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२९. श्रीमती पैंकहर्टका त्याग

इंग्लैंड की स्त्रियोंको मताधिकार दिलाने के लिए संघर्षरत प्रसिद्ध महिला श्रीमती पैकहर्टके[१] नामसे सभी भारतीय परिचित है। इस महिलाने लड़ने में सब सीमाओंका अतिक्रमण कर दिया है। वे महिलाओं को लूटपाट करने तथा जान-मालको हानि पहुँचाने तक की सलाह देती हैं। हम इस सबके विरुद्ध है, लेकिन उनकी बहादुरीके सम्बन्धमें कोई सन्देह नहीं है। उनके पास धन है, समझदारी है। इन सबको उन्होंने अपने उद्देश्यकी पूर्ति के लिए समर्पित कर दिया है। वे जवान नहीं हैं। उन्होंने कभी दुःख नहीं देखा। उनके शरीरको दुःख सहने की आदत नहीं रही। ऐसा होते हुए भी वे कष्ट-सहन करने में हमेशा सबसे आगे रहती है। कुछ दिन हुए, इनके उकसानेसे वित्त-मन्त्री श्री लॉयड जॉर्जका मकान जला दिया गया था। इसकी जिम्मेदारी उन्होंने स्वयं अपने ऊपर ले ली। उनपर मुकदमा चलाया गया और उन्हें तीन वर्षकी सजा हुई। जेलमें भी, अधिकारियों को परेशान करना और इस प्रकार उन्हें अपनेको छोड देनेपर मजबूर करना इन स्त्रियोंका उद्देश्य है। इसीलिए, यद्यपि श्रीमती पैकहर्टको भोजन में तरह-तरह के व्यंजन देनेका प्रबन्ध था, उन्होंने खानेसे इनकार कर दिया और आठ दिनों तक उपवास किया जिससे उनका शरीर जर्जर हो गया। इसलिए उन्हें रिहा कर दिया गया है। और अब यह बहादुर महिला मरणासन्न अवस्थामें अस्पतालमें पड़ी हुई है। संवर्षके इस तरीके को सत्याग्रह नहीं कहा जा सकता। सत्याग्रहीका उद्देश्य तो जेल जाना और वहाँ रहना है। दूसरों को हानि पहुँचानेकी बात वह स्वप्नमें भी नहीं सोच सकता। लेकिन अगर श्रीमती पैकहर्टके संघर्षके तरीके का विचार न करें और उनके कष्टोंका ही स्मरण करें तो उनसे हम बहुत-कुछ सीख सकते है। अनेक कठिनाइयोंके बावजूद, यह महिला तथा इनकी साथी स्त्रियाँ अभीतक थकी नहीं हैं और न आगे थकेंगी। वे मृत्यु-पर्यन्त जूझेंगी। हम कह सकते हैं कि वे नामसे महिला है, किन्तु कामसे पुरुष। भारतीयों को इस साहस का अनुकरण करना चाहिए, क्योंकि हम जिन निर्योग्यताओं से पीड़ित हैं, उनके मुकाबले इस बात की क्या बिसात है कि इंग्लैंड की स्त्रियोंको मताधिकार प्राप्त नहीं है?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १९-४-१९१३
  1. १. श्रीमती एमिलिन पंकहर्ट (१८५८-१९२८); इंग्लेंडमें महिला मताधिकार आन्दोलनकी नेता