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परिशिष्ट

वे धर्मेंसे यहूदी हैं और धन्वेसे वास्तुकार। ) और मुझपर न्यायाधीशके सामने ट्रान्सवालमें निषिद्ध प्रवासियोंको प्रवेश करनेके लिए उकसाने और प्रवेश करने में मदद करनेके आरोप लगाये गये । सरकारी वकीलने एक दिनकी मोहलत माँगी । चूँकि हमने संघर्ष में भाग न लेनेका वचन नहीं दिया, इसलिए हमें जमानत नहीं दी गई । इस समय हम जेलमें हैं और मुकदमेकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। हमें आशा है कि कल हमें सजा मिल जायेगी । यह तो नहीं कहा जा सकता कि सजा सपरिश्रम होगी या सादी, किन्तु बहुत करके हम लोगोंको लगभग तीन-तीन महीनेको सजा दी जायेगी। यह ठीक ही है कि इसके बदले जुरमाना देनेका विकल्प हुआ, तो हम जुरमाना देने से इनकार कर देंगे। मैंने तत्काल गृह-मन्त्रीको तारसे परिस्थितिको सूचना दी और बताया कि मैं श्री गोखलेके कहनेपर शुक्रवारको भारत रवाना होनेवाला था। अब यह सोचना उनका काम रह गया कि मुझपर मुकदमा चलाया जाये या नहीं। उन्होंने जवाब दिया कि मुकदमा चलते रहना चाहिए । इसलिए अब मैं भारत नहीं जाऊँगा । मैं सुझाव देना चाहता हूँ कि साम्राज्यीय सरकारके सामने यह विषय रखा जाये और उसमें यह तथ्य स्पष्ट किया जाये कि संघ- सरकारने श्री गोखलेके पास मेरे पहुँचनेमें बाधा डाली है। मैं उनकी प्रार्थनापर भारत सरकारके सामने दक्षिण आफ्रिका में भारतीय प्रश्नको रखने में उनकी मदद करनेके खयालसे भारत जाना तय कर चुका था।

मुझे यकीन है कि लॉर्ड महोदय इस बातसे सहमत होंगे कि मैं जिन परिस्थितियों में पड़ गया था, उनमें मैंने जो-कुछ किया, उसके सिवा कुछ भी न करना गौरवास्पद न होता । भारतीय समाजपर मेरा जो प्रभाव है, कमसे-कम वह तो तत्काल ही समाप्त हो जाता।

मैं यह भी कह देना चाहता हूँ कि समुद्री किनारे (दि कोस्ट) बागानोंमें जो हड़ताल फैली है, वह बिलकुल स्वयंस्फूर्त है और सच कहें तो हमारी सलाहके एकदम खिलाफ है। क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि वह इतनी बढ़ जाये कि हम व्यवस्था न कर सकें। बहरहाल अब सरकारको इसकी जिम्मेदारी उठानी ही पड़ेगी। श्री फैलनबैक और मुझे आशा है कि हम दोनोंको अव काफी दिनों तक कोई जिम्मेदारी नहीं उठानी पड़ेगी और हम जेलमें आरामसे रहेंगे । विशेष तौरपर श्री गांधी और हम लोगोंपर पिछले कुछ हफ्तों में कामका बड़ा बोझ पड़ा है और कुछ ही दिनोंके लिए क्यों न हो, हमारा सार्वजनिक जीवनसे विश्राम हमें बहुत राहत देगा। श्री गांधीपर कल डंडीमें गिरमिटिया कानूनके अन्तर्गत तीन अलग- अलग अभियोग लगाकर उन्हें ९ महीनेकी सपरिश्रम सजा दी गई। मुझे लगता है कि इस बीचमें जबतक मैं जेलसे बाहर नहीं आ जाता, लॉर्ड महोदयको संघर्षके सारे समाचार 'इंडियन ओपिनियन ' से ही प्राप्त करते रहना पड़ेगा।

विनयपूर्वक आपका

हेनरी एस० एल० पोलक

[अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफिस रेकस; ५५१/५२


१. लॉर्ड ऍम्टहिलने इसकी एक प्रति कलोनियल ऑफिसको दिसम्बर ५ को भेजी थी और सारी परिस्थितिपर अपना मत व्यक्त करते हुए लिखा था कि संघ सरकारको गांधीजीके साथ समझौतेका रुख अपना लेनेमें ही संघर्षको समस्या हल हो सकती है, जैसा कि साम्राज्य सरकारका भी मत प्रतीत होता है।