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परिशिष्ट १६
लॉर्ड हार्डिजका भाषण

मद्राससे आये एक संदेश में कहा गया है कि वाइसराय (लॉर्ड हार्डिज) ने भारतीयों द्वारा दिये गये मानपत्रों के उत्तर में भाषण करते हुए कहा कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी स्थितिके सम्बन्ध में राज्य पिछले कई वर्षोंसे काफी चिन्तित रहा है और अपनी शक्ति-भर प्रवास करता रहा है कि उनके साथ समुचित बर्ताव हो।

उन्होंने यह भी कहा: “ आप जिस संघ-अधिनियमकी शिकायत करते हैं उसका नतीजा यह हुआ कि व्यवहारतः दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंका प्रवास बन्द हो गया है हालाँकि उसमें एशियाश्योंके साथ भेदभावकी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है । फिर भी, हम प्रतिवर्ष एक सीमित संख्या में शिक्षित भारतीयों के लिए प्रवेशकी सुविधा हासिल करने में सफल हो गये हैं, और हमने संघके मौजूदा निवासी भारतीयों को अधिकसे-अधिक सहूलियतें दिलानेके लिए भी विशेष प्रयत्न किया है। हमारे प्रयत्नोंका ही फल है कि विधिके प्रश्नोंपर न्यायालय में अपील करनेके अधिकारकी व्यवस्था और अधिवासकी ऐसी परिभाषा सम्मिलित कर ली गई है जिसके अनुसार गैर-गिरमिटिया भारतीयोंकी स्थिति सन्तोषप्रद ढंगसे निश्चित की गई है।

“इस समय हम अधिनियम द्वारा लगाये गये उन अन्य प्रतिवन्धों के बारेमें लॉर्ड कके साथ लिखा-पढ़ी कर रहे हैं, जिसपर आपको आपत्ति है और हमें भरोसा है कि हमारी लिखा-पढ़ीका कुछ परिणाम अवश्य निकलेगा । आपने कहा कि राज्यको बदलेकी कार्रवाई करनी चाहिए, परन्तु आपने यह नहीं बतलाया कि ठीक-ठीक कौनसे कदम उठाये जाने चाहिए। हमने १९११ में गिरमिटिया भारतीयोंका नेटाल भेजा जाना बन्द कर दिया था, और तब नेटालके बागान-मालिकोंने अपना एक प्रतिनिधि भारत भेजकर हमसे अपने उस निर्णयपर पुनः विचार करनेके लिए कहा था। इससे पता चलता है कि उनका निष्क्रमण बन्द कर देनेसे बागान मालिकोंको कितनी मुश्किल हो गई थी, लेकिन मेरा खयाल है कि कुल मिलाकर पूरे दक्षिण आफ्रिकापर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा था । दुर्भाग्यकी बात तो यह है कि हमें आसानीसे ऐसा कोई साधन नहीं सूझता जिसके जरिये दक्षिण आफ्रिकी सरकारके सत्ताधीशोंको भारत अपने क्षोभसे अवगत करा सके।

हालमें दक्षिण आफ्रिकामें आपके देशवासियोंने अपनी समस्थाओंका फैसला स्वयं ही करानेका प्रयत्न किया है। उन्होंने अपने हिसाबसे आपत्तिजनक और अन्यायपूर्ण कानूनोंके खिलाफ सत्याग्रह आन्दोलनका संगठन किया है। हम लोग भी, जो दूरसे उनके संघर्षको देख रहे है, उन कानूनोंको आपत्तिजनक और अन्यायपूर्ण कहे बिना नहीं रह सकते । उन्होंने दण्डकी पूरी जानकारी रखते हुए ही उन कानूनोंको भंग किया और वे पूरे साहस तथा धैर्यके साथ उसका दण्ड भोगनेके लिए तैयार हैं। अपने इस प्रयास में उनको भारतीय जनताकी हार्दिक तथा उत्कट सहानुभूति प्राप्त है, और उन लोगोंकी भी जो मेरी तरह भारतीय न होते हुए भी इस देशकी जनताके साथ सहानुभूति रखते हैं। परन्तु बिलकुल हालकी घटनाओंसे परिस्थितिमें एक वड़ा गम्भीर मोड़ आ गया है। हमने देखा है कि इस बातका बड़ा व्यापक प्रचार किया गया है कि सत्याग्रह के विरुद्ध ऐसे कदम उठाये जाते हैं जो अपनेको सभ्य कहनेवाले किसी भी देशमें एक क्षणके लिये भी बरदाश्त नहीं किये जायेंगे। दक्षिण आफ्रिकाकी जिम्मेदार सरकारने इससे दो टूक इनकार किया है, हालाँकि उसके इनकार में भी इकरार है, जिससे मुझे यह नहीं लगता कि सरकारने कुछेक कदम

१. यह भाषण २४ नवम्बर, १९१३ को दिया गया था।