पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/८२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो माता-पिता इन लेखोंको पढ़ें, उनसे हमारा यह कहना है कि वे अपने बच्चोंका बचपनमें ही विवाह या सगाई करके पापके भागी न बनें। जो ऐसा करते है वे अपने बच्चोंका हित देखनेकी अपेक्षा अपना ही अन्ध स्वार्थ खोजते हैं। वे इस प्रकार खुदको बड़ा साबित करना, अपनी न्याति-जातिमें नाम कमाना या लड़केका विवाह करके तमाशा देखना चाहते हैं। यदि बालकका हित ही ध्यानमें हो, तो उसकी ध्यानसे देखभाल करनी चाहिए, हिफाजत करनी चाहिए और उसे शारीरिक शिक्षण देना चाहिए। इस जमाने में बालकोंका विवाह करके, उन्हें संसारी खटपटकी जवाबदेहियोंमें उलझा देनेसे बढ़कर उनका और बड़ा अहित क्या हो सकता है?

अन्तमें, स्त्री या पुरुष, जो एक बार विवाहित हो चुके हों और मृत्युने जिनको अलग-अलग कर दिया है, वे तो विधुर अथवा विधवाके अनुकूल व्रतका ही पालन करें। ऐसा करनेसे उन्हें स्वास्थ्य-लाभ होगा। कई डॉक्टरोंका ऐसा विचार है कि जवान स्त्री-पुरुषोंको वीर्य-स्खलनका अवसर प्राप्त होना ही चाहिए। दूसरे कुछ ऐसे डॉक्टर भी हैं जो यह कहते है कि किसी भी स्थितिमें वीर्यपात करनेकी आवश्यकता नहीं है। जब डॉक्टरोंमें आपसमें ही इस प्रकारके मत-मतान्तर है तब हम उनसे मार्गदर्शन पाकर यह समझलें कि डॉक्टर भी हमारे विचारोंका समर्थन कर रहे हैं, विषयमें और लीन हो जायें. ऐसा नहीं होना चाहिए। मेरे खुदके अनुभव और अन्य लोगोंके, जिनके अनुभवोंसे मैं परिचित हूँ, आधारपर मैं निर्द्वन्द्व रूपसे यह कह सकता हूँ कि स्वास्थ्य-साधनके लिए विषय-भोगकी आवश्यकता कदापि नहीं होती। इतना ही नहीं, उलटे विषयोपभोगसे--वीर्यपातसे - स्वास्थ्यको अत्यन्त हानि पहुँचती है। अनेक वर्षांसे मन और तनकी बँधी हुई संयम-शक्ति एक बारके ही वीर्यपातसे इतनी अधिक नष्ट हो जाती है कि उसे पुनः प्राप्त करने में एक लम्बा समय चाहिए। और इसके बाद भी पहले जैसी स्थिति तो हो ही नहीं पाती। टूटे हुए काँचको जोड़कर उससे काम भले ही लिया जाये, लेकिन वह टूटा तो है ही।

वीर्यकी सुरक्षाके लिए स्वच्छ हवा, स्वच्छ जल, ऊपर बताये मुताबिक स्वच्छ खुराक और शुद्ध विचारोंकी पूरी आवश्यकता है। इस प्रकार नीति और आरोग्यका सम्बन्ध बड़ा घनिष्ठ है। पूर्ण रूपसे नीतिवान् मनुष्य ही पूर्ण आरोग्य प्राप्त कर सकता है। जो लोग यह समझकर कि “ जागे तभी प्रभात" इस लेखका पूर्ण रूपसे मनन करेंगे और इन सुझावोंको व्यवहार में उतारेंगे उन्हीं लोगोंको इसका प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त होगा। जो थोड़े समयके लिए भी ब्रह्मचर्यका पालन करेंगे, वे भी अपने मन और तनमें बढ़ी हुई शक्तिका अनुभव कर सकेंगे, और एक बार इस पारस-मणिको हस्तगत करनेके बाद वे उसे प्राणों की तरह यत्नपूर्वक सँभाल कर रखेंगे। और यदि वे उसमें थोड़ी भी ढील करेंगे, तो शीघ्र ही अनुभव कर पायेंगे कि उन्होंने एक बड़ी भारी भूल की है। मैंने तो ब्रह्मचर्य के अगणित लाभ देखनेके बाद भी भूलें की हैं और उनके बड़े कटु परिणाम अनुभव किये है। ऐसी भूलोंके पूर्वकी अपने मनकी उदात्त स्थिति और भूलों के बादकी मनकी दयनीय दशा, इन दोनोंका मेरी आँखों के सामने चित्र-सा खड़ा होता रहता है। फिर भी इन भूलों के द्वारा ही मैं इस पारस-मणिकी कीमत आँक सका हूँ। नहीं जानता कि अब भी इसका अखण्ड रूपमें पालन कर सकूँगा या नहीं। किन्तु