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२१. पत्र: गृह-सचिवको

[फीनिक्स]
अप्रैल १५, १९१३

महोदय,

भारतीय विवाहोंके सम्बन्धमें लिखे गये मेरे इसी १ तारीखके पत्रके[१] उत्तरमें आपका १० तारीखका पत्र मिला।

माननीय गृह-मन्त्रीके प्रति उचित सम्मान रखते हुए, मेरा नम्र निवेदन है कि यदि मैंने श्री सर्लके फैसलेको ठीक समझा है तो उसमें निश्चय ही एक नये सिद्धान्तकी स्थापना की गई है। अभीतक गैर-ईसाई भारतीय विवाहोंको प्रवासी विभाग और सर्वोच्च न्यायालयके सर्वोच्च अधिकारी (मास्टर), दोनोंने ही मान्य किया है। जिन लोगोंके विवाह उनके अपने-अपने धर्मोकी प्रथाओंके अनुसार हुए हैं उनके बच्चे अबतक अन्तःराज्यीय जायदादोंमें वैध उत्तराधिकारी माने गये हैं। किन्तु श्री सर्लके फैसलेके अनुसार ऐसे बच्चे अब उनके उत्तराधिकारी नहीं माने जा सकते। जैसा कि साथ नत्थी की गई रिपोर्टसे प्रकट होगा, सर्वोच्च न्यायालयके नेटाल प्रान्तीय डिवीजनके सर्वोच्च अधिकारी इस प्रश्नको उठा भी चुके हैं।

मैं यह जानता हूँ कि विवाह-अधिकारियोंके सम्मुख पंजीकृत सभी विवाह आवश्यक रूपसे ईसाई-विवाह नहीं होते। किन्तु ज्यादातर गैर-ईसाई भारतीयोंके विवाह, विवाह-अधिकारियोंके सम्मुख सम्पन्न नहीं होते। जान पड़ता है, संघके वैध निवासी भारतीयों के इन विवाहों और भारतमें सम्पन्न और भारतीय कानूनके अनुसार वैध माने गये अन्य सभी विवाहोंपर श्री सर्लके फैसलेका विपरीत प्रभाव पड़ा है।

मुझे विश्वास है, सरकार यह अपेक्षा नहीं रखती कि ये विवाह फिरसे संघके विवाह-अधिकारियोंके सम्मुख सम्पन्न हों या पंजीकृत किये जायें जिससे वे इस देशके कानूनकी निगाहसे भी वैध माने जा सकें। सरकार प्रवासी अधिकारियोंको वर्तमान व्यवहारमें बाधा न डालनेका आदेश देकर हमारे साथ इस मामलेमें जो रियायत करना चाहती है, मैं उसपर कृतज्ञता प्रकट करता हूँ। किन्तु इस प्रकार जो राहत दी जायगी, वह पूरी तरह कारगर नहीं होगी। जिसका यह एक कारण तो है ही कि किसी भी प्रशासकीय कार्रवाईसे उन कानूनी परिणामोंको नहीं रोका जा सकता, जिनका श्री सर्लके फैसलेसे पैदा होना निश्चित है।

मैंने अपने पत्रमें बहुपत्नीत्वका प्रश्न नहीं उठाया। इस प्रश्नसे सम्बन्धित मुद्दा उतना बड़ा या व्यापक नहीं है। श्री सर्लके फैसलेसे सम्बन्धित मुद्दा ज्यादा बड़ा है। किन्तु चूंकि आपके पत्रसे यह ध्वनि निकलती है कि दक्षिण आफ्रिकी कानूनमें बहुपत्नीत्व मान्य नहीं है, मुझे मन्त्री महोदयका ध्यान नेटालके १९०७ के अधिनियम २ की

  1. १. देखिए “पत्र: गृह-मन्त्रीको", पृष्ठ १-२ ।