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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हमारे लिए असम्भव है। हम इतना ही कह सकते हैं कि भारतीयोंको [ उनके नेताओं द्वारा ] विश्वास दिलाया गया था कि ऐसा वचन दिया गया है, और अपेक्षित विधेयक न पेश किये जानेपर उनके मन में सरकारके प्रति रोषकी ऐसी प्रबल भावना थी।

भारतीयोंसे सम्बन्धित कुछ अन्य मामले थे जिनकी जाँच करनेका अनुरोध कुछ गवाहोंने हमसे किया; किन्तु हमारी रायमें ये मामले हमारे विचारायें निर्धारित विषयोंकी परिधिमें नहीं आते थे। कथित शिकायतों के बारेमें हमारी जाँच केवल उन शिकायतों तक ही सीमित है जिनका हड़ताल होने में कोई हाथ रहा हो। संघमें भारतीयोंकी सामान्य स्थिति और उनपर थोपी गई निर्योग्यताओंकी जाँच करना और उनके बारेमें अपनी सिफारिशें देनेका अधिकार हमें नहीं है।

हमारे सामने एक ऐसा मामला भी था जिसके बारेमें यद्यपि आरम्भमें हमें यह दुविधा हुई कि शायद वह हमारे विचारार्थं निर्धारित विषयकी परिधिमें नहीं आता, किन्तु अन्ततः हमने उसके ऊपर गवाहोंके बयान ले लिये । इस आशयकी शिकायतें की गई कि संघके कानूनोंको, विशेष रूपसे प्रवासी और परवाना अधिनियमोंको भारतीयोंके खिलाफ बहुत सख्ती और निर्ममताके साथ लागू किया जा रहा है। यह उन विषयों में से एक था जिनका ब्रिटिश भारतीय संवके अध्यक्ष श्री काछलियाने गृह-सचिवको लिखे गये अपने १२ अगस्त १९१३ के पत्र में विशेष रूपसे उल्लेख किया था। 'नीली पुस्तिका ' सी० डी० ७१११ के पृष्ठ ३६ पर प्रकाशित इस पत्र में उन्होंने औपचारिक रूपसे सरकारको सूचित किया है कि भारतीय समाज फिरसे सत्याग्रह करनेका विचार कर रहा है और यह भी कहा है कि जबतक इस पत्र में उल्लिखित वर्तमान कानूनकि अमलमें अन्य बातोंके अलावा उदारता और न्यायकी भावनासे काम नहीं लिया जाता तबतक यह संघर्ष जारी रखा जायेगा।

भारतीय नेताओं और सरकारके बीच हुए अन्य पत्र-व्यवहारोंमें भी उसी विषयका उल्लेख किया गया है, और २१ जनवरी, १९१४ के अपने जिस पत्र में गांधीजीने मन्त्री महोदयको कमीशनकी कार्रवाई में भाग न लेनेके अपने इरादेकी सूचना दी है, उसीमें उन्होंने निम्नलिखित मुद्दोंके बारेमें राहतकी माँग भी की है:

(१) ऑरेंज फ्री स्टेटका सवाल

(२) केप कॉलोनीका सवाल

(३) विवाहका प्रश्न

(४) तीन पौंडी करको रद करनेका प्रश्न

(५) इस आशयका आश्वासन कि भारतीयोंको विशेष रूपसे प्रभावित करनेवाले मौजूदा कानूनोंको न्यायपूर्वक और निहित अधिकारोंको ध्यान में रखते हुए अमल में लाया जायेगा।

इन परिस्थितियोंको देखते हुए हम इस नतीजेपर पहुँचे कि अपनी जाँचकी परिधिमें प्रवासी और परवाना कानूनोंक प्रशासनके मामलेकी जाँचको भी शामिल कर लेना न्यायसंगत है।

जाँचकी शर्तोंको देखते हुए हम अपनी जाँच उपर्युक्त जाँच-विषयों तक ही सीमित रखनेकी बाध्यता अनुभव करते हैं, और निम्नलिखित ऐसे प्रश्नोंपर विचार नहीं कर सकते जिन्हें कई गवाहोंने हमारे विचारार्थ प्रस्तुत किया था:

(क) कि एशियाश्योंपर अचल सम्पत्तिका स्वामित्व पाने और स्वर्ण-कानूनके अन्तर्गत अधिकार अर्जित कर सकनेकी रोक लगानेवाले ट्रान्सवालके कानूनोंको रद किया जाये।

(ख) कि सरकारका एक धारा द्वारा ट्रान्सवालके कस्बोंमें भूमिके अस्थायी पट्टों और स्वामित्वके दस्तावेजोंमें सम्पत्तिको एशियाश्यों के नाम भूमि हस्तान्तरित करने या उन्हें भूमिका उपयोग करने देनेका निषेध गैर-कानूनी माना जाये।

(ग) ऐसे सामान्य प्रश्न--जैसे एशियाश्यों के बच्चोंकी शिक्षाकी उचित सुविधाओंका कथित अभाव; ट्रान्सवालमें पिस्तौल या बन्दूक रखने और ट्रामगाड़ियोंपर सवारीकी मनाही, आदि।