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परिशिष्ट २६
ई० एम० जॉर्जेसका पत्र

केप टाउन

जून ३०, १९१४

प्रिय श्री गांधी,

आपने अभी कुछ दिनों पहले संघमें भारतीयोंको स्थितिके सम्बन्ध में जनरल स्मट्सके साथ चर्चा की थी। पहली भेंटमें आपने भारतीय राहत-विधेयककी व्यवस्थाओं के प्रति सन्तोष प्रकट किया था और माना था कि भारतीय समाज और सरकारके बीच जिन मुद्दोंपर कार्रवाई की आवश्यकता विवाद है और जिनपर प्रशासनिक यह विधेयक निश्चय ही उन्हें हल कर देता है। दूसरी भेंटमें आपने सरकारके सामने कुछ दूसरी बातोंकी भी एक सूची पेश की थी, जिनके सम्बन्धमें प्रशासनिक कार्रवाई की आवश्यकता है । ये बातें उन मुद्दोंसे अलग थीं, जिनपर विधेयकमें निश्चित कार्रवाई की जा चुकी है । जनरल स्मटसके आदेशानुसार मैं उन्हींके विषय में यहाँ लिख रहा हूँ:

(१) भविष्यमें नेटालके भारतीय प्रवासियोंके संरक्षक द्वारा ऐसे प्रत्येक भारतीयको जो नेटाल अधिनियम १७, १८९५ की व्यवस्थाओंके अन्तर्गत आता है, अपनी गिरमिट या पुनः गिरमिटकी अवधि पूरी कर चुकनेपर निःशुल्क छुटकारा प्रमाणपत्र दिये जानेमें, उनकी समझमें तो कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए । छुटकारेका यह प्रमाणपत्र १८९१ के नेटाल-कानून-संख्या २५ के खण्ड १०६ की व्यवस्थाओंके अन्तर्गत जारी किये गये प्रमाणपत्रके जैसा ही होगा।

(२) आप कहते हैं कि एकाधिक पत्नियों और उनके बच्चोंकी संख्या बहुत कम है । यदि यह परिस्थिति जाँच करनेपर सही उतरती है, तो इन एकाधिक पत्नियों [ या बच्चों ] को अपने पतियों [ या पिताओं ] के साथ रहने देनेके मार्ग में सरकार कोई बाधा नहीं डालेगी।

(३) दक्षिण आफ्रिकामें उत्पन्न जो भारतीय केपमें प्रवेश करना चाहते हैं यदि उक्त प्रान्तमें इसके पहले ऐसे लोगोंका जितना प्रवेश होता रहा है, उतना ही होता रहे, वह बढ़े नहीं, तो संघके १९१३ के प्रवासी-विनियम अधिनियम २२ खण्ड ४ (१) (अ) की व्यवस्थाओंपर आज ही की तरह अमल होता रहेगा; किन्तु जैसे ही प्रवासियोंकी यह संख्या बढ़ती नजर आयेगी, सरकार प्रवासी अधिनियमकी व्यवस्थाओं को लागू करनेका अधिकार सुरक्षित रखती है।

(४) संघमें जिनके प्रवेशपर विशेष छूट दी गई है (अर्थात् सीमित संख्या में आनेवाले वे लोग जो प्रतिवर्ष भारतीय समाजके सर्वसामान्य हितसे सम्बद्ध होनेके कारण सरकार द्वारा संघमें प्रवेशकी आशा पाते रहेंगे ) उन व्यक्तियोंको प्रान्तीय सीमाओंपर ज्ञापन देना आवश्यक नहीं होगा और उनके लिए प्रवासी-विनियम अधिनियमके खण्ड १९ के अन्तर्गत प्रवेश करते समय बन्दरगाइपर दिया हुआ ज्ञापन ही पर्याप्त माना जायेगा।

(५) १९१३ के अधिनियम २२ के लागू होनेके पहले जो प्रवासी-कानून अमलमें लाया जा रहा था, उसके मुताबिक शिक्षा परीक्षा पास करनेके बाद केप अथवा नेटालमें पिछले ३ वर्षोंक भीतर जिन भारतीयोंको प्रवेश दिया गया है, किन्तु जो उक्त अधिनियमके खण्ड ३० की शब्द-रचनाके कारण, जिस अर्थमें यह शब्द उक्त अधिनियममें पारिभाषित हुआ है, उस अर्थ में अभी तक “ अधिवासी " नहीं माने गये हैं वे यदि कुछ समयके लिए उस प्रान्तसे अनुपस्थित रहते हैं, जिसके वे वैध अधिवासी रहे हैं,