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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो उनके विषय में यही माना जायेगा, मानो “ अधिवासी " शब्द आजकी परिभाषाके अनुसार उनपर लागू है।

(६) जनरल स्मटस न्याय मन्त्रियोंके सामने उन व्यक्तियोंके मामले भी पेश करेंगे जिनको उक्त कालमें निष्क्रिय प्रतिरोधी " ( इम परस्पर इस शब्दका अर्थ समझते हैं) होनेके कारण सजाएँ मिली थीं और श्री डेविडको, जनरल स्मटसकी समझमें इस सुझावमें कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए कि इन व्यक्तियोंके खिलाफ इन सजाओंका सरकार भविष्य में कोई दुरुपयोग न करेगी।

(७) १९१३ के अधिनियम संख्या २२ के खण्ड २५ के अन्तर्गत मन्त्रीकी विशिष्ट हिदायतोंक साथ ऐसे प्रत्येक “शिक्षित प्रवासीके नाम जिसे खास तरीकेसे छूट दी गई है"और जिसे प्रवासी-अधिकारी मंजूर कर चुका है, एक दस्तावेज जारी किया जायेगा।

(८) भारतीय राहत आयोगने अपने विवरणके अन्तमें जो सिफारिशें की हैं, वे सभी सिफारिशें सरकार द्वारा स्वीकृत भारतीय राहत-विधेयकके साथ-साथ लागू की जायेंगी और इस पत्रके अन्तिम च्छेदमें जो कुछ कहा गया है, उसके मुताबिक इन सब मामलोंमें तत्काल आवश्यक कार्रवाई शुरू की जायेगी।

जहाँतक वर्तमान कानूनोंको अमलमें लानेका प्रश्न है, मन्त्री महोदय यह सूचित करनेका आदेश देते हैं कि सरकारका सदा यही मंशा रहा है और रहेगा कि उनका अमल न्याय तथा निहित स्वार्थीको दृष्टि में रखकर हो।

अन्तमें जनरल स्मटसके आदेनुशासार निवेदन है कि वे इस मामले में कोई दुविधा अथवा शंका नहीं रहने देना चाहते। संघको संविधि-पुस्तकमें भारतीय राहत-विषेषक और फिलहालको वार्ताओं में उल्लिखित मुद्दोंको पूरा करनेके बारेमें इस पत्रमें जो वचन दिया गया है, उसे मिलाकर सारे विवादका परिपूर्ण और अंतिम हल निकलना चाहिए । दुर्भाग्यवश एक दीर्घं कालते यह विवाद हमारे सामने उपस्थित है। वे ऐसा द्दल चाहते हैं, जिसे भारतीय समाज बिना किसी झिझकके पूरी तरह स्वीकार कर सके।

भवदीय,

ई० एम० जॉर्जेस

श्री मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफिस रेकड्रेस: ५५१/५८

परिशिष्ट २७
(१) उपनिवेश कार्यालयके नाम गवर्नर-जनरलका खरीता

केप टाउन

जुलाई ४, १९१४

महोदय,

जैसा कि आपको इसी १ तारीखके तार द्वारा सूचित किया जा चुका है, जनरल स्मट्स और श्री गांधी के बीच सभी महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक मुद्दोंपर समझौता हो गया है। यह समझौता, सचमुच, भारतीय राहत-विधेयकके व्यवस्थापनकी सुखद परिसमाप्ति है, और मुझे विश्वास है कि यह, भारतीयोंके जिन कष्टोंको लेकर इस देश में लगभग मेरे पूरे प्रवास-कालमें लिखा-पढ़ी चलती रही है, उन कष्टोंसे कुछ कालके लिए मुक्तिका पूर्वाभास देता है।