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परिशिष्ट

इस अधिकारीके विरुद्ध नये परवानोंके बारेमें कोई शिकायत नहीं थी। जो शिकायतें थीं वे केवल नगरों और कस्बोंमें अधिनियमके प्रशासनके तरीकेके विरुद्ध थीं। किन्तु इस विषयपर हम कोई सुझाव नहीं दे सकते। इसमें केवल कानून बनाकर ही कोई कारगर कार्रवाई की जा सकती है, और जो कारण हमने केप टाउनमें परवानोंके प्रश्नकी चर्चा करते हुए दिये हैं उन्हीं कारणोंसे कानूनोंमें कोई संशोधन करनेका सुझाव देने में हम असमर्थ हैं।

अब हम श्री गांधी द्वारा गृह-मन्त्रीको लिखे गये अपने पत्र में गिनाई गई सब शिकायतोंपर विचार कर चुके, किन्तु समाप्त करनेसे पहले हमारी रायमें यह उचित होगा कि रिपोर्टके विभिन्न हिस्सोंमें जो सिफारिश की गई हैं उन्हें संक्षिप्त रूपमें यहाँ रख दिया जाये।

कुछ सिफारिशें ऐसी हैं जिन्हें अमल में लानेके लिए कानून बनाना जरूरी होगा; और बाकी दूसरी ऐसी हैं जिनके लिए केवल प्रशासनिक कार्रवाई ही पर्याप्त होगी।

ये सिफारिशें निम्नलिखित हैं:

(१) १९१३ के प्रवासी नियन्त्रण अधिनियमके खण्ड ५ (छ) को इस प्रकार संशोधित किया जाये ताकि कानून और प्रवासी-विभागकी प्रचलित नीतिमें अनुरूपता स्थापित हो जाये। यह नीति है: “किसी ऐसे भारतीयकी, जिसे अभी किसी प्रान्तमें निवासका अधिकार है, अथवा जिसे भविष्य में संघ में प्रवेशकी अनुमति दी जा सकती हो, पत्नी और उसकी नाबालिग सन्तानको प्रवेशकी अनुमति दे दी जाये, फिर चाहे उस भारतीयका विवाह ऐसी पत्नीसे ऐसे धर्म के अनुसार हुआ हो जिसमें बहु-विवाह मान्य है, अथवा चाहे वह पत्नी उन एकाधिक पत्नियोंमें से एक है जिनके साथ उस भारतीयने दक्षिण आफ्रिकासे बाहर विवाह किया हो, बशर्ते कि दक्षिण आफ्रिकामें वह उसकी अकेली पत्नी हो ।”

(२) प्रवासी अधिकारीको प्रत्येक प्रान्तमें रजिस्टर खोलनेके आदेश दे दिये जाये जिसमें दक्षिण आफ्रिका में तीन या तीनसे अधिक वर्षोंसे निवास कर रहे वे भारतीय, जिनके साथ दक्षिण आफ्रिका में इस समय एकाधिक पत्नियाँ रहती हैं या पहले कभी रहती थीं, उनके नाम दर्ज कराने होंगे जो, जबतक कि ऐसे भारतीय इस देश में निवास करते रहें तबतक अपने नाबालिग बच्चोंके साथ भारत जाने या भारतसे आनेको स्वतन्त्र होंगी।

(३) केप कॉलोनीके १८६० के अधिनियम १६ के ढंगका हर एक कानून बनाया जाना चाहिए जिसमें भारतीय समाजके भिन्न धार्मिक वर्गोंके पुरोहितोंमें से विवाह-अधिकारियोंकी नियुक्ति करनेकी व्यवस्था हो ताकि ये विवाह-अधिकारी विवाहकी इच्छा रखनेवाले स्त्री-पुरुषका विवाह उन्हींकी धार्मिक रीतियोंके अनुसार सम्पन्न करा सकें।

(४) यथार्थमें जो सम्पन्न हो चुके हैं ऐसे एकपत्नीक विवाहोंको पंजीयनके जरिये वैधता प्रदान करनेके निमित्त कानून बनाया जाये। यहाँ एकपत्नी-विवाहका अभिप्राय किसी पुरुष द्वारा एक स्त्रीसे ऐसी प्रणालीके अन्तर्गत किये गये विवाहसे होगा जो पुरुषको एक अथवा एकाधिक पत्नियोंसे विवाह करनेके अधिकार प्रदान करती है।

(५) नेटाके १८९५ के अधिनियम १७के खण्ड ६ को रद कर दिया जाये जिसके अधीन नेटालके कतिपय भारतीयोंके लिए प्रतिवर्ष अनुमति या परवाना लेना और ऐसे परवाने के लिए प्रतिवर्षं तीन पौंड शुल्क देना आवश्यक है।

(६) १९१३ के प्रवासी नियन्त्रण अधिनियम के अन्तर्गत शिनाख्ती प्रमाणपत्र जारी करनेकी शर्तोंमें संशोधन करके ऐसी व्यवस्था कर दी जाये जिससे ये प्रमाणपत्र एक सालकी जगह तीन साल तक वैध रहें।

(७) केप टाउनमें प्रवासी विभाग में एक दुभाषियेकी नियुक्ति की जाये और वह पूरे समयके लिए सरकारी कर्मचारी हो।