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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


सरकारके पास इस टालमटोल के लिए कोई उचित बहाना भी नहीं रह गया है और स्पष्ट है कि कर न हटानेका कारण उसकी कायरता है; वह डरती है कि फ्री स्टेटके प्रतिक्रियावादी, जिन्हें रंग-विद्वेषके पागलपनकी जगजाहिर हठधर्मिताके सिवा इस सवालमें और कोई दिलचस्पी नहीं है, कहीं और विरोध न खड़ा करें। हम अच्छी तरह जानते है कि श्री गोखले, जो इंग्लैंड रवाना हो चुके हैं, साम्राज्य-सरकारके मन्त्रियोंको अपनी तथा भारतीय समाजकी आशाओंके प्रति विश्वासघातके इस भ्रष्ट आचरणपर कुछ खरी-खरी सुनायेंगे। अपने वचनकी लाज बचाने के लिए सरकार कमसे-कम इतना तो कर ही सकती है कि वह यह हिदायत जारी कर दे कि जबतक संसदके अगले अधिवेशन में इस करको रद करनेके लिए आवश्यक कानून पास नहीं हो जाता तबतक के लिए कर और उसका बकाया नहीं मां‌गा जायेगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-४-१९१३

३४. वह विधेयक

प्रवासी-प्रतिबन्धक विधेयकका स्पष्टतः चारों ओरसे विरोध हो रहा है। सर्वोच्च न्यायालय तक जानेके अधिकारको, कुछ-एक असाधारण मामलोंको छोड़ कर, वापस लेनेकी बातपर ‘नेटाल विटनेस' ने जो अत्यन्त कटु आलोचना की है, वह बहुत ही उपयुक्त है। अब अधिकारी-वर्ग अपने-अपने क्षेत्रमें तानाशाहों जैसी स्वेच्छाचारितासे ही सन्तुष्ट नहीं हैं। दक्षिण आफ्रिकाकी जनतासे अब एक ऐसी दोषाक्षम नौकरशाहीके हाथमें अपनी स्वतन्त्रता सौंप देनेके लिए कहा जा रहा है जो महामहिम सम्राट्के न्यायाधीशोंकी आलोचना और शंकाओंका सामना करने में डरती है। जब कि नेटाल और केपके वर्तमान परवाना-निकायों द्वारा भारतीय हितोंपर भयंकर आघात किये जानेकी घटनाएँ प्रतिदिन हो रही है, उस समय ऐसे प्रवास-निकायोंको, जिनके निर्णयोंपर अपील नहीं हो सकेगी, जनता बल्कि भारतीय जनता--पर थोपनेके सरकारी प्रयत्नकी घोर उद्धततापर हमें ज्यादा कहनेकी जरूरत नहीं। हम दक्षिण आफ्रिकामें बड़ी तेजीसे एक ऐसी नौकरशाहीकी ओर बढ़ते जा रहे है जिसके विरुद्ध सर जेम्स रोज़-इन्सने अभी हालमें बहुत कड़े शब्दोंमें विचार व्यक्त किये थे। यह विश्वास करना कठिन है कि स्वाधीनता और स्वतन्त्रताकी श्रेष्ठ परम्पराएँ रखनेवाले दक्षिण आफ्रिकी उपनिवेशी लोग संघमें बाहरसे प्रवेश तथा आन्तरप्रान्तीय आवागमनके ऊपर नियन्त्रणका अधिकार एक पूर्णत: स्वच्छन्द तथा स्थायी नौकरशाहीके हाथमें सौंप देंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-४-१९१३