पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/६९९

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अ सांकेतिका अंजुमन, इस्लामिया, ४०३, ४१६ भढाजानिया, सोराबजी, २३४, ५०३, ५२३, ५२४, ५४४, ५४७, ५५२ अधिनियम केप प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम, ७, ८०, ११, ११८ ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियम (१९०७का अधिनियम २), ३१, १७८, ४५२; -के विरुद्ध सत्याग्रहका निर्णय, १७७-८० ट्रान्सवाल एशिपाई पंजीयन संशोधन अधिनियम (१९०८ का अधिनियम ३६), १८, १५४, १५५ नेटाल भारतीय प्रवासी कानून संशोधन अधिनियम (१८९५ का अधिनियम १७ ), ३२, ३३, ११६, ३१८ संघ प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम, ३१, ११५, १३३, २२०, ३३७, ४१०; -का जरथुस्ती अंजुमन द्वारा विरोध, १७६-७७ के अन्तर्गत न्यायमूर्ति भूमका प्रवासी अधिकारीके विरुद्ध निर्णय, ३४१; -के अन्तर्गत प्रवासी अधि- कारियोंको अनुचित अधिकार दिये गये, ३३८; -के अंतर्गत स्थायी प्रमाणपत्रके देनेका प्रश्न, ३९४६ - के विरुद्ध निष्क्रिय प्रतिरोध, १८६; -दक्षिण आफ्रिकामें उत्पन्न भारतीयों के केप- प्रवेश अधिकारको छीन लेता है, ९१; पर लार्ड सभाकी बहस, १७४; - पर लार्ड सभा में लॉर्ड एम्टलिका भाषण, १८६; -भारतीयोंको परेशान करनेके लिए, ३३८ अधिवास, ५४, १०९, ११६ अपील निकाय, २००; में प्रवासी अधिकारियों की सदस्योंके रूपमें नियुक्तिका विरोध, १७७ भन्दुर्रहमान, डॉ०, ४९६, ४९६ पा० टि० ५२६ अमृत बाजार पत्रिका, ५५५ पा० टि० अम्बरीष, ५१० अर्जुन, ३९६, ३९७ अली, अमीर, ५२७ पा० टि० अली, एच० ओ० द्वारा गांधीजीके समझौतेपर आपत्ति, ४७९ पा० टि० अलेक्जेंडर मॉरिस, ४१, ८०, ८१, ८५, ८६,९१, ९६; --का विवाह - कानून में संशोधन, ७६, २१९, २२२ अलेक्जेंडर, श्रीमती; द्वारा सन् १८९७ में गांधीजीकी सुरक्षाका उल्लेख, ४३६ अवतार; - एक आश्वयकता, १२२ अश्वत्थामा ९० अस्थायी समझौता (१९११), २६, ८६, ९५, ३२४, ३२६; की शर्त, ३२७, ३५२, ४३९; की शत संव प्रवासी प्रतिबन्धक विधेयक ( १९१३ ) द्वारा पूरी नहीं होतीं, ८३, ११५; की शर्तोंको सरकारको अपनानेके लिए कहा गया, ८८, ९१; -के अन्तर्गत जातीय रोक हटानेपर ध्यान; ८४; -के अन्तर्गत प्रति वर्ष छः भारतीय आ सकते है, ११; -के अन्तर्गत ब्रिटिश भारतीयोंके समस्त वर्तमान अधिकार सुरक्षित, १६६; के अंतर्गत शिक्षित भारतीय किसी भी प्रान्तमें निवासके लिए स्वतन्त्र, ११; -भारतीयोंकी सार्वजनिक सभा द्वारा समर्थन, ३२७; यदि ज्वलन्त प्रश्नोंको बिना इल किये छोड़ दिया जायेगा तो, ८३; - सरकारपर भंग करनेका आरोप, १०३ अस्वात, २८१ आ आंगलिया, ३४७; की भारतीय परिवेदना आयोगके सामने बयान देनेपर भालोचना, ३३९ भागाखाँ, ५२७ पा० टि०, ५५३ आत्मसंयम का महत्व, ४०८ आत्मा; - अनन्त है, ८९ आनन्दजी, ठक्कर दामोदर, २४३ और, २३६