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परिशिष्ट

[ यहां यह बात महत्त्वपूर्ण है कि जैसे-जैसे सत्याग्रह-संघर्षं जोर पकड़ता गया और जैसे-जैसे वह पवित्रसे पवित्रतर होता गया, वैसे-वैसे वह यूरोपीय और भारतीय, दोनों समुदायोंके श्रेष्ठतम प्रतिनिधियों को अधिकार्थिक पास लाता गया। हर चरण अपने साथ एक नई विजय और नई मैत्रियाँ लेकर आता था। ] संघर्ष के अन्तम भौतिक उपलब्धिके रूपमें हमने जो कुछ पाया है वह वही है जो हमसे छीन लिया गया था; इसी प्रकार सैद्धान्तिक लाभके रूपमें हमने जो पाया है वह वही है जो हमें मिलना तो चाहिए था किन्तु दिया नहीं गया था। सैद्धान्तिक विजय पहले अस्वीकृत की गई मांगको स्वीकार करना था। [ संघर्षका प्रारम्भ भारतीय समाजके प्रति सर्वत्र व्याप्त अविश्वास और तिरस्कारकी व्यापक भावनाके विरोधते हुआ। अब उस अविश्वास और तिरस्कारका स्थान विश्वास और आदरकी भावनाने ले लिया है। ] इसका प्रारम्भ भारतीय भावनाकी पूर्ण उपेक्षासे हुआ। धीरे-धीरे वह नीति भी बदल गई। हाँ, बीच में जब आयोग नियुक्त किया गया तब एक बार फिर इस नीतिने बड़ा जोर पकड़ा था। कारण यह था, कि आयोगकी नियुक्ति करते समय, जिन लोगोंका उसकी सिफारिशोंसे मुख्य सम्बन्ध था, उनकी भावनाका कोई खयाल नहीं रखा गया था। किन्तु, आज तो जिन मामर्लोसे भारतीय समाजके महत्त्वपूर्ण हितोंका सम्बन्ध रहता है, उनमें उसके नेताओंसे सलाह-मशविरा किया जाता है। दरअसल सत्याग्रहने इन मताधिकारहीन लोगोंको, मताधिकार प्राप्त हो जानेपर जो-कुछ मिलता उससे बहुत अधिक और वह भी कम समयमें ही दे दिया है। [ यह आन्दोलन १९०७के ट्रान्सवाल अधिनियम २ की मंसूखीकी मांगसे प्रारम्भ हुआ। कानून मंसूख कर दिया गया और इसके समस्त दक्षिण आफ्रिका लागू कर दिये जानेकी जो आशंका उत्पन्न हो गई थी, उसका पूर्णतः निवारण हो गया । प्रारम्भमें भारतीयों को इस उपनिवेशसे निकाल बाहर करनेके उद्देश्यसे उनके विरुद्ध प्रजातिगत कानून बनाये जानेकी आशंका थी। समझौतेने साम्राज्य के किसी भी भागमें भारतीयों के विरुद्ध प्रजातिगत कानून बनाये जानेकी सारी सम्भावना समाप्त कर दी। गिरमिटिया मजदूरोंके रूपमें भारतीयोंका आव्रजन जो दक्षिण आफ्रिकाके अर्थतन्त्रका लगभग एक स्थायी अंग माना जाता था, समाप्त कर दिया गया है। घृणित तीन पौंडी कर समाप्त कर दिया गया है और उसके साथ ही उससे सम्बद्ध कष्टों और अपमानोंका भी अन्त हो गया है। निहित स्वार्थ – जिनके सर्वत्र अस्त हो जानेके आसार दिखाई दे रहे थे- अब सुरक्षित और बरकरार रखे जानेको हैं। अधिकांश भारतीय विवाहोंको, जिन्हें पहले कभी-भी दक्षिण आफ्रिका के कानूनकी मान्यता प्राप्त नहीं थी, अब पूरी तरह कानूनी मान्यता दी जानेको है। परन्तु इन सबके अलावा जो बात सबसे महत्त्वपूर्ण है वह है सत्याग्रहियोंकी कठिनाइयों, कष्टों और बलिदानोंसे उद्भूत समझौते और मेल-जोलको नई भावना। वैधानिक दृष्टिसे प्रजातिगत समानता के फन्देको ऊँचा रखा गया है, और अब यह स्वीकार किया जाता है कि भारतीयोंके भी अपने कुछ अधिकार हैं, आकांक्षाएँ और आदर्श हैं, और उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। [इस संघर्षने व्यक्तिकी तुलना में अधिकार, पशुबलकी तुलनामें आत्म-बल और घृणा तथा अमपैकी तुलना में प्रेम तथा विमर्श की असीम श्रेष्ठताको अत्यन्त स्पष्ट रूपसे सिद्ध कर दिया है। ] राष्ट्रोंके बीच भारतका स्थान ऊँचा उठ गया है, दक्षिण आफ्रिकार्मे उसको सन्तानोंकी प्रतिष्ठा कहींसे-कहीं पहुँच गई है, और अब उनके लिए शान्ति और मेल-जोलके वातावरण में रहते हुए अपनी क्षमताओंका विकास करने, और इस प्रकार दक्षिण आफ्रिकी महाद्वीप में जो एक महान राष्ट्रका निर्माण हो रहा है, उसमें अपना अंशदान देनेका मार्ग प्रशस्त हो गया है।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, स्वर्ण अंक १९१४