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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
(२) गवर्नर-जनरलके खरीतेका अंश

प्रिटोरिया

दिसम्बर ३१, १९१३

आप देखेंगे कि श्री गांधीका वर्तमान रुख उतना सख्त नहीं है जितना उन्होंने अपने रिहा होनेके तुरन्त बाद आम जनतामें बोलते समय अपनाया था। जनरल स्मट्स श्री गांधोके अन्तिम सुझावोंके सम्बन्ध में क्या उत्तर दें, इसपर अब भी विचार कर रहे हैं और मैं समझता हूँ कि सम्भवतः वे निजी मुलाकातका अवसर देनेकी प्रार्थना स्वीकार कर लेंगे । फिर भी आयोगके गठनके सम्बन्धमें श्री गांधोके सुझाव स्वीकृत किये जानेके विषय में मुझे सन्देह है। भारतीय समाज तथा भारतीय मजदूरोंके मालिकों द्वारा नामजद दो और सदस्योंको आयोगमें लेनेसे आयोगका न्यायसे सम्बन्धित स्वरूप समाप्त हो जायेगा और शायद इसपर सर विलियम सॉलोमन इस्तीफा दे दें। इस वैकल्पिक सुझावपर कि आयोगको केवल एक व्यक्ति-आयोग कर दिया जाये और उसमें केवल सर विलियम सॉलोमन रहें, उपर्युक्त आपत्ति नहीं की जा सकती :श्री एसेलन और कर्नल वाइली, दोनों सदस्यता से इस्तीफा देनेमें आनाकानी भी नहीं करेंगे तथापि मात्र श्री गांधींके कहनेपर सरकारके लिए अपने आयोगका पुनर्गठन करना आसान नहीं होगा; क्योंकि इसका तो यह अर्थ होगा कि सरकार यह स्वीकार करती है कि जिन दो सदस्योंको आयोगसे हटानेको प्रार्थना की गई थी वे वास्तव में पूरी तरह निष्पक्ष नहीं थे । सम्भव है जनरल स्मटस और श्री गांधी मिलकर समस्याका कोई हल खोजने में समर्थ हो सकें।

पिछले सोमवारको जनरल स्मट्सने मेरे सचिवको बताया कि मुझे सर विलियम सॉलोमनका एक निजी पत्र मिला है जिसमें उन्होंने इस बातपर खेद व्यक्त किया है कि श्री गांधी, श्री पोलक और श्री कैलेनबेकने अपनी स्वतन्त्रताका नाजायज फायदा उठाया है। पत्रमें यह भी सूचना दी गई है कि यदि भारतीयोंने जिनके हितके लिए आयोगकी नियुक्ति की गई है, उसका बहिष्कार किया तो जाँच एकपक्षीय ही साबित होगी।सर विलियमने आगे यह भी लिखा है कि मैंने यह नियुक्ति अपने व्यक्तिगत सम्मानके विपरीत केवल एक कर्तव्य भावनासे स्वीकार की क्योंकि मेरे सामने इस प्रकार वर्णन किया गया कि अध्यक्षका काम करनेसे मुझे जनताकी सेवा का अवसर मिलेगा । चूँकि अब ऐसा लगता है कि आयोग कोई लाभप्रद काम नहीं कर सकेगा, मेरा ऐसा सन्देह करनेको मन करता है कि मैं काम करता रहूँ इसका क्या औचित्य है? जनरल स्मट्सने कहा कि मैं अपने जवाब में इस बातकी ओर ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि भारतीयोंका गवाही देनेसे अपनेको रोकने में और पुनः सत्याग्रह, हड़ताल तथा कानून भंग करने में अन्तर है।यदि दुबारा अशान्ति ही करनी थी तब तो यह प्रश्न उठता है कि क्या जाँच की भी जाये । तथापि,यदि भारतीय केवल यही नीति रखें वे गवाही नहीं देंगे, तब भी आयोग सरकारी और अन्य यूरोपीय गवाहियोंकी, हड़ताल तथा बुरे वर्तावके आरोपोंकी, वारदातोंको सुन सकेगा और जो भी लिखित सामग्री सरकार आयोगके सामने रख सके उसके सहारे शिकायतके आम प्रश्नपर विचार कर सकेगा। फिर यह भी वांछनीय है कि भारत सरकार जिस सरकारी गवाहको भेजे उसे सुनने का मौका दिया जाये। ऐसा लगता था कि जनरल स्मट्सको आशा थी कि ये तर्क सर विलियमको काम करते रहनेमें प्रेरक होंगे । स्पष्टतः उन्हें यह भय था कि अन्यथा श्री गांधी कहीं उस सरकारी आयोगको जिसके गठनको वह पहलेसे ठीक नहीं मानते थे, भंग करके अपनी प्रतिष्ठा अधिक बढ़ाने में मदद पा जायेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफिस रेकडूंस (सी० ओ० ५५१/४६)।

१. गवर्नर-जनरलने उपनिवेश कार्यालयको एक खरीतेमें गांधीजी और गृह मन्त्रीके बीच हुए पत्र-व्यवहार की प्रतियाँ और विभिन्न अखवारोंकी कतरनें भेजी थीं। यह उसीका एक अंश है ।