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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पहुँच गया था। उस समय वे ३ पौंडी करके खिलाफ सत्याग्रह करनेवालोंके दलका नेतृत्व कर रहे थे । दलमें १,५०० व्यक्ति थे । चूँकि सरकारने उनसे किसी अन्य स्थितिमें वास्ता रखनेसे इनकार कर दिया था और उनके भोजन आदिका जबरदस्त बोझ हम लोगोंपर डाल दिया था, वे लोग अपनी गिरफ्तारीके लिए ट्रान्सवालकी अदालत में दाखिल हो गये थे । श्री गांधीने मुझे सावधान कर दिया था कि अगर मैं नेटालसे ट्रान्सवाल जाता हूँ, तो नेरी गिरफ्तारीकी सम्भावना है । एक विदेशीकी हैसियतले मैंने भारतीय सत्याग्रहियोंको गिरफ्तार किये जानेकी धमकीका मुकाबला करनेको प्रायः सलाह दी थी और इसे देखते हुए मुझे लगा कि एक अंग्रेज होकर मेरे लिए यह शर्मकी बात होगी कि मैं अब ऐसे जोखिमसे डरकर पीछे पाँव हटा लूँ और इसलिए मैं बेझिझक श्री गांधीके पास जा पहुँचा। हम लोगोंको चर्चा करते हुए अभी आधा घंटा ही हुआ था कि एक पुलिस सव-इन्स्पेक्टर और एक मुख्य प्रवासी-अधिकारी वहाँ पहुँचे और डंडीका एक वारण्ट दिखाकर उन्होंने श्री गांधीको गिरफ्तार कर लिया। श्री गांधीपर नेटालसे गिरमिटिया भारतीयों को हटानेका अभियोग लगाया गया था। वे लोग उन्हें तत्काल गाड़ी में बिठाकर ले गये । और ये सैकड़ों व्यक्ति नेताके अभाव में कुछ न समझ पाये कि उन्हें रातको कहाँ ठहरना है अथवा दूसरे दिनको रसद उन्हें कैसे प्राप्त होगी। अधिकारियोंने तो उनकी देखरेख अथवा व्यवस्थासे इनकार कर ही दिया था, तब मेरे पास इसके सिवा और कोई चारा नहीं बच रहता था कि मैं उन लोगोंको ग्रेलिंगस्टाड तक ले जानेकी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लूँ। हमने रात मेलिंगस्टाडके खुले मैदान में बिताई और दूसरे दिन बालफोरमें, जो वहाँसे १३ मील आगे पड़ता है। पुलिस सब-इन्स्पेक्टर और मुख्य प्रवासी-अधिकारीने मुझसे परिस्थिति विषयक चर्चा करनी चाही। उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें आदेश है कि वे सभी व्यक्तियोंको ट्रान्सवालमें निषिद्ध प्रवासी होनेके अभियोगमें गिरफ्तार करें और उन्हें नेटालके चार्ल्सटाउन में निष्कासित कर दें। उसके बाद नेटाल्के अधिकारीगण स्थानीय अभियोगमें उन्हें वहाँ गिरफ्तार करेंगे। उन्होंने मुझसे कहा कि मैं सत्याग्रहियोंको रेलगाड़ीमें ले जाकर बिठानेमें उनकी मदद करूँ, ताकि किसी तरहका उपद्रव न होने पाये और जो पुलिसका दस्ता आया हुआ है, उसकी मदद न लेनी पड़े। मैंने कहा कि जो परिस्थिति है, उसमें मैं बड़ी खुशीसे उनसे सहयोग करूँगा, क्योंकि उन्होंने दलके सब लोगोंको खिलाने, ठहराने आदिकी व्यवस्थाका भार अपने ऊपर ले लिया था। मेरी यह जिम्मेदारी उन्होंने ली है या नहीं, इसके विषय में उन्होंने मुझे कुछ बताया नहीं था। इसलिए मैंने उनसे कहा कि जबतक वे लोगोंको अथवा मुझे गिरफ्तार नहीं कर लेते, तबतक मैं उनके साथ कूच करता रहूँगा । और अगर वे मुझे गिरफ्तार करना चाहें, तो मैं उसके लिए तैयार हूँ। उन्होंने जवाब में कहा कि उनकी ऐसी कोई मन्शा नहीं है और मुझे मेरी इस बात के लिए धन्यवाद दिया। बादमें जब लोग गिरफ्तार कर लिये गये, तो उनमें कुछ लोग जो अपेक्षाकृत जोशीले थे और जो मुझे नहीं जानते थे, उन्होंने श्री गांधी द्वारा हिदायत मिले बिना रेलगाड़ी में चढ़नेसे इनकार कर दिया और दलके लोगोंको अपने साथ लेकर पुनः कूच करने लगे। मैं फौरन उनके सामने जाकर खड़ा हो गया और उनसे प्रार्थना की कि वे सत्याग्रहीके रूपमें अपनी स्थितिका स्मरण करें । अन्ततोगत्वा वे मेरे साथ स्टेशनपर चलनेके लिए राजी हो गये और शान्तिपूर्वक गाड़ीमें चढ़ गये । मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि अगर मैं उनके साथ न होता, तो उन्हें गाड़ी में बिठाना सम्भव नहीं था और पुलिसकी बेअकली और सेनाकी पशुतासे तंग होकर शायद वे हिंसापर आमादा हो जाते । व्यवस्था के लिए जिम्मेदार पुलिस अफसरों और बादमें यहाँके न्यायाधीशने मुझे इस कामके लिए विशेष धन्यवाद दिया। चूँकि मैं ठीकसे नहीं जानता था कि चार्ल्सटाउनमें क्या-कुछ हो सकता है, इसलिए आवश्यकता पड़नेपर अधिकारियोंको शान्ति बनाये रखने में मदद करनेकी दृष्टिसे सत्याग्रहियोंकी पहली गाड़ीके साथ ही मैं रवाना हो गया। थोड़ी देरके बाद मुझे गिरफ्तार कर लिया गया और फोक्सरस्ट ले जाया गया । कल श्री कैलेनबैक ( निस्सन्देह लॉर्ड महोदय इस नामसे सुपरिचित हैं। आप टॉलस्टॉय फार्मके मालिक हैं, जहाँ पिछले संघर्ष में सत्याग्रहियोंके भरण-पोषणका इन्तजाम किया गया था । श्री कैलेनबैकको राष्ट्रीयता जर्मन है।