[ अगस्त १४, १९१४ के बाद ]
प्रिय श्री गांधी,
लॉर्ड क्रू के आदेशानुसार मैं उनकी ओरसे आपके १४ वीं तारीखके पत्रके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ और आपने स्वेच्छापूर्वक अपनी सेवाओंको अर्पित करनेका जो प्रस्ताव किया है उसके लिए उनकी कृतज्ञता शापित करता हूँ।
प्रस्ताव जिस भावनासे किया गया है उसी भावनासे वे उसे स्वीकार कर लेना चाहते हैं और साम्राज्यके हितमें भारतीय समाजकी इन सेवाओं के उपयोगका सबसे अच्छा तरीका क्या होगा, इस विषयपर उन्होंने बहुत विचार किया है।
उनका ऐसा खयाल है कि भारतीय विद्यार्थियोंका किसी भी सैनिक कार्य में लाना, जिसकी उन्होंने अपनी ओरसे माँग की है, समीचीन नहीं होगा। लॉर्ड किचनर अभी जो सैनिक संगठन खड़ा कर रहे हैं उसमें यदि वे दाखिल होते हैं तो फिर वे उसे तीन साल तक नहीं छोड़ सकेंगे। लॉर्ड महोदय उन्हें, उनके माता-पिताओंकी अनुशाके बिना, एक ऐसा कदम उठानेमें बिलकुल प्रोत्साहित नहीं करना चाहते जो उनके इस देश में आनेके उद्देश्य में बाधक होगा और जो सम्भवतः उनके सारे भावी जीवनको स्थायी क्षति पहुँचा सकता है। इसी तरह उन्हें 'प्रादेशिक सेना' (टेरीटोरियल फोर्स ) में भरती होनेकी सलाह भी नहीं दी जा सकती क्योंकि इस सेनामें जितने लोग लिये जाने थे लिये जा चुके हैं और जो नहीं लिये जा सके हैं ऐसे अतिरिक्त प्रार्थियोंकी एक लम्बी सूची बन गई है। गरज यह कि फिलहाल इस सेनामें प्रवेश पाना असंभव है । लेकिन सार्वजनिक कार्यका उतना ही महत्त्वपूर्ण एक दूसरा क्षेत्र भी है जिसमें हम इंग्लैंडवासियोंको बड़ी इदतक स्वयंसेवकोंकी सहायता पर निर्भर होनेकी आदत है। यह क्षेत्र है बीमारों और घायलोंको सेवा-शुश्रूषाका । ऐसा अंदेशा है कि इस युद्ध में उनकी संख्या काफी बड़ी होगी और अगर यह अंदेशा सही सिद्ध होता है तो सैनिक अस्पतालों और सैनिक कर्मचारियोंपर जो भार आ पड़ेगा उसे वहन करने में उन्हें काफी कठिनाई होगी। अतः इस आकस्मिक परिस्थिति से निपटनेके लिए स्वेच्छाके आधारपर संगठित अस्थायी संस्थाओंको खड़ा करनेकी जरूरत है। ब्रिटिश रेड क्रॉस सोसाइटीकी स्वेच्छा-सहायता टुकड़ियोंमें अनेक अंग्रेज पुरुष और स्त्रियाँ इस कार्यको आज भी कर रहे हैं। आपका ध्यान उसीकी ओर आकर्षित करना चाहते हैं।
लॉर्ड महोदयकी सलाह है कि लंदनके भारतीय निवासी और प्रवासी एक समिति बनायें और यह समिति भारतीयोंकी एक स्वेच्छा-सहायता टुकड़ी खड़ी करे। ज्ञात हुआ है कि श्री जेम्स कैंटलीने, जिन्होंने रेड क्रॉस सोसाइटीकी स्वेच्छा-सहायता टुकड़ियोंके संगठन में सक्रिय हिस्सा लिया है, उक्त भारतीय टुकड़ीको आवश्यक तालीम देनेकी तैयारी बताई शर्त यह है कि ऐसी तालीम लेना चाहनेवाले भारतीयोंकी संख्या काफी होनी चाहिए। लॉर्ड क्रूका ध्यान इस बातपर गया है कि आपके पत्रपर सही करनेवालोंमें कई तो डॉक्टरीकी शिक्षा पाये हुए लोग हैं। अगर ये लोग श्री कैंटलीके साथ सहयोग करें तो यह