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३०. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-१६]

८. पोशाक

जिस प्रकार खुराक स्वास्थ्यका आधार है, उसी तरह कुछ हदतक पोशाक भी। गोरी औरतें अपनी मान्यताके अनुसार सौन्दर्य-रक्षाके लिए ऐसी पोशाक पहनती हैं कि जिससे उनकी कमर और उनके पैर तंग बने रहें। इससे वे लोग नाना प्रकारके रोगोंका शिकार होती है। चीनमें औरते अपने पैरोंको बचपनसे ही ऐसा कसकर रखती है कि हमारे बच्चोंके पैर भी उनके पैरोंसे बड़े होते है। इससे भी चीनी औरतोंके स्वास्थ्यको धक्का पहुँचता है। इन दोनों उदाहरणोंके आधारपर पाठक सहज ही समझ सकते हैं कि पोशाकसे आरोग्यका कुछ-न-कुछ सम्बन्ध अवश्य रहता है। परन्तु पोशाकका चुनाव हमारे अपने ही हाथकी बात नहीं होती। हम अपने बड़ोंकी पोशाक-जैसी पोशाक पहनते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि आजकी हालतमें इसको आवश्यकता भी है। लोग पोशाकका प्रधान हेतु भूल गये हैं; और दिनों-दिन वह हमारे धर्म, देश, जाति, वर्ग आदिको सूचक बनती जा रही है। जैसे, मुनीम और मजदूर आदि कर्मचारियोंकी पोशाकें भिन्न होती हैं। जब इस तरहके भेद बतानेकी दृष्टि तक इसमें रखो जाती है, तब स्वास्थ्यके सम्बन्धमें पोशाकपर विचार करना थोड़ा गौण जान पड़ता है। इसपर थोड़ी चर्चा कर लेने में लाभ ही होगा।

पोशाकमें जूतों और गहनों आदिका भी समावेश मान लेना चाहिए।

अब जरा देख लें कि पोशाकका मूल हेतु क्या है। अपनी प्राकृतिक स्थितिमें मनुष्य कपड़ा बिल्कुल ही नहीं पहनता। स्त्री और पुरुष, दोनों गुह्यांगोंको छोड़कर सारा शरीर खुला रखते है। इससे उनकी चमड़ी सख्त और मजबूत हो जाती है। वे हवा और पानीको ठीक ढंगसे सहन कर सकते हैं। उन्हें एकाएक सर्दी आदि नहीं हो पाती। हवाके प्रकरणमें हम यह बात देख चुके है कि हम वायुका सेवन केवल नाकके जरिये करते हैं। किन्तु बात केवल इतनी ही नहीं है। हवाका सेवन हम अपनी चमड़ीके अगणित रोम-छिद्रोंसे भी करते हैं। वास्तव में वस्त्र पहनकर हम अपनी चमड़ीके इस महान कार्य में बाधा डालते हैं। ठंडे मुल्कके लोग जैसे-जैसे आलसी बनते गये, वैसे-वैसे उन्हें अपने शरीरको ढकनेकी जरूरत महसूस होती गई। वे ठंडको बरदाश्त नहीं कर सके और फिर यह रिवाज ही बन गया। लोगोंने अन्त में पोशाकको आभूषण ही मान लिया। और इसके बाद वस्त्रोंके द्वारा समाज आदिकी पहचान भी की जाने लगी।

सच बात तो यह है कि प्रकृतिने मनुष्यको चमड़ी देकर आवश्यक पोशाक प्रदान कर रखी है। हमारी यह मान्यता कि नग्न स्थितिमें शरीर कुरूप दिखाई देता है, निरा भ्रम है। नग्न स्थितिके चित्र ही सर्वाधिक सुन्दर चित्र है। वस्त्रोंको पहनकर और शरीरके सारे अंगोंको ढककर हम मानो प्रकृतिके दोषोंकी ओर संकेत करते