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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेके लिए नेताओंने एक प्रयत्न और किया था। इस प्रार्थनापत्रपर ३००० भारतीयोंने हस्ताक्षर किये थे, और इसमें सरकारसे भारतीय समाजके जिस अथाह करार-सागर में डूब जानेको आशंका उत्पन्न हो गई थी, उसकी गहराइयोंको महसूस करनेका अनुरोध किया गया था। समाजने कानून रद कर दिये जाने- पर एक बार फिर स्वेच्छयासे पुनः पंजीयन करानेकी अपनी तत्परता व्यक्त की थी । परन्तु यह प्रार्थना- पत्र तिरस्कारपूर्वक अस्वीकृत कर दिया गया, और वर्षके अन्त में अनेक नेताओंको गिरफ्तार करके उन्हें उपनिवेशसे निकल जानेका आदेश दे दिया गया, और उनके इनकार करनेपर उन्हें विभिन्न कालावधियोंके लिए कारावास की सजा दे दी गईं । इस प्रक्रियाको पुनरावृत्ति होती रही और आखिर सभी वर्गोंकि सैकड़ों लोग जेलोंमें ढूँस दिये गये । किन्तु, जब सरकारने देखा कि समाजका दमन करनेकी नीति असफल हो गई तो उसने " ट्रान्सवाल लीडर" के सम्पादक श्री अलबर्ट कार्टराइटके द्वारा बातचीत प्रारम्भ की, जिसका परिणाम यह हुआ कि जिस समय महाविभव आगाखाँ बम्बई में आयोजित सार्वजनिक विरोध-सभाकी अध्यक्षता कर रहे थे, लगभग उसी समय एक समझौतेपर हस्ताक्षर हो गये । इसके अनुसार तय पाया गया कि सत्याग्रह आन्दोलन स्थगित कर दिया जायेगा, स्वेच्छया पुनः पंजीयनकी कार्रवाई तीन महीने तक चालू रहेगी, और इस अवधिमें कानूनका अमल स्थगित रहेगा, तथा, जैसा कि भारतीय हस्ताक्षर- कर्ताओंको स्पष्ट लगे, यदि पुनः पंजीयन सम्पन्न हो जायेगा तो यह घृणित कानून रद कर दिया जायेगा । इस बीच एक प्रवासी कानून पास कर दिये जानेके कारण स्थिति उलझ गई थी। इस कानूनको एशियाई कानून-संशोधन अधिनियमसे संयुक्त करके लागू करनेका परिणाम यह होता कि सभी एशियाश्योंके आव्रजनपर, चाहे आव्रजनके इच्छुक भारतीय कितने भी सुसंस्कृत हों, पूरा प्रतिबन्ध लग जाता । इस प्रकार प्रजाति-भेदसे रहित विधि-निर्माणको जिस नीतिकी श्री चैम्बरलेनने इतनी जोरदार हिमायत की थी, उसे एक ही प्रहार में ध्वस्त कर दिया गया। फिर भी, समाजको लगा कि एशियाई कानून रद कर देने- पर प्रजाति-भेदका कलंक अपने-आप दूर हो जायेगा, और तदनुसार सारे प्रयत्न उसी ओर केन्द्रीभूत कर दिये गये। इधर स्वेच्छया पुनः पंजीयन प्रारम्भ हुआ और उधर श्री गांधीके एक दिग्भ्रमित देशभाईने उनपर घातक प्रहार कर दिया, और कुछ समयके लिए सब कुछ उलझनमें पड़ गया । किन्तु, समाजके नाम विशेष अपील जारी की गई, और तब पुनः विश्वास उत्पन्न होने और कानूनकी मंसूखीका वचन मिलनेपर मई महीनेके मध्य तक पुनः पंजीयनका कार्य विधिवत् सम्पन्न हो गया, और लॉर्ड सेल्बोर्नने स्वयं इसके सन्तोषजनक होनेका साक्ष्य भरा । और तब सरकारसे समझौतेका अपना दायित्व पूरा करनेको कहा गया; किन्तु वह मंसूखीके बादेसे मुकर गई, और उसके इस आचरणसे भारतीय समाज में शीघ्र खलबली मच गईं। सरकारने कहा कि वह कानून तो रद कर देगी, किन्तु इस शर्तेपर कि कुछ विशिष्ट वर्गोंके भारतीयोंको निषिद्ध-प्रवासी माना जाये और प्रवासी कानूनमें प्रजातिगत प्रतिबन्ध बना रहे । स्वभावतः इन शर्तोंको समाजने क्षोभके साथ अस्वीकार कर दिया, और वह सत्याग्रह संघर्षको पुनः आरम्भ करनेके लिए तैयार हो गई । नेटालसे आनेवाले एक शिक्षित पारसी श्री सोराबजी शापुरजीको प्रजातिगत भेदका विरोध करनेके कारण कारावास की सजा दे दी गई। नेटालके भारतीयोंने अपने भाई-बन्दोंके साथ सहयोग करनेके लिए ट्रान्सवालमें प्रवेश किया, और उन्हें भी निषिद्ध-प्रवासियोंके रूपमें गिरफ्तार करके उपनिवेशसे निकल जानेका आदेश दिया गया। किन्तु जोहानिसबर्गमें आयोजित एक सार्वजनिक सभामें, जिसमें वे भी उपस्थित थे, सैकड़ों स्वच्छेथा पंजीयन-प्रमाणपत्रोंको सार्वजनिक रूपसे अग्निकी भेंट कर दिया गया और सरकारको सामूहिक कारावास देनेकी चुनौती दी गई। अब सरकार चौंक उठी, और श्री अल्बर्ट कार्टराइटकी मध्यस्थतामें प्रिटोरिया में सरकार और विरोधी दलके प्रमुख सदस्थों तथा भारतीयों और चीनी समाजोंके प्रतिनिधियोंकी एक बैठक बुलाई गईं। किन्तु, बैठक असफल सिद्ध हुई; क्योंकि यद्यपि सरकार उन अनेक मुद्दोंको छोड़.

१. देखिए खण्ड ८ पृष्ठ ९१-९२

२. देखिए खण्ड ८ पृष्ठ ४५०-५४ और ४६८-७१ ।