जायेंगे, माँग लेगा, और पूर्वोक्त ढंगसे स्थापित किये गये सम्बन्धको उन दोनोंके बीच हुए विवाहके रूपमें दर्ज कर लेगा। बावजूद इसके कि वे दोनों स्त्री-पुरुष जिस धर्म के माननेवाले हैं उस धर्ममें बहुपत्नीक विवाह वैध और मान्य है, उनके सम्बन्ध पंजीयन करानेके फलस्वरूप उस दिनसे जब उनमें सम्बन्ध स्थापित हुआ था, दोनों पक्षोंके बीच वैध और पक्की शादी मानी जायेगी और इस विवाहसे उन्हें वे सब अधिकार प्राप्त हो जायेंगे जो कानूनकी दृष्टिमें वैध और पक्के विवाहके रूपमें मान्य सम्बन्धोंके अन्तर्गत प्राप्त होंगे, और यह विवाह उस जगह हुआ माना जायेगा जहाँ पंजीयनसे पहले उससे सम्बन्ध स्थापित किया गया था।
(२) मन्त्रीको इस खण्डके अन्तर्गत प्रार्थनापत्र देनेकी विधिके सम्बन्धमें, तत्सम्बन्धी रजिस्टरोंको रखनेके सम्बन्धमें और उन रजिस्टरोंमें दिये जानेवाले विवरणके सम्बन्धमें विनियम बनानेका अधिकार होगा। जिस प्रान्त में ये सम्बन्ध विवाह-रूपमें पंजीयित किये जाते हैं उस प्रान्तमें लागू विवाह-कानूनोंकी धारायें, जहाँतक उन कानूनोंका रजिस्टरोंको रखने और देखने, उनकी नकलें या उनमें से उद्धरण, उनकी प्रमाणित नकलों के प्रमाण प्राप्त करने, उन रजिस्टरों, प्रमाणित नकलों या उद्धरणोंके खो जाने, नष्ट हो जाने या दूषित हो जाने या कट-फट जानेसे सम्बन्ध है, उचित परिवर्तनोंके साथ, इस खण्डके अन्तर्गत रखे गये रजिस्टरोंपर भी लागू होंगी।
अधिनियम सं० २२ के खण्ड ५ (छ) का संशोधन और अर्थ
३. (१) सन् १९१३ के प्रवासी नियन्त्रण अधिनियम (१९१३ के अधिनियम सं० २२) के खण्ड ५ के अनुच्छेद (छ) में से निम्नशब्द निकाल दिये जायेंगे--
“इसमें वह पत्नी जिसका विवाह संवके बाहर किसी भी धर्मके रीति-रिवाजोंके अनुसार उचित रूपमें वैध और एकपत्नीक विवाहके रूप में हुआ हो या उसके अन्तर्गत उत्पन्न बच्चा शामिल हैं।"--
(२) यहाँ संशोधित रूपमें दिये गये इस अनुच्छेदकी व्याख्या – “पत्नी " के अन्तर्गत ऐसी कोई भी स्त्री आ जायेगी जिसका यहाँ उल्लिखित विमुक्त पुरुषसे ऐसा सम्बन्ध है जिसे किसी भारतीय धर्मके आदेशों के अन्तर्गत विवाह मान्य किया गया है। साथ ही उन आदेशोंके अनुसार उस विमुक्त पुरुषका सम्बन्ध दूसरी स्त्रियोंसे भी मान्य कर लिया जायेगा। व्यवस्था की जाती है कि कोई भी स्त्री ऐसे विमुक्त पुरुषकी पत्नी नहीं मानी जायेगी--
(क) यदि उस पुरुषका ऐसा सम्बन्ध किसी प्रान्तमें रहनेवाली किसी दूसरी स्त्रीसे हो; या
(ख) यदि ऐसे विमुक्त पुरुषकी किसी दूसरी स्त्रीसे, जो अभी जीवित है, कोई सन्तान मौजूद हो; “ सोलह वर्षसे कम आयुके बच्चेका अर्थ होगा वह बच्चा जो विमुक्त पुरुष और यहाँ बताई गई स्त्रीकी सन्तान हो, या वह बच्चा जो विमुक्त पुरुष और मृत स्त्रीकी, जो जीवित होती तो (यहाँ दी गईं परिभाषाके अनुसार) पत्नी मान्य की जा सकती थी था उसका विमुक्त पुरुषसे सम्बन्ध इस अधिनियमके खण्ड २ के अन्तर्गत विवाह रूपमें पंजीयत किया जा सकता था।"
नेटालके भारतीय प्रवासी कानूनको विवाह सम्बन्धी वर्तमान धाराओंका संरक्षण
४. इस अधिनियमके इससे पहलेके खण्डोंके किसी भी विधानका अर्थ ऐसा न किया जायेगा जिससे नेटाल्के भारतीय-प्रवासी कानून १८९१ (१८९१ के कानून सं० २५) के पैंसठसे नवासी तकके खण्ड रद हो जायें या किसी भी तरह बदल जायें।
१८९५ के नेटालके अधिनियम १७ के तीसरे खण्डका संशोधन
५. नेटालके भारतीय प्रवासी-संशोधन विधेयक, १८९५ के खण्ड तीनके अन्त में निम्न शब्द जोड़कर संशोधित किया गया है " यदि वह इस तारीखके बीत जानेके बाद बारह महीने के भीतर उसके लिए प्रार्थनापत्र दे। "