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परिशिष्ट १९
गो० कृ० गोखले द्वारा जारी किया गया वक्तव्य

[ दिसम्बर ३१, १९१३]

दक्षिण आफ्रिकाकी वस्तु-स्थितिके बारेमें देशमें जो चिन्ता व्याप्त है और इस विषयपर मुझसे जो पूछ-ताछ की जा रही है, उसको देखते हुए मैं निम्नलिखित वक्तव्य प्रकाशित करना जरूरी समझता हूँ:

दिसम्बर १८ को कलकत्ते में मुझे नेटाल भारतीय संघका तार मिला। उसमें यह लिखा था कि दक्षिण-आफ्रिकाके भारतीयों में एक तीव्र भावना है कि जिस जाँच आयोगकी नियुक्ति की गई है, उसे स्वीकार न किया जाये, क्योंकि उसके तीन सदस्यों में से दो के बारे में यह सर्व विदित है कि वे भारतीय समाजके विरोधी हैं। मुझसे सलाह माँगी गई है कि क्या किया जाना चाहिए। श्री गांधी और अन्य सत्याग्रही नेता उस समय जेलमें थे और यह आभास नहीं मिला था कि आयोगका किस ढंगसे काम करनेका इरादा है। ऐसी परिस्थितिमें मेरे लिए कोई निश्चित सलाह दे पाना सम्भव नहीं था और कलकत्तेके दो प्रतिष्ठित मित्रोंसे – जिनसे मैं आसानीसे मिल सकता था, जल्दीसे सलाह लेकर मैंने वापस तारसे जवाब दिया कि जो भी रास्ता अपनाया जाये, वह इस बातको ध्यान में रखते हुए ही कि समाजकी यह भावना कितनी प्रबल है और दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीय मित्र इस सम्बन्ध में क्या सलाह देते हैं। मैंने संघसे यह भी कहा कि वह सावधानीसे यह अंदाजा लगाये कि कौन-सा रास्ता भारतीयोंके उद्देश्यके लिए अधिक हानिकारक होगा: यानी गवाही देनेसे इनकार करना या सविरोध कार्यवाही में भाग लेना। साथमें मैंने यह भी लिखा कि बम्बईमें सर फीरोजशाह मेहतासे सलाह लेकर मैं फिर तार दूंगा। मैं कलकत्तेसे उसी दिन रवाना हो गया और २० को बम्बई पहुँचा। वहाँ पहुँचते ही मैंने समाचार पत्रों में उस वक्तव्यका सारांश पढ़ा जो सर विलियम सॉलोमनने कार्रवाई प्रारम्भ करते हुए दिया था और श्री गांधी तथा अन्य सत्याग्रही नेताओंकी रिहाईका समाचार भी पढ़ा। रायटरके समाचारसे मालूम हुआ कि रिहा नेता मंत्रियोंसे मिलनेके लिए प्रिटोरियाको रवाना हो गये हैं; इसलिए मैंने स्वभावतः यह निष्कर्ष निकाला कि संघ-सरकार समाजके साथ किसी समझौतेपर पहुँचनेको इच्छुक है और समाचारोंमें जो यह बताया गया है कि श्री गांधी प्रिटोरिया जा रहे हैं, उसका सम्बन्ध भी इस सिलसिले में प्रारम्भ हो चुकी किसी बातचीतसे है। मैंने तुरन्त ही श्री गांधीसे तार द्वारा सम्पर्क स्थापित किया और पिछले दस दिनोंमें हमारे बीच अनेक तारोंका आदान-प्रदान हुआ है। सभी तारोंको प्रकाशित करना सम्भव नहीं है, परन्तु मैं समझता हूँ कि मैं यहाँ इतना तो कह हो सकता हूँ कि इस तार-सम्पर्क में श्री गांधीको उस दृष्टिकोणसे सहमत करानेका हर प्रयत्न किया गया जो अब स्पष्ट ही इस देश में जोर पकड़ता जा रहा है-यानी यह कि सर विलियम सोलोमनके वक्तव्य, नेताओंकी रिहाई और आयोगको सर बेंजामिन राबर्ट्रेसनके शिष्टमण्डल द्वारा भारत सरकारकी ओरसे दी गई मान्यताके बाद आयोगका बहिष्कार करना एक व्यावहारिक अकुशलता होगी, क्योंकि इसका मतलब होगा, बड़ी कठिनाईके बाद भारतीय मामलेको सारे संसारके सामने खोलकर रखनेका जो एक महत्त्वपूर्ण अवसर मिला है उसे खो देना और शायद उन लोगोंको भी रुष्ट कर देना, जिनसे, इस देश में और इंग्लैंडमें भी, हमारे उद्देश्यको बड़ी कारगर मदद मिल रही है। तथापि श्री गांधी इस दृष्टिकोणके अनुसार काम करने में अपने आपको तबतक असमर्थ पाते हैं जबतक कि संघ-सरकार आयोगके गठनमें किसी प्रकारसे सुधार नहीं कर देती और जो सत्याग्रही जेलमें हैं, उन्हें रिहा नहीं कर देती। उनका कहना है कि वे और भारतीय समाज