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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

झगड़े के मुद्दोंका शीघ्रातिशीघ्र निपटारा नहीं किया जाता तो सत्याग्रहियोंकी माँगोंमें वृद्धि होना निश्चित है। किन्तु, ये सारे निवेदन-आवेदन संघ-सरकारको रास्तेपर लाने में असमर्थ रहे । वह अपने हठपर डटी रही। और तब उसके पास एक अन्तिम चेतावनी भेजी गई कि यदि अगले सत्र में ऐसे वैधानिक और प्रशासनिक कानून पेश करनेका आश्वासन नहीं दिया गया, जिनकी रूसे वास्तविक एकपत्नीक विवाह कानूनन वैध मान लिये जायें, फ्री स्टेटके सम्बन्ध में प्रजातिगत प्रतिबन्ध दूर हो जाये, दक्षिण आफ्रिका में उत्पन्न भारतीयोंको केप कॉलोनी में प्रवेश करनेका अधिकार पुनः प्राप्त हो जाये, तीन पौंडी कर रद हो जाये, और भारतीयोंके विरुद्ध जिन वर्तमान कानूनोंका कठोरता के साथ प्रयोग किया जा रहा है, उनका अमल, निहित स्वार्थीका ध्यान रखते हुए, न्यायपूर्ण ढंगसे होने लगे, तो सत्याग्रह-संघर्ष फिर तुरन्त प्रारम्भ कर दिया जायेगा । किन्तु, सरकारने इस चेतावनीकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया, और संघर्ष अपनी समस्त कटुताके साथ पुनः प्रारम्भ कर दिया गया - - और पहलेसे भी अधिक व्यापक पैमानेपर । लोगोंके दिमाग में उससे सम्बद्ध घटनाएँ इतनी ताजी हैं कि संक्षेपमें उनका उल्लेख भर कर देना पर्याप्त होगा; अर्थात् - उन भारतीय महिलाओंका संघर्ष, जिनके विवाहोंकी, सरकारकी प्रेरणापर, सर्वोच्च न्यायालयने अवमानना कर दी थी; सारे नेटालमें स्वतन्त्र और गिरमिटिया मजदूरोंका जागरण; जबरदस्त हड़तालें; हदतालियोंका अद्भुत और ऐतिहासिक कूच करते हुए ट्रान्सवालमें प्रवेश; इदतालियोंको कुचलने और फिर कामपर जानेको मजबूर करनेके लिए बादमें किये गये नृशंस कृत्य; प्रमुख नेताओं और सैकड़ों – बल्कि हजारों - सामान्यजनोंकी गिरफ्तारी और कैद; डर्बन, जोहानिसबर्ग और संघके अन्य भागोंमें आयोजित भारतीयोंकी विशाल सार्वजनिक सभाएँ; भारतमें उत्पन्न क्षोभकी भयंकर और प्रवल भावना; मातृभूमिके सभी हिस्सोंसे संघर्षकर्ताओंको प्राप्त विशाल धनराशियाँ; मद्रास में लॉर्ड हार्डिजका वह प्रसिद्ध भाषण, जिसमें उन्होंने भारतीय जनमतके स्वरमें-स्वर मिलाकर उसका समर्थन किया और फिर उनकी जाँच- आयोगकी माँग; लॉर्ड ऍम्टहिलकी समितिके उत्साहपूर्ण प्रयत्न; साम्राज्य सरकारका तत्परता के साथ हस्तक्षेप करना; भारतीय समाजकी भावनाका कोई खयाल न करते हुए एक ऐसे आयोगकी नियुक्ति जिसके सदस्य भारतीयों को कतई सन्तुष्ट नहीं कर सकते थे; नेताओंकी रिहाई, जिनकी आयोगकी उपेक्षा करनेकी सलाह लगभग पूर्णतः स्वीकार कर ली गईं; श्री ऍड्यूज और पियर्सनका आगमन और समझौतेके लिए उनका अद्भुत कार्य; हरबतसिंह और वलिअम्माकी मृत्यु; वह तनावपूर्ण स्थिति, जिसमें सिर्फ यूरोपीयोंकी दूसरी हड़तालके कारण ही हलकापन आ सका, क्योंकि श्री गांधीने एक बार फिर तय कर लिया कि जबतक सरकार इस नई मुसीबत में फंसी हुई है तबतक उसे परेशान न किया जाये; और सरकारके इस स्थितिपर काबू पा जानेपर सौहार्द्र, विश्वास और सइयागकी वह भावना जो महान् भारतीय नेता की उदार नीति और अपने महान् साम्राज्यीय उद्देश्यकी सफलता के लिए प्रयत्न करते हुए श्री ऐंड्युजके उनपर स्नेहपूर्ण प्रभावके कारण निर्मित थी।

ये सारी घटनाएं अभी हालकी हैं। और उसी प्रकार अभी बहुत दिन नहीं हुए जन आयोगने उन सारे मुद्दोंपर, जो उसे सौंपे गये थे और जिनको लेकर सत्याग्रह-संघर्ष छेड़ा गया था, हमारे अनुकूल सिफारिशें पेश कीं; सरकारने उसके प्रतिवेदनको समग्रतः स्वीकार कर लिया; भारतीय राहत विधेयक पेश किया गया और विधानमण्डलके दोनों सदनोंमें लम्बी और महत्त्वपूर्ण बहसके बाद उसे पास कर दिया गया; श्री गांधी और जनरल स्मटसके बीच वह पत्रव्यवहार हुआ, जिसमें जनरल स्मटसने सरकार की ओर से उन प्रशासनिक सुधारोंकी कार्यान्वितिका वचन दिया जो नये अधिनियममें शामिल नहीं किये गये थे, और सत्याग्रह-संघर्ष के भारतीय नेताने संघर्षकी समाप्तिकी विधिवत् घोषणा की और उन मुद्दोंको सामने रखा जिनके सम्बन्ध में भारतीयोंको सन्तुष्ट कर देनेपर ही उन्हें पूर्ण नागरिक समानताका दर्जा प्राप्त हो सकता है। और फिर आते हैं सारे देश में आयोजित हमारे नेताकी विदाईके वे दृश्य जिनने संसारके सामने भारतीय शहीद नागप्पन, नारायणसामी, हरबतसिंह और वलिअम्माके कष्टों और मृत्युका औचित्य और पुनीत स्वरूप सिद्ध कर दिया।