पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/८१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७
आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-१७]


अहसान मानते हैं। वास्तवमें अपनी दयनीय दशाको ढकनेका यह एक बहाना-भर है। निर्बल, लूली, विषयी तथा क्षुद्र सन्तान पाकर उसे हम ईश्वरीय कोप क्यों न मानें? इसमें उत्सव किस बातका मनाया जाये। बारह वर्षकी कन्या माता बन जाये, इसे ईश्वरका महान कोप क्यों न माना जाये। नये उगे हुए पौदोंमें यदि फल लग जायें, तो वे निर्बल हो जाते हैं। इसे हम समझते हैं और इस बातका प्रयत्न करते हैं कि उनमें इतनी जल्दी फल न लगें। ऐसा होते हुए भी किसी किशोर स्त्रीको किशोर वरसे सन्तान उत्पन्न हो जाये, तो हम उत्सव मनाते हैं। क्या यह भीतमें सिर दे मारने-जैसा नहीं है ? हिन्दुस्तान में या इस संसारमें शक्तिहीन मनुष्य चींटियोंकी तरह बढ़ जायें, तो इससे हिन्दुस्तानका या दुनियाका क्या उद्धार होनेवाला है ? इस बातमें तो पशु हमसे बहुत अच्छे हैं कि जब उन्हें प्रजोत्पत्तिकी प्रवृत्ति होती है, वे तभी मिलते हैं। स्त्री-पुरुषके संयोगके बाद पूरे गर्भकालमें तथा सन्तानोत्पत्तिके बाद बच्चा दूध पीना छोड़कर बड़ा हो जाये, इस बीचका सारा समय पवित्रतापूर्वक पाला जाना चाहिए। स्त्री और पुरुष, दोनोंको चाहिए कि वे इस अवधिमें ब्रह्मचर्यका पालन करें। लेकिन हम ऐसा नहीं करते। हम तो इस बातका जरा भी विचार किये बिना सहवास करते रहते हैं। हमारे मन इतने रुग्ण हैं। यही तो असाध्य रोग है। यह रोग हमारा मृत्युसे मिलन करवाता है। और जबतक मृत्यु नहीं आ जाती, तबतक हम पागल मनुष्यकी तरह भटकते रहते हैं। विवाहित स्त्री-पुरुषोंका यह कर्तव्य है कि वे अपने विवाहका अनुचित अर्थ न करें। उसके शुद्ध अर्थमें तो सचमुच ही जब सन्तान न हो, तो अपने उत्तराधिकारीकी इच्छासे ही सम्भोग करें।

हमारी दशा तो अत्यन्त दयनीय है और उसमें इस प्रकार निर्वाह करना अत्यन्त कठिन है। हमारी खुराक, हमारा रहन-सहन, हमारी बातचीत, हमारे आसपासके दृश्य, ये सारेके सारे विषय-वासनाको जाग्रत करनेवाले है और जब कि विषय-वासनाका हमपर अफीम-सा नशा चढ़ा हुआ ही होता है, फिर यह कैसे सम्भव है कि हम विचार करके इस स्थितिसे अपना उद्धार करें? लेकिन जो बात की ही जानी चाहिए, उसके सम्बन्धमें इस प्रकारका प्रश्न करनेवाले व्यक्तिके लिए यह लेखमाला नहीं है। यह तो उन लोगोंके लिए है जो विचारपूर्वक, जो-कुछ किया जाना चाहिए, उसे करनेका प्रयत्न करनेको कटिबद्ध हो उठते हैं। जो अपनी जैसी-कुछ स्थिति है, उसीमें सन्तोष माने बैठे है वे तो इस सबको पढ़ने में भी ऊब उठेंगे। किन्तु इस लेखका हेतु उन्हींकी मदद करना है जो अपनी दयनीय दशाको देख सके हैं और उससे कुछ हद तक तंग आये हुए हैं।

ऊपर जो-कुछ लिखा जा चुका है, उससे यह देखा जा सकता है कि जो लोग अभीतक अविवाहित हैं उन्हें तो इस कठिन कालमें विवाह करना ही नहीं चाहिए और यदि विवाह करना अनिवार्य ही हो, तो शक्ति-भर बहुत देरसे विवाह करना चाहिए। पच्चीस-तीस वर्ष तक विवाह नहीं करेंगे, नवयुवकोंको इस प्रकारका प्रण ले लेना चाहिए। ऐसा करनेसे स्वास्थ्य-प्राप्तिके अलावा जो अन्य लाभ प्राप्त होंगे, उनका विचार तो हम यहाँ कर ही नहीं सकेंगे। किन्तु हर-कोई स्वयं ही उन्हें प्राप्त करके जान सकेगा।