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परिशिष्ट

या आयोगसे उन घटनाओंकी जाँच करनेको कहनेका उसे अधिकार रहेगा, जिनके फलस्वरूप एस्पेरेंजा और एज़कम्बमें कुछ लोगोंकी प्राणहानि हुई थी।

जहाँतक प्रामाणिक सत्याग्रही हड़तालियोंको साधारण अथवा घोर अपराधियोंके लिए बनी जेलोंसे छोड़नेकी आपकी प्रार्थनाका प्रश्न है, न्याय विभागने आपका पत्र आनेसे पहले ही जो थोड़ेसे कैदी जेलोंमें रह गये थे उनकी रिहाईके लिए आदेश दे दिया था।

अपने पत्रके अन्तर्मे आपने जिन शिकायतोंको संक्षेपमें कहा है उनके बारेमें, जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, सरकार कोई कदम उठानेसे पहले आयोगकी सिफारिशोंकी प्रतीक्षा करेगी।

आपका,

ई० एम० जॉर्जेस

गृह सचिव

श्री मो० क० गांधी

प्रिटोरिया

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५९२६) की फोटो-नकलसे।

परिशिष्ट २२
गवर्नर-जनरलसे ऐण्ड्रयूजकी मुलाकात

[ प्रिटोरिया

जनवरी १३, १९१४]

मंगलवारको बिलकुल निजी तौरपर ऐण्ड्यूजसे मेरी बातचीत हुई। मैं उनसे प्रभावित हुआ और मुझे यह लगा कि श्री गांधी के सोचनेके ढंगसे उनका घनिष्ठ परिचय है। उन्होंने कहा कि श्री गांधीकी दो महत्वपूर्ण माँग हैं: (१) किसी भी व्यक्तिकी एक पत्नीको कानूनी मान्यता प्राप्त हो, और (२) तीन- पौंडी कर रद कर दिया जाये। उन्होंने कहा कि इससे कुछ ही कम महत्त्वपूर्ण बात यह मानी जाती है कि कोई ऐसा समझौता हो जाये जिससे दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीयोंको केप प्रवासी अधिनियमके अन्तर्गत केप प्रान्त में निर्वाध रूपसे प्रवेश करनेका जो अधिकार प्राप्त था, वह पुनः स्थापित हो जाये। श्री ऐण्ड्यूजने मुझे भरोसा दिलाया कि श्री गांधी समान-मताधिकारका कोई दावा नहीं करेंगे; और वे एशियाश्योंको दक्षिण आफ्रिकासे बाहर रखनेकी नीतिको भी पूरी तरह स्वीकार करते हैं। श्री ऐण्ड्यूजका कहना है कि जहाँ तक दंगोंकी जाँचका सवाल है, श्री गांधी आयोगको स्वीकार करनेके लिए तैयार हैं। अगर राजनीतिक शत मान ली जाती हैं तो उससे स्थितिका हल निकल आयेगा और फिर आयोगको आगे कुछ करनेकी जरूरत नहीं रह जायेगी। अगर वे स्वीकार नहीं की जातीं तो उससे एक बड़ी कठिन समस्या उत्पन्न हो जायेगी, क्योंकि श्री गांधीने अन्य अनेक देशभायोंके साथ यह प्रतिज्ञा ली है कि जब तक बुनियादी बातों में उन्हें संतुष्ट नहीं कर दिया जाता तबतक वे आयोगको स्वीकार नहीं कर सकते। मैंने कहा कि व्यक्तिगत रूपसे मुझे तो आपके कथनानुसार श्री गांधी जो-कुछ चाहते हैं, उसको स्वीकार कर लेनेमें कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। लेकिन यह हो सकता है कि मन्त्रिगण बिना किसी शर्तके वादे कर देनेमें अपने-आपको असमर्थ पायें, क्योंकि सम्भव है, राजनीतिक परिस्थितिके कारण वे इस

१. यह उपनिवेश कार्यालयको १४ जनवरी, १९१४ को भेजे गये गवर्नर-जनरके खरीतेका अंश है।