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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्य संशोधनोंके साथ कार्य-सूची में प्रकाशित हुई तब देखा। मैंने तुरन्त इस बातकी जाँच शुरू करवा दो । आयोगको सिफारिश में ऐसा अन्तर कैसे कर दिया गया जिसके परिणाम स्वरूप अधिवास प्रमाणपत्र पेश करनेवाले भारतीयसे न केवल उसकी शिनाख्तके प्रमाण माँगे जा सकते हैं, बल्कि आदाताके उसे प्राप्त करनेके कानूनी अधिकारकी पुष्टिके सम्बन्ध में भी प्रमाण माँगे जा सकते हैं। मुझे बताया गया कि कुछ मामलों में ऐसे प्रमाणपत्र जालसाजोसे भी प्राप्त किये गये हैं और सरकार इन प्रमाणपत्रको संरक्षण देना ठीक नहीं मानती। मैं मूल धाराको ज्यादा पसन्द करता, परन्तु चूँकि सरकारका दृष्टिकोण अपने- आपमें अनुचित नहीं था और चूँकि श्री गांधीने इसपर कोई आपत्ति नहीं की, इसलिए मुझे इस अपेक्षाकृत महत्त्वहीन तफसीलपर आग्रह करके परेशानी पैदा करना बेकार ही लगा । अन्य बातोंमें श्री कुवाड़ियाका तार निरर्थक ही है। इसका कोई प्रमाण तो नहीं मिलता, फिर भी ऐसा माना जा सकता है कि इस आन्दोलनके पीछे नेटाल्के उन चन्द यूरोपीयोंका हाथ रहा हो, जिन्हें भारतीयोंकी आशंकित मनःस्थिति और भोलेपनको इस विश्वास में परिवर्तित करनेमें कोई हिचकिचाहट नहीं हुई कि तीन पौंडी करके अभाव में उनके अनिवार्य देशगमनके विरुद्ध एकमात्र सुरक्षा पुन: गिरमिटमें बंध जाना है। ऐसी आशा की जा सकती है कि श्री गांधी के नेटाल लौटनेपर उनके प्रभावसे स्थिति में सुधार आ जाये।

५. श्री जॉर्जेसके पत्रके दूसरे मुद्देके सम्बन्धमें जो रियायत दी गई है, वह आयोगकी सिफारिशसे भी अधिक है - सो इस तरह कि अब बहुपत्नीक विवाह प्रथाके अनुसार व्याही गई पत्नियोंके सम्बन्ध में यद अपेक्षा समाप्त कर दी गई है कि इस कानूनका लाभ इस श्रेणी में आनेवाली उन्हीं पत्नियोंको मिलेगा जो पहले कभी दक्षिण आफ्रिका रह चुकी होंगी । और इस बातपर तो दोनों पक्ष सदासे सहमत रहे हैं कि यह सुविधा तभी दी जायेगी जब, जिन लोगोंके उससे लाभ उठानेकी सम्भावना है, उनकी संख्या कम हो।

६. तीसरे मुद्देकी रूसे श्री गांधीको “केपमें प्रवेश " के प्रश्नपर वांछित प्रशासनिक भाश्वासन दिया जा रहा है। चौथे मुद्दे को रूसे उनकी ऑरेंज फ्री स्टेट घोषणा-सम्बन्धी कठिनाईका निराकरण हो जाता है। जिस बातपर पांचवें मुद्दे में विचार किया गया है, वह मेरे जानते तो अबतक कभी उठाई नहीं गई । इसका निपटारा बहुत ही न्यायसंगत और उचित ढंगसे कर दिया गया है। छठे मुद्देपर श्री गांधी के इस तर्कका समझौतापूर्ण और अनुकूल उत्तर दे दिया गया है कि "सचमुच सत्याग्रह के अपराधमें" अतीत में दिये गये दण्डोंका प्रयोग भविष्य में इस प्रकार दण्डित व्यक्तियोंके विरुद्ध नहीं किया जाना चाहिए । सातवें मुद्दे में, "जिन प्रवेशार्थियों को विशेष रूपसे छूट दी गई हो, " उनके प्रवेशसे सम्बन्धित प्रक्रियाकी तफसीलोंका सन्तोषजनक नियमन किया गया है । आठवें मुद्दे में जनरल स्मट्सने विधान-सभामें आयोगकी रिपोर्ट के अन्त में सार-रूपमें प्रस्तुत प्रशासनिक सिफारिशोंको समग्रतः अंगीकार कर लेनेका जो वचन दिया था, उसे दुहराया गया है। इस अतिरिक्त शर्तके जोड़ दिये जानेपर किसीको आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि जो वैधानिक कार्रवाई की जा चुकी है, उसके साथ-साथ इन आश्वासनोंको इसी भरोसे पूरा किया जा रहा है कि भारतीय समाज इस समझौतेको पूर्ण और अन्तिम मानकर स्वी कार कर लेगा।

७. श्री गांधी अपने उत्तर में स्पष्ट रूपसे कहते हैं कि विधेयकके पारित हो जानेकी बात और इस पत्र-व्यवहारसे सत्याग्रह-संघर्ष अन्तिम रूपसे समाप्त हो जाता है । पत्रके अन्त में वे अपना यह विश्वास व्यक्त करते हैं कि यदि सरकार अपने वादेके अनुसार मौजूदा कानूनों के अमलमें उसी उदार दृष्टिकोणसे काम लेती रही जो अभी हालमें उसने दिखाया है, तो संघके भीतर निवास करनेवाला भारतीय समाज एक हदतक शान्तिका उपभोग कर पायेगा और फिर वह कभी भी सरकारके लिए परेशानीका कारण नहीं बनेगा। इससे अधिककी अपेक्षा श्री गांधीसे नहीं की जा सकती थी; और जनरल स्मट्सको शायद बड़ी प्रसन्नता होती, यदि पत्रको इन दो उक्तियों तक ही सीमित रखा जाता । किन्तु, जहाँ यह आभास