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२४. प्रवासी विधेयक

इस विधेयकका इसी २४ तारीखको द्वितीय वाचन होगा। तब हमें उसके बारेमें सिर्फ पढ़नेपर जितना मालूम होता है, उससे कहीं अधिक जानकारी हो सकेगी। परन्तु दक्षिण आफ्रिकाके एशियाई समाजपर पड़नेवाले उसके घातक प्रभावको समझने और जाननेके लिए हमें उस इतिहासको देखना पड़ेगा जो कुछ पुराना हो चुका है। जो लोग इस देशके भारतीय आन्दोलनमें दिलचस्पी रखते हैं उन्हें याद होगा कि सरकारने १९०७ के अधिनियम २ तथा १९०८ के अधिनियम ३६ की मनमानी व्याख्या करके कानूनसम्मत अधिवासी भारतीयोंके, एक विशिष्ट वर्गके नाबालिग बच्चोंकी बहुत बड़ी संख्याको ट्रान्सवालमें प्रवेश या पुनः प्रवेश करनेसे रोकने के लिए कितना घोर प्रयत्न किया था। यदि सरकारको अपने प्रयत्नमें सफलता मिल जाती तो ट्रान्सवालके अधिवासी भारतीयोंकी आबादीका एक बड़ा हिस्सा ट्रान्सवाल छोड़ने तथा सर्वनाशका सामना करनेको विवश हो जाता। हर्षकी बात है कि स्व० छोटाभाई द्वारा सार्वजनिक हितकी भावनासे की गई कार्रवाईके फलस्वरूप यह प्रयत्न विफल हो गया। वे बहुत अधिक खर्चा उठाकर अपने पुत्रका मामला अपील न्यायालयमें ले गये और वहाँ उन्होंने मुकदमा जीत लिया।[१] उसी समयसे सरकारको हर नई कार्रवाईको भारतीय बड़े ही सन्देहकी दृष्टिसे देखते हैं और ताजी घटनाओंने तो उनके इस सन्देहको पुष्ट ही किया है। पत्नियों और बच्चोंके बारेमें सरकार द्वारा जारी की गई गश्ती-चिट्ठियोंके द्वारा अधिवासी भारतीयोंकी संख्या घटानेका दूसरा प्रयत्न किया गया। और अब संसदके सामने जो विधेयक है, वह सरकारकी इसी नीतिको कानूनका रूप देना चाहता है। उसकी हर प्रतिबन्धक धाराका अध्ययन इस कटु अनुभवके प्रकाशमें करना होगा। क्योंकि याद रखना चाहिए कि विधेयककी आवश्यकता यूरोपीयोंके आबजनसे उत्पन्न किसी कठिनाईको हल करने के लिए नहीं है। वह यदि पूर्ण रूपसे नहीं तो प्रमुख रूपसे सत्याग्रहियोंको सन्तुष्ट करने, और भारतीय बस्तियोंके विषयमें साम्राज्य सरकार तथा स्थानीय सरकारके बीच हुए समझौतेको कार्यान्वित करनेके लिए प्रस्तुत किया गया है। लेकिन इसके बावजूद, समझौतेकी शर्तों और उसमें निहित भावनाको कार्यान्वित करने, तथा अधिवासी एशियाई आबादीके प्रति जहाँ-जहाँ मौजूदा कानून बहुत सख्त हैं, वहां उन्हें उदार बनानके बदले यह विधेयक दक्षिण आफ्रिकाको उसकी अधिवासी एशियाई आबादीसे मुक्त करनेकी एक निश्चित नीतिका प्रतिनिधित्व करता है। जनरल बोथाने कहा है कि उनकी सरकार अधिवासी एशियाइयोंके साथ न्याय और

  1. १. छोटी अदालतने यह निर्णय दिया था कि पंजीयन-प्रमाणपत्र में उनके लड़केका नाम दर्ज रहनेसे उसे पंजीयनका अधिकार प्राप्त नहीं हो जाता; देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ३६१, ३७१-७२, ४०२, ४०४-५ ।