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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ही मिलेगा जितना हम अपनी शक्ति द्वारा प्राप्त कर सकते है। सत्याग्रहका बल देश-काल की सीमासे परे होता है। ऐसा ही अजेय और उत्तम है यह बल !

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-४-१९१३

३६. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-१७]

९. गुप्त प्रकरण

स्वास्थ्यके इन प्रकरणोंको जिन्होंने ध्यानपूर्वक पढ़ा है, उनसे मेरा निवेदन है कि वे इस प्रकरणको विशेष ध्यानके साथ पढ़ें और इसपर गहरा विचार करें। आगे और प्रकरण भी होंगे और वे भी उपयोगी होंगे, यह मैं मानता हूँ। किन्तु इस विषयपर इतना महत्त्वपूर्ण और कोई प्रकरण नहीं होगा। मैं यह भी सूचित कर चुका हूँ कि इन प्रकरणों में ऐसी एक भी बात मैंने नहीं लिखी है जिसका व्यक्तिगत अनुभव मुझे हो, अथवा जिसे अत्यन्त दृढ़तापूर्वक स्वयं न मानता होऊँ।

स्वास्थ्यकी अनेक कुंजियाँ हैं और वे सबकी-सब अत्यन्त आवश्यक है। परन्तु उसकी सबसे मुख्य कुंजी ब्रह्मचर्य है। अच्छी हवा, बढ़िया खुराक, स्वच्छ जल आदिसे हमें स्वास्थ्य मिलता है। किन्तु जिस प्रकार जितना पैसा कमाया जाये, उतना ही उड़ा दिया जाये, तो दारिद्रय नहीं कटता, ठीक उसी प्रकार जितना स्वास्थ्य प्राप्त किया जाये, उतना ही खो दिया जाये, तो हमारे पास मूल पूंजी बहुत कम बच रहेगी। इसलिए स्त्री और पुरुष, दोनोंको स्वास्थ्यरूपी धन संचित करनेके लिए ब्रह्मचर्यकी पूरी आवश्यकता है। इसमें किसीके लिए शंकाकी गुंजाइश नहीं। जो अपने वीर्यकी रक्षा करता है वही वीर्यवान् या बलवान् गिना जायेगा।

अब सवाल यह है कि ब्रह्म क्या? पुरुष स्त्रीसे और स्त्री पुरुषसे भोग न करे, यही ब्रह्मचर्य है। “भोग न करे" -- यानी विषयकी इच्छासे परस्पर एक-दूसरेका स्पर्श भी न करें। इतना ही नहीं, बल्कि इस सम्बन्धका विचार भी मनमें न लायें। ऐसा स्वप्न भी न आये। न तो पुरुष स्त्रीको देखकर पागल हो और न स्त्री पुरुषको देखकर । प्रकृतिने हमें जो गुप्त शक्ति प्रदान की है, उसे नियन्त्रित करके और उसे अपने शरीरमें संचित रखकर उसका उपयोग हमें अपने स्वास्थ्यकी वृद्धि में करना चाहिए केवल शरीरका स्वास्थ्य ही नहीं, मन, बुद्धि और स्मरण-शक्तिका भी।

हमारे चारों ओर जो एक कौतुक चल रहा है, जरा उस ओर भी देखें। छोटोंसे लेकर बड़े तक, चाहे वे पुरुष हों या स्त्री, सभी एक बड़ी हदतक इस मोहमें डूबे हुए है। इस प्रसंगमें हम सभी एकदम पागल हो जाते है । हमारी बुद्धि स्थिर नहीं रहती। हमारी आँखों के आगे पर्दा पड़ जाता है। हम लोग कामान्ध हो उठते हैं। कामान्ध पुरुषों, स्त्रियों और लड़के-लड़कियोंको मैने एकदम पागलपनकी स्थितिमें देखा है। मेरा अपना अनुभव' भी कुछ भिन्न नहीं है। जब-जब मैं ऐसी स्थितिमें पहुँचा हूँ, तब-तब