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परिशिष्ट

हमारी रायमें इनमें से किसी भी बातका हड़ताल होनेमें कोई हाथ नहीं था, और इनमें से अधिकांश ऐसी थीं जिनका समाधान कानून बनाकर ही किया जा सकता था, प्रशासनिक कार्रवाईसे नहीं; और इसलिए हम ऐसा नहीं मानते कि ये हमारी जाँचके विषय हो सकते हैं।

ऐसी स्थिति में अब हम उन पाँच विषयोंपर विचार करेंगे जिन्हें श्री गांधीने २१ जनवरी, १९१४ के अपने अन्तिम पत्रमें गिनाया है।

ऑरेंज फ्री स्टेटका सवाल

इसका पहले ही उल्लेख किया जा चुका है, और मन्त्री महोदयने इस विषय में जो आश्वासन दिये हैं उन्हें देखते यह समझ सकना मुश्किल है कि इसे फिरसे उठानेकी क्या जरूरत थी। इसके बारेमें एक ही बात कही जा सकती है और वह यह कि चूँकि १९१३ के अधिनियमके खण्ड ७ के अन्तर्गत शिक्षित भारतीय फ्री स्टेटमें प्रवेश करते ही फ्री स्टेटकी विधि-पुस्तिकाके अध्याय ३३ के खण्ड ८ के अधीन हो जाते हैं । इस खण्डके अन्तर्गत अन्य बातोंके अलावा आवश्यक है कि प्रवेशार्थी किसी रेजिडेंट मजिस्ट्रेट के सामने एक ज्ञापन दे, और चूकि मन्त्री महोदयने यह मान लिया है कि भविष्य में ऐसा कोई ज्ञापन देना आवश्यक नहीं होगा, अतः यह वांछनीय होगा कि इस बातको बिलकुल स्पष्ट करनेके लिए अधिनियमके खण्ड ७ में आवश्यक संशोधन कर दिया जाये।

केपमें प्रवेशका सवाल

यह बात स्पष्ट है कि यदि १९११ के अस्थायी समझौतेसे भारतीयोंके मौजूदा अधिकारोंकी रक्षा होती थी, तो शुद्ध कानूनकी दृष्टिसे कहा जाय तो उस समझौतेका उल्लंघन हुआ है। दुर्भाग्यवश इस समझौतेकी शर्तें किसी औपचारिक दस्तावेजमें स्पष्ट रूपते लिखी हुई नहीं हैं। उन्हें उन दो पत्रोंमें ही देखा जा सकता है जिनका आदान-प्रदान २३ अप्रैल, १९११ को मन्त्री महोदयके निजी सचिव और श्री गांधी के बीच हुआ था।

कहा गया है कि निजी सचिवके २२ अप्रैलवाले पत्र में मौजूदा अधिकारोंको बरकरार रखनेका कोई स्पष्ट आश्वासन नहीं दिया गया था। लेकिन इसमें सन्देह नहीं कि श्री गांधी और भारतीय समाजने मोटे तौरपर ऐसा समझा कि समझौतेकी शर्तोंमें से एक यह भी है । बादमें लिखे गये श्री गांधी के कई पत्रोंसे, विशेषरूपसे १९१२ में जनवरी और फरवरीमें, और इसके बाद १९१३ में जुलाई और अगस्त में उनके और निजी सचिवके बीच हुए पत्र-व्यवहारसे यह बात स्पष्ट होती है । उदाहरणार्थं, २४ अगस्त, १९१३ के अपने पत्र में श्री गांधीने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि “ १९११ के अस्थायी समझौतेका निर्धारण करनेवाले पत्र-व्यवहार में ब्रिटिश भारतीयोंके सभी मौजूदा अधिकारोंकी रक्षाकी व्यवस्था थी।" अन्य पत्रोंमें भी इसी आशयकी बात कही गई है, और कभी किसी अवसरपर मन्त्री महोदय द्वारा इस दावेका खण्डन नहीं किया गया। सच तो यह है कि पत्रोंको पढ़नेसे ऐसी धारणा बनती है कि दोनों पक्ष इस विषय में एकमत थे, और उसपर कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ।

यदि परिस्थिति ऐसी हो तो सहज ही यह निष्कर्ष निकलता है कि दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे ऐसे भारतीयोंका, जो १९०६ के अधिनियम ३० की शिक्षा विषयक शर्त पूरी कर सकते हैं, केप कोलोनीमें प्रवेश नियन्त्रित करके १९११ के अस्थायी समझौतेका उल्लंघन किया गया है। साथ ही श्री गांधी द्वारा मन्त्री महोदयको लिखे गये पत्रले यह भी स्पष्ट है कि इस कथित शिकायत में बहुत दम नहीं है।

इस सारे विषयपर व्यावहारिक दृष्टिसे विचार करनेके बाद हम इस नतीजेपर पहुँचे हैं कि हमारे यह सिफारिश करनेसे कोई लाभ नहीं होगा कि इस काल्पनिक शिकायतको दूर करनेके लिए १९१३ के अधिनियम में ऐसा संशोधन किया जाये जिसे दक्षिण आफ्रिका में जन्मे भारतीयोंको अधिनियममें निर्धारित शैक्षणिक परीक्षा दिये बिना केपमें प्रवेश करनेका जो अधिकार प्राप्त था वह पुनः मिल जाये।