पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/६२२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५८२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

असाधारण है । यद्यपि कूच करनेवालोंके दलोंमें कोयला खानों और इसी तरहके अन्य स्थानोंके गिर- मिटिया मजदूर ही हैं और उन्हें दण्ड-भयके अभाव में अनुशासित रहनेकी आदत नहीं है, तो भी श्री गांधी के प्रति उन्हें अटूट विश्वास है और वे उनकी इच्छाओंका अक्षरशः पालन करते हैं। श्री गांधी के सहयोगियों में जोहानिसबर्गके अनेक तरुण भारतीय हैं जिन्होंने पिछले सत्याग्रह संघर्ष में प्रमुख रूपसे भाग लिया था । दलके साथ जो घुड़सवार पुलिस थी, उसने मुझे बताया कि उनमें से कुछ लोगोंको क्रोमद्राईमें गिरफ्तार कर लेनेका हुक्म उनके पास है और वे उन्हें गिरफ्तार करके स्टैंडर्टन ले जायेंगे।

आन्दोलनका खर्च

श्री गांधीने मुझे बताया कि सत्याग्रह आन्दोलनपर रोज २५० पौंड खर्च हो रहा हैं और यदि आन्दोलनको सफल बनाना है, तो इस समय प्राप्त होनेवाले चन्देकी अपेक्षा उन्हें भारतसे अधिक रकम माँगनेकी जरूरत पड़ेगी। इस समय प्रतिमास ३,००० पौंड मिल रहा है । उन्हें इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारत हमारी इस जरूरतको पूरा करेगा । चार्ल्सटाउन क्षेत्रको स्त्रियों और हड़तालसे प्रभावित अन्य क्षेत्रों में लोगोंकी मदद की जाती है । इसके सिवा कूवमें रैंड तक जानेवाले दलके प्रत्येक व्यक्ति- पर एक शिलिंग रोजका खर्च बैठ रहा है । फोक्सरस्टके रोटी बनानेवालोंको रोटियाँ पहुँचानेका ठेका दे दिया गया है और ये रोटियों रोज एक निश्चित स्टेशनसे रवाना की जा रही हैं। चीनी इस दृष्टिसे दी जा रही है कि वह स्फूर्तिदायक और शक्ति संरक्षक है । लगभग ५ बोरे चीनी रोज खर्च हो रही है। हड़ताली अपनी रोटियोंमें एक छेद कर देते हैं और उसमें मुठीसे अपने हिस्सेकी चीनी डाल लेते हैं । हरएक आदमीके पास पानी पीनेके लिए एक-एक गिलास भी है । वे उसे जहाँ मौका मिलता है, भर लेते हैं। पिछली रात हमारा दल पार्डेकॉपर्ने ठहरा था । वहाँ उसका अभूतपूर्व स्वागत हुआ । स्थानीय भारतीय दूकानदारोंने पूरे दलको, जिसमें २,००० से ऊपर हड़ताली थे, चाय पिलाई। गांधीजीने उन्हें बताया कि चाथ हमारी नित्य रसदका अंग नहीं है, एक नैमित्तिक वस्तु है । जब श्री गांधी दलके साथ रैंडके लिए रवाना हो गये, तब श्री कैटेनबैक और मैं फोक्सरस्ट लौट आये । नगरसे १३ मीलको दूरीपर हमें १०० कुलियोंका एक दल और मिला । उन्होंने भी अपने पहले हड़ताली भाइयोंकी तरह आज सवेरे बड़ी आसानीके साथ सीमाको पार कर लिया था। मुझे मालूम हुआ कि जोहानिसबर्ग जानेवाले इन लोगों में से कुछ वे हैं जिनपर न्यूकैसिलमें अपना गिरमिट भंग करनेके आरोप लगाये गये थे। और जेलों में जगह न होनेके कारण उन्हें उनकी अपनी व्यक्तिगत जमानतपर छोड़ दिया गया था । वे भोजन और निवासको सुविधा मिलनेपर मुकदमा चलने तक वहीं रुके रहनेके लिए तैयार थे, किन्तु स्थानीय न्यायाधीशने इसे स्वीकार नहीं किया और इसलिए वे कूचमें शामिल होनेके लिए जोहानिसबर्ग रवाना हो गये।

[अंग्रेजीसे]

इंडियन ओपिनियन, १९-११-१९१३