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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और दूसरी चीज है वह हार्दिक सहायता, जो हमें भारतसे मिली है। अब हम तबतक कुछ नहीं करेंगे जबतक कि सर बेन्जामिन रॉबर्ट्रेसन यहाँ पहुँच नहीं जाते। यहाँ हम पूरे सम्मान तथा विश्वासके साथ उनका स्वागत करेंगे, क्योंकि एक तो आपने हमें बताया कि उनमें हम एक घनिष्ट मित्र पायेंगे और दूसरे उन्हें वाइसरायने नियुक्त किया है, जिनके हम बहुत कृतज्ञ हैं । परन्तु जबतक आयोगको किसी तरह ऐसा रूप नहीं दे दिया जाता कि वह हमें और अधिक स्वीकार्य हो, तबतक तो मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखता जिससे सत्याग्रहको पुनरावृत्तिको टाला जा सके । हम जानते हैं कि इसके परिणाम स्वरूप बहुत कष्ट उठाने पड़ेंगे। और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हम यह सब नहीं चाहते हैं, परन्तु यदि ऐसा करना आवश्यक हुआ तो हम उससे पीछे भी नहीं हटेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]

टाइम्स ऑफ इंडिया, १-१-१९१४

परिशिष्ट २०
गवर्नर-जनरलके खरीतेका अंश

प्रिटोरिया

जनवरी २२, १९१४

बादमें हम दो के बीच हुई बातचीत में जनरल स्मट्सने मुझे बताया कि श्री गांधीने शासनसे सम्बन्धित जो दो मुद्दे उठाये उनके कारण तो कोई कठिनाई नहीं होगी और अगर विवाह-सम्बन्धी प्रश्नके बारेमें उनके प्रस्तावका आशय हमने ठीक समझा है तो उसके बारेमें भी नहीं होगी । लेकिन तीन-पौंडी कर खत्म करना काफी मुश्किल होगा, यद्यपि अन्त में उसे खत्म तो करना ही पड़ेगा । इसलिए श्री गांधीको उनको माँगकी सारभूत वस्तु तो दी जा सकती है लेकिन जनरल स्मट्सका कहना था कि [ इस सुलहके शाब्दिक ] रूपके विषय में वे श्री गांधीकी इच्छाओंकी पूर्ति कैसे करेंगे, यह उन्हें अभी साफ नजर नहीं आ रहा है। वे कहते थे कि अगर वे नीतिके विषय में सरकार द्वारा नियुक्त आयोगको उपेक्षा करके और हाल ही में जो कुछ हुआ है उसे नजर-अन्दाज करके श्री गांधीसे समझौता कर लेते हैं तो वे और उनके साथी बड़ी अशोभन और शायद असह्य स्थितिमें पड़ जायेंगे; साथ ही अगर कोई ऐसा समझौता शक्य है जिसे सब पक्ष अन्तिम मानकर स्वीकार कर लें तो उन्होंने कहा कि उसे कार्यान्वित करने में वे अनावश्यक देर नहीं लगाना चाहेंगे और तदर्थ जरूरी कानून अगले ही सत्रमें पास करा लेना चाहेंगे। लेकिन जबतक उन्हें आयोगकी सिफारिशोंका बल प्राप्त न हो तबतक उन्हें इस बातमें सन्देह है कि वे वैसा कानून पास करा सकेंगे। इसी तरह उन्हें इस बातमें भी सन्देह है कि यदि पेश की जानेवाली हर एक भारतीय शिकायतपर गवाही ली जानी हो तो आयोग अपनी सिफारिशें समय रहते दे सकेगा। सवालपर इस दृष्टिसे विचार किया जाये तो श्री गांधीका विकल्पके रूपमें दिया हुआ दूसरा सुझाव मान लेनेसे, यानी, आयोगमें सर जेम्स रोज-इन्स या श्री शाश्नरको वृद्धिसे भी स्थितिमें कोई सुधार नहीं होगा। इसलिए यदि श्री गांधीके इस सुझावके खिलाफ कोई दूसरी आपत्ति न भी होती तो भी वह स्वीकार्य नहीं ठहरता। जनरल स्मटसकी राय यह है कि अगर श्री गांधीके साथ कोई प्रगट वादा किये बिना ऐसा किया जा सके तो नीतिके प्रश्नोंके विषय में आयोगकी जाँच-पड़तालका कार्य उनके द्वारा निर्दिष्ट चार मुद्दों तक ही सीमित रहना चाहिए।

मन्त्रिमण्डलसे और विचार-विमर्श करनेके बाद जनरल स्मटसने श्री गांधी तक पहुँचा देनेके लिए सर बेंजामिन रॉबर्टसनको अपना निर्णय सूचित किया। उनके निर्णयका सारांश यह था कि सरकार