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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-१७]


अपना होश-हवास भूल गया हूँ। वास्तवमें यह वस्तु ही ऐसी है। इस प्रकार रत्ती-भर सुखके लिए हम अपना मन-भर बल पल-भरमें खो बैठते हैं। और जब हमारा वह नशा उतर जाता है, तब हमारी हालत रंककी-सी हो जाती है। दूसरे दिन प्रात:काल हमारा शरीर भारी हो जाता है और हमें सच्चा आराम महसूस नहीं होता। हमारी देह शिथिल और मन अस्थिर हो जाता है। इस सबको व्यवस्थित करने के लिए हम दूधके काढ़े पीते है, भस्मे फाँकते हैं, याकूतीका सेवन करते हैं, वैद्योंके पास जाकर पौष्टिक दवाइयाँ माँगते हैं और किस खुराकसे हमारी काम-शक्ति बढ़ेगी, इसकी खोज में लगे रहते हैं। यों दिनपर-दिन बीतते चले जाते हैं। और ज्यों ज्यों वर्ष गुजरते हैं, त्यों-त्यों हम शरीर और मनसे होन होते जाते हैं और बुढ़ापेमें अनुभव करते हैं कि हम अपनी बुद्धि खो बैठे हैं।

सच देखा जाये तो ऐसा होना नहीं चाहिए। बुढ़ापेमें तो मन्द होनेके बजाय बुद्धि तेजस्वी होनी चाहिए। हमारी ऐसी स्थिति होनी चाहिए कि इस देह द्वारा प्राप्त किया हुआ अनुभव खुद हमारे लिए और दूसरोंके लिए भी उपयोगी हो। जो ब्रह्मचर्यका पालन करता है, उसकी ऐसी स्थिति होती है। उसे मृत्युका भय नहीं होता। और मृत्युके समय वह ईश्वरको नहीं भूलता। वह न तो छटपटाता है और न बहाना ही करता है। वह तो हँसते हुए चेहरेसे इस देहको छोड़कर मानो अपने मालिकको अपना हिसाब देने के लिए जाता है। जो इस प्रकार मरते है, वे ही खरे पुरुष और खरी स्त्रियां है। ऐसा माना जाना चाहिए कि सचमुच उन्हीं लोगोंने अपना स्वास्थ्य सँजोया।

साधारण तौरपर हम लोग यह विचार नहीं करते कि इस संसारमें भोग-विलास, ईर्ष्या, बड़प्पन, आडम्बर, क्रोध, अवैर्य, वैर आदिका मूल और एकमात्र कारण यही है कि हम ब्रह्म वर्षका भंग करते हैं। हमारा मन हमारे हाथों में न रहे और रोज ही यदि हम एक या अधिक बार इस प्रकार बालकसे भी बढ़कर नासमझ बन जायें, तो फिर जाने-अनजाने कौन-सा अपराध हमारे हाथों नहीं बन पड़ेगा? कौन-सा घोर कृत्य करते हुए हम न हिचकेंगे?

किन्तु इस प्रकार ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले कहाँ दिखाई देते हैं? यदि सभी इस प्रकार ब्रह्मवर्षका पालन करने लगे तो दुनियाका सत्यानाश ही हो जाये है, कोई इसमें ऐसी धर्म-चर्वा छेड़ दें। यदि धर्म-दृष्टि छोड़कर केवल दुनियवी दृष्टि से भी विचार करें, तो मेरा खयाल है कि इन दोनों बातोंके मूलमें हम अपनी कायरता और अपने भयको काम करते हुए पायेंगे। क्योंकि हम ब्रह्मचर्यका पालन करना नहीं चाहते, अतएव उसमें से भाग निकलनेका बहाना ढूंढ़ते रहते हैं। ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले इस दुनियामें बहुत पड़े हैं, किन्तु ढूंढ़नपर वे सहज ही हाथ लग जायें, तो उनका क्या मूल्य रह जायगा। हीरेको प्राप्त करने के लिए हजारों मजदूर धरतीके अन्तरमें जुटे रहते है और इसके बाद भी कंकड़-पत्थरों के पर्वत-जैसे अम्बारमें से केवल इने-गिने हीरे हाथ लगते हैं। तब फिर हम हिसाब लगाकर देख लें कि ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले हीरोंको खोजने के लिए कितना प्रयत्न आवश्यक न होगा। ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए यदि पृथ्वी नेस्तनाबूद भी हो जाये, तो हमारा उससे क्या सम्बन्ध है? हम