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परिशिष्ट

आयोगके गठनमें या उसे जाँचके लिए जो मुद्दे सौंपे गये हैं उनमें परिवर्तन करनेके लिए राजी नहीं हो सकती और न वह उन्हें [ जनरल स्मटसको ] ऐसा अधिकार दे सकती है कि वे श्री गांधीको आयोगको रिपोर्टके बारेमें उनके माँगे हुए आश्वासन पहलेसे देकर उनके साथ समझौता कर ले। आयोग अपना काम जैसा तय हो चुका है उसी प्रकार करता रहेगा, लेकिन उससे यह कहा जायेगा कि वह नीतिके बारे में अपनी सिफारिशें इतनी जल्दी पेश कर दे कि सरकार तत्सम्बन्धी कानून संसदके आगामी सत्र में ही पेश कर सके। ऐसी परिस्थितियोंमें यदि श्री गांधी अपनी प्रतिज्ञा के कारण [आयोगके सामने ] गवाही देने में अपनेको असमर्थ पायें तो वे उसकी कार्रवाई में भाग न लें, लेकिन उन्हें अपने चार मुद्दोंपर आयोगकी सिफारिशों और सरकारके इरादोंके बारे में कोई विशेष आशंका नहीं रखनी चाहिए। हाँ, आयोग अपनी रिपोर्ट दे और सरकारको उसपर उचित कार्रवाई करनेका मौका मिले, तबतक के लिए श्री गांधीको सत्याग्रह-संग्राम पुनः शुरू न करनेका वचन देना चाहिए। मन्त्रीने अपना यह आश्वासन भी फिरसे दुहराया कि उन्हें कर्नल वाइलोके विचारोंकी तो कोई जानकारी नहीं है किन्तु उन्होंने कुछ ही समय पूर्व आयोग के अध्यक्ष और श्री एसेलेनका मन टटोलनेकी कोशिश की थी और उनका [मन्त्रीका] विश्वास है कि उनकी सिफारिशें श्री गांधीको सन्तोष देनेवाली होंगी।

इसके बाद मन्त्रीके साथ श्री गांधीकी भेंट और बातचीत होती रही, जिसके फलस्वरूप दोनोंके बीच एक समझौता हो गया है। यह समझौता विगत कलकी तारीखके पत्र-व्यवहारमें, जो साथमें भेजा जा रहा है, शब्द-बद हुआ है। आप देखेंगे कि उसमें श्री गांधीको कोई आश्वासन तो नहीं दिया गया है, किन्तु सरकारने यह जरूर कहा है कि वह चाहती है कि समझौता जल्दी ही हो जाये । श्री गांधी और उनके मित्र, आयोगके सामने गवाही देनेके लिए नहीं आयेंगे, किन्तु जनरल स्मटसने श्री गांधीसे भेंट करना मंजूर करके उन्हें अपने विचार सुनाने और समझानेका जो मौका दिया है उसके श्वजमें वे [श्री गांधी और उनके मित्र ] सर बेंजामिन राबर्ट्रेसनको उनकी अपनी गवाही तैयार करनेमें मदद करेंगे। वे लोग आयोगकी रिपोर्ट की और संसदमें तत्सम्बन्धी विधेयक पेश होनेकी राह देखेंगे और तबतक के लिए सत्याग्रह स्थगित रहेगा। उसमें प्रामाणिक सत्याग्रहियोंकी रिहाईको माँग की गई है और मंत्रीने उसके उत्तर में समझाया है कि वह तो सरकार कर ही चुकी है। भारतीयों की हड़तालके समय, हड़तालियोंके साथ किये गये दुर्व्यवहारके आरोपोंके सम्बन्धमें, श्री गांधीके अपने-ही सुझावपर, उन्होंने और उनके मित्रोंने अब आगे और कोई कार्रवाई न करनेकी बात कही है। सरकार इन आरोपोंका जोरदार खण्डन करती रही है और अब भी उसका वही मत है, किन्तु इस सम्बन्धमें अपने पक्षमें अब वह गवाही पेश नहीं करेगी। लेकिन साथ ही उसने आयोगसे एस्पेरेन्जा और माउण्ट एजकम्बमें गोली चलनेकी वारदातोंकी जाँच करनेको कहनेका अपना अधिकार सुरक्षित रखा है। इस पत्र-व्यवहारमें आप देखेंगे, श्री गांधीने अपने पुराने चार मुद्दोंमें एक नया मुद्दा और जोड़ दिया है; उन्होंने माँग की है कि कानूनका न्यायोचित अमल हो और निहित अधिकारोंका समुचित आदर किया जाये। माँग इतनी अस्पष्ट है कि उससे किसी हानिकी संभावना नहीं है और उसके कारण कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए। उन्होंने सन् १८९५ के नेटाल अधिनियम १७ के मातहत दिये जानेवाले परवानेके विषयमें भी अपनी माँगमें थोड़ा-सा फर्क किया है। पहले उनकी माँग यह थी कि वार्षिक परवानेकी जगह स्थायी परवाना दिया जाये, लेकिन अब मालूम पड़ता है वे यह चाहते हैं कि भूतपूर्व गिरमिटिया भारतीय गिरमिटकी अवधि समाप्त करके - सुब्रायनके लगातार तीन साल तक यहाँ रहकर, अधिवासका अधिकार प्राप्त करें, और उसके बाद मामले में हुए निर्णयके अनुसार--परवाना लेनेकी फिर जरूरत ही नहीं होनी चाहिए। लेकिन यह तो तफसीलकी बात है और सरकार इस सम्बन्धमें निःसन्देह आयोगकी सिफारिशसे प्रभावित होगी। मैं यह भी कहता हूँ कि कल शामको जब श्री गांधीको श्री जोर्जेसका पत्र मिला तो जिस हेतुसे उन्होंने भार- तीयोंके प्रति दुर्व्यवहारके आरोपोंके सम्बन्ध में आगे कुछ कार्रवाई न करनेका निश्चय किया है उसका उस