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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पत्र में कोई स्पष्ट उल्लेख न देखकर वे बहुत क्षुब्ध हुए थे। उनके असन्तोषको दूर करनेके लिए जनरल स्मट्सने पत्र में आवश्यक शब्द और डलवाये। ये शब्द पत्रके तीसरे वाक्यमें हैं। उन्हें श्री गांधीने खुद ही सुझाया था। सुना है कि उससे उन्हें सन्तोष हो गया है और आज वे नेटाल जा रहे हैं।

[अंग्रेजीसे]

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स: ५५१/५४

परिशिष्ट २१
गृह मन्त्रीका पत्र

प्रिटोरिया

जनवरी २१, १९१४

महोदय,

आपके आज ही के पत्रके संदर्भ मन्त्री महोदयके आदेशानुसार मुझे उत्तर में यह कहना है कि आपका यह कथन ठीक है कि नेटालमें अभी हालमें होनेवाली भारतीयोंकी हड़तालकी जाँच करनेके लिए नियुक्त आयोग (कमीशन) के सदस्योंमें या उसके विचारार्थ विषय-सूचीमें परिवर्तन करनेका कोई विचार नहीं है। मन्त्री महोदयको खेद है तथापि वे यह अवश्य समझते हैं कि कमीशनके बारेमें दी गई अपनी सार्वजनिक घोषणाओंसे आप इतने बँध चुके हैं कि आपका उसके सामने उपस्थित होना सम्भव नहीं रहा। आप जिस कारण किसी अन्य न्यायाधिकरणके सामने अपने विरुद्ध मानहानिका दावा पेश करके पुराने घावोंको हरा नहीं करना चाहते, उसका भी वे अनुमान लगा सकते हैं।

भारतीय सत्याग्रहियों और हड़तालियोंके विरुद्ध निर्देय या अनुचित कार्रवाईके आरोपोंका सरकार इससे पहले भी खण्डन कर चुकी है और आज भी उतने ही जोरदार शब्दोंमें दृढ़तापूर्वक उसका खण्डन करती है। किन्तु चूँकि आपने और आपके मित्रोंने आयोगके सामने उपस्थित न होने और उन आरोपोंके समर्थन में सबूत पेश न करनेका निश्चय कर लिया है, इसलिए सम्भावना तो यह है कि आयोगके सामने जाँच करनेके लिए कोई आरोप ही न रहे। सरकारको इस बातका खेद रहेगा कि [ आप लोगोंके असहयोगके ] फलस्वरूप उसे अपने अफसरोंके आचरणको निर्दोष सिद्ध करनेके लिए जवाबी सबूत पेश करनेका अवसर नहीं मिलेगा। किन्तु वह सोचती है कि अगर जवाब देने योग्य कोई ठोस मामला-ही न हो तो आयोगके सामने उन आरोपोंकी चर्चासे समय ही नष्ट होगा। सरकार चाहती है कि भारतीयोंकी शिकायतोंसे सम्बन्धित अधिक व्यापक प्रश्नोंपर आयोगकी सिफारिशें यथासम्भव जल्दी ही प्राप्त हो सकें ताकि उनके सम्बन्धमें संसदके आगामी सत्रमें प्रस्ताव रखे जा सकें। ऐसी आशा की जाती है कि ये प्रस्ताव यदि संसद द्वारा स्वीकार कर लिये गये तो सन्तोषजनक और स्थायी समझौता होना निश्चित हो जायेगा। सरकारकी दृष्टि में यह बात बहुत महत्त्वपूर्ण है कि लम्बे अरसेसे चले आ रहे विवादोंका निपटारा हो जाये। वह आयोगकी कार्रवाइयों में व्यापक प्रश्नोंके मुकाबले अपेक्षाकृत छोटे-मोटे और नगण्य मुद्दोंकी जाँचके कारण विलम्ब पैदा करके. क्योंकि अप्रत्याशित कारणोंसे पहले ही विलम्ब हो चुका है- अपनी उपलब्धियोंको खतरेमें नहीं डाल सकती। आयोगकी जाँच तो मजबूरन एकतरफा ही होगी। अतः यदि हालमें हुए उपद्रवोंके दौरान सत्याग्रहियों और हड़तालियोंके साथ दुर्व्यवहारके ठीक-ठीक मामले आयोगके सामने रखनेसे भारतीयोंने इनकार किया तो सरकार अपने और अपने अधिकारियोंके विरुद्ध लगाये गये आरोपोंका खण्डन करनेके लिए कोई कदम उठाना जरूरी नहीं समझती, किन्तु उक्त कार्योंको उचित समझने