पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/६१८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५७८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

संघ-सरकार सदासे यही समझती आई है कि नेटालमें जन्मे भारतीयोंको केपमें प्रवेश करनेको पूरी छूट देना असम्भव है और इसे स्पष्ट करनेके लिए मन्त्रीकी दिनांक २० दिसम्बर, १९१० की टिप्पणी, ९०२ ए० के अनुच्छेद ७ और ८ का हवाला देना ही काफी होगा । वह टिप्पणी श्वेत पुस्तिका (सी० डी० ५५७९ ) में सह-पत्र संख्या ८ के रूपमें प्रकाशित की गई थी। आपने ही मेरे नाम इसी वर्ष ९ अप्रैलके अपने तारमें यह मसला पहले-पहल उठाया था। तबतक मन्त्रीको तो जानकारी भी नहीं थी कि इस विषय में आपके समाजके कोई अपने विचार भी हैं या नहीं।

हाल ही में रद किये गये, केप और नेटालके प्रवासी कानूनों द्वारा विहित शैक्षणिक परीक्षा पास करके इन दोनों प्रान्तोंमें प्रवेश करनेके सभी प्रान्तोंके शिक्षित भारतीय निवासियों के अधिकारोंको हमारे नये कानूनके खण्ड ४ के उप-खण्ड (२) में पूरी तौर पर सुरक्षित रखा गया है, और फिर आपने स्वयं ही अपने पिछले (दूसरी जुलाईके) पत्रमें बतलाया था कि नेटालके उपनिवेश में जन्मे भारतीयों में से अधिकांशने भारतीय सरकारी स्कूलोंमें शिक्षा प्राप्त की है, और उनमें केपकी शैक्षणिक परीक्षा पास करने लायक पर्याप्त योग्यता मौजूद है । आपने यह भी लिखा था कि सभी जानते हैं कि केप अधिनियम लागू रहनेकी सारी अवधिमें दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे शायद ही किसी भारतीयने, केपका निवासी न होने पर भी, केपमें जाकर बसनेकी कोशिश की होगी, क्योंकि वहाँ उनके लिए कोई गुंजाइश ही नहीं है । सरकार इन सभी तथ्योंको देखते हुए यह सोच भी नहीं सकती कि अब भारतीय समाज नये कानून द्वारा प्रान्तीय सीमायें बरकरार रखनेकी बात को लेकर क्यों शिकवा-शिकायत करना चाहता है । जनरल स्मट्सको आशा है कि नये कानून द्वारा उत्पन्न स्थिति लोगोंको स्वीकार्य होगी। आपको यह भी मालूम होगा कि संसदके पिछले सत्र में इस विषयपर विस्तृत चर्चा हुई थी और केप प्रान्तके निर्वाचन क्षेत्रका प्रतिनिधित्व करनेवाले सदस्योंने नेटालमें जन्मे अशिक्षित भारतीयोंको किसी भी प्रकारसे केपमें प्रवेश करनेकी अनुमति देनेकी बातपर जोरदार आपत्ति की थी।

दूसरी चीज यह कि नये अधिनियममें की गई “अधिवासी" की परिभाषाके अन्तर्गत भूतपूर्व भार तीयोंकी स्थितिके सम्बन्धमें सरकारका मत है कि अधिनियमके खण्ड ५ के अनुच्छेद (च) की व्यवस्थाएँ उन भारतीयों पर लागू होंगी जो अपने गिरमिटकी अवधि समाप्त होनेके बाद तीन वर्ष या इससे अधिक काल तक वार्षिक परवाने या “पास” लेकर नेटालमें रह चुके हों या जो लौटनेका विचार रखकर प्रान्तसे बाहर गये हों, और यह भी कि यह मत अधिनियमके खण्ड ३० में की गई अधिवासीकी परिभाषाको ध्यान में रखकर स्थिर नहीं किया गया है।

तीसरे यह कि जनरल स्मटसको ओरेन्ज फ्री स्टेट विधि-पुस्तिकाके परिच्छेद ३३ द्वारा अपेक्षित ज्ञापनके प्रश्नके सम्बन्ध में कोई कठिनाई नहीं पड़ी, और उनका तो ख्याल है कि आफ्रिका प्रवेश पानेवाले सभी शिक्षित भारतीयोंको ओरेन्ज फ्री स्टेटमें भारतीयोंकी निर्योग्यताएँ बतला देना लाभकारी रहेगा। इन निर्योग्यताओंको अधिनियमके खण्ड १९ के अन्तर्गत अपेक्षित ज्ञापनके प्रपत्रपर ही मुद्रित करवानेका प्रबन्ध किया जायेगा।

चौथे यह कि जनरल स्मट्स इसपर बिल्कुल तैयार है कि संघ-भरके विवाह सम्बन्धी कानूनोंके सम्मेलनका उपयुक्त अवसर मिलनेपर और यह सिद्ध हो जानेपर कि विभिन्न धार्मिक समुदायोंके लोग विशेष विवाह अधिकारियोंकी नियुक्तियों चाहते हैं और इन विभिन्न समुदायों में ऐसे पदोंपर नियुक्तियोंके लायक उपयुक्त व्यक्ति मौजूद हैं, वे मुसलमानोंके अतिरिक्त अन्य सभी समुद्रार्थों के लोगोंके लिए ऐसे अधिकारियोंकी नियुक्तियोंके लिए व्यवस्था करेंगे। वर्तमान प्रथा यह है कि संघके किसी भी प्रान्तमें इस समय निवासके अधिकारी या आगे चलकर संघ में प्रवेशकी अनुमति पानेवाले प्रत्येक भारतीयको एक पत्नीको प्रवेशको अनुमति दी जाती है, चाहे उस पत्नीसे उसका विवाह जिस धार्मिक रीतिसे सम्पन्न हुआ था उसमें बहुपत्नी- विवाहोंकी अनुमति रही हो, या वह पत्नी उसकी विदेशोंमें रहनेवाली अनेक पत्नियोंमें से