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परिशिष्ट

आशा की जा सकती है कि भारतीयोंकी यह टुकड़ी इंग्लैंडमें विद्यमान ऐसी उत्तम टुकड़ियों में अपना स्थान बना लेगी।

बेशक, यह तो अभी निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि भारतीयोंकी इस स्वेच्छा-सहायता टुकड़ीकी सेवाएँ अमुक दिशामें ली ही जायेंगी। अगर सौभाग्यवशात् घायलों और बीमारोंकी संस्था ज्यादा न हुई तो हमारे सैनिक और सेवार्थ अस्पताल उनकी देखभाल कर ही लेंगे। लेकिन अभी तो यहाँ लोगोंका यह खयाल है और जैसा आपके पत्रसे विदित होता है भारतीय भी यही मानते हैं कि अगर जरूरत पड़ जाय तो उत्तम सेवा कर सकनेके लिए हम सब लोगोंको अपनी तैयारी अवश्य कर लेनी चाहिए।

भवदीय

चार्ल्स रॉबर्ट्स

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १६-९-१९१४