भावना नहीं है, परन्तु हम चाहते है कि सिद्धान्त-रूप में प्रवेशका अधिकार सामान्यतया सुरक्षित रहे। पहले विधेयकके पास न होनेका कारण यह था कि सरकार इन मुद्दोंको मानते हुए एक कानून बनाना चाहती थी। पिछले वर्ष के विधेयक में इसकी व्यवस्था थी, और हमने यह भी स्वीकार कर लिया था कि जो भारतीय फ्री स्टेटमें प्रवेश करेंग उनपर स्थानीय निर्योग्यताएँ जैसे अचल सम्पत्ति रखने, और खेती-बारी तथा व्यापार करनेका निषेध--लागू होंगी। यदि हम मौजूदा विधेयकको मान लेते हैं तो निश्चित ही भारतीयोंकी स्थिति सत्याग्रह शुरू होनेसे पहले जैसी थी, उससे भी कहीं अधिक बुरी हो जायेगी।

ऐसा लगता है कि सरकारको इच्छा प्रान्तीय कानूनकी सर्वाधिक बुरी बातोंको एक जगह ले आनेकी है। उदाहरणार्थ केपमें “अधिवास शब्दका अर्थ अपेक्षाकृत अधिक संकीर्ण है, और वही अर्थ वह नेटालमें लागू करना चाहती है। यह एक ऐसी आक- स्मिक घटना है जो पांच-छ: साल पहले कदापि सम्भव नहीं हो सकती थी। केपकी स्थितिको अच्छा बना कर उसे नेटालकी बराबरीपर लाने के बजाय, सरकार नेटालकी स्थितिको बुरा बनाकर उसे केपकी स्थितिके समान कर देना चाहती है।

जाहिर है कि श्री गांधी यह मानते हैं कि एक सामान्य प्रवासी कानूनके विषयमें यह आशा करना बिलकुल बेकार है कि वह विभिन्न प्रान्तोंके भारतीय समाजोंके विचारोंके अनुकूल होगा। इस प्रश्नके उत्तरमें कि समस्याका सबसे सहज हल क्या होगा, श्री गांधीने अपने विचार प्रान्तीय कानूनमें संशोधन करने के हकमें व्यक्त किये और सुझाव दिया

  1. १. गांधीजी यूरोपीय समिति और ब्रिटिश भारतीय संघकी कार्यकारिणी समितिसे परामर्श करनेके लिए जोहानिसबर्ग गये थे। भेंटकी यह रिपोर्ट स्टारते लेकर ३-५-१९१३ के इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित की गई थी।