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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस विषयको समाप्त करनेसे पहले हम एक मुद्देका उल्लेख करना चाहेंगे जिसकी ओर सर बेंजामिन रॉसनने हमारा ध्यान आकृष्ट किया था। १९१३ के अधिनियमके खण्ड ४, (२) (क) में जो केप और नेटाल प्रान्तोंमें शैक्षणिक शर्तके बारेमें है, उन लोगोंके लिए व्यवस्था है जो अधिनियम लागू होनेके समय कानूनकी रूसे किसी भी प्रान्तमें निवास करनेके अधिकारी थे। हमारा ध्यान इस ओर दिलाया गया कि यह खण्ड जो अधिकार प्रदान करता है उनका लाभ उन लोगोंको प्राप्त नहीं होगा जो अधिनियम लागू होनेके बाद किसी प्रान्तमें रह सकनेके वैध अधिकारी हुए हों, मसलन दक्षिण आफ्रिकाके अधिवासी भार- तीयोंका वह बच्चा जो अधिनियम लागू होनेके बाद पैदा हुआ हो।

निश्चय ही यह समझना मुश्किल है कि इस खण्डमें "अधिनियम लागू होनेके समय” शब्दोंको शामिल करनेसे क्या उद्देश्य पूरा होता है, और इसलिए उन्हें निकाल ही दिया जाना चाहिए।

मौजूदा कानूनोंका प्रशासन

अब हम पाँचवी और अन्तिम शिकायतपर आ पहुंचे हैं। श्री गांधीने इसे मन्त्री महोदयको लिखे गये अपने २१ जनवरी, १९१४ के पत्रमें शामिल किया है, और इसमें उन्होंने माँग की है कि भारतीयोंको विशेषरूपसे प्रभावित करनेवाले मौजूदा कानूनोंको न्यायपूर्वक और निहित अधिकारोंका ध्यान रखते हुए अमलमें लानेका आश्वासन दिया जाये। इस विषयपर हमारे सामने जो आवेदनपत्र प्रस्तुत किये गये हैं वे मुख्यतया प्रवासी और परवाना अधिनियमोंके बारेमें हैं, और जैसा कि पहले कहा जा चुका है, हमारा विचार अपनी जाँच इन्हीं विषयों तक सीमित रखनेका है।

प्रवासी अधिनियम

प्रवासी विभागके प्रशासनिक तरीकोंके खिलाफ शिकायतोंकी संख्या बहुत ज्यादा थी, मुख्यतः केप कॉलोनीमें । इनमें से कुछके बारेमें हमारी राय है कि वे सिद्ध नहीं की जा सकीं हैं; हमारा इरादा उन शिकायतोंका उल्लेख करनेका नहीं है। कुछ अन्य शिकायतें हैं जो हमारी रायमें मुनासिब हैं, और उनके बारे में हम यथासम्भव संक्षेपमें विचार करेंगे।

परवाना अधिनियम

केप कॉलोनी और नेटालमें व्यापार या धन्धा चलानेके उद्देश्यसे जारी किये जानेवाले परवानोंके सिलसिले में परवाना अधिनियमोंके प्रशासनके विरुद्ध आयोगको आवेदनपत्र दिये गये हैं।

इस विषयपर कोई ऐसी सिफारिश करना हमें सम्भव नहीं लगता जिसका कुछ लाभ हो सके। केप कॉलोनीके कस्बोंमें, या भीतरी जिलोंमें परवाना कानूनों के प्रशासनके बारेमें हमारे सामने कोई सबूत नहीं रखे गये, इसलिए उस विषयपर हम कोई बात नहीं कहेंगे।

जहाँतक नेटालका प्रश्न है, वहाँकी प्रणाली केप कॉलोनी में प्रचलित प्रणालीसे थोड़ी भिन्न है।

हमारे सामने जो सबूत हैं उनसे पता चलता है कि नेटालके नगरोंमें परवाना कानूनका प्रशासन भारतीयोंके खिलाफ उतनी सख्तीसे नहीं होता जितना कि केप टाउनमें, लेकिन भारतीयोंके लिए नगरके उन हिस्सोंको छोड़कर जहाँ लगभग सभी निवासी भारतीय ही हैं और जिन्हें एक तरहसे एशियाई बस्तियाँ माना जा सकता है, नये परवाने पा सकना उत्तरोत्तर कठिन होता जा रहा है। कस्बोंके कुछ अन्य भागों में अब भारतीयों के लिए नये परवाने पा सकना लगभग असम्भव है।

नेटालके नगरों और कस्योंके अलावा शेष नेटालमें एक परवाना अधिकारी है जो सरकारी कर्मचारी है, और जिसके निर्णयोंके विरुद्ध परवाना निकायों में अपील की जा सकती है। इस परवाना अधिकारीको नीति भारतीयोंके प्रति नगरोंके परवाना अधिकारियोंकी अपेक्षा कहीं अधिक उदार है। वस्तुतः उसने हमें बताया है कि वह यूरोपीयों और भारतीयोंके बीच कोई अन्तर नहीं करता।

इस गवाहसे यह एक दिलचस्प तथ्य मालूम हुआ कि जब कोई भारतीय परवानेके लिए प्रार्थनापत्र देता है तो उसके विरुद्ध ५० प्रतिशतसे अधिक आपत्तियों दूसरे भारतीयों द्वारा ही उठाई जाती हैं।