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परिशिष्ट
प्रमाणपत्र की शर्तें

१. कि उल्लिखित व्यक्तिके............प्रान्तमें लौटनेपर यह प्रमाणपत्र पड़ताली प्रवासी अधिकारीको लौटा दिया जायेगा।

२. कि यदि उल्लिखित व्यक्ति इसमें उल्लिखित तिथिसे एक वर्ष पूरा हो चुकनेके बाद...............प्रान्त में पुनः प्रवेश करना चाहेगा, तो इस प्रमाणपत्र द्वारा दिया गया संरक्षण समाप्त हो गया माना जायेगा और उल्लिखित व्यक्तिको अधिनियमको अपेक्षाएँ पूरी करनी पड़ेंगी ।

३. यदि प्रवासी अधिकारी के सामने यह सिद्ध कर दिया जाये कि इसमें उल्लिखित व्यक्तिने प्रमाण- पत्र देते समय किसी खास बातमें झूठा शिनाख्ती ब्यौरा दिया था, तो यह प्रमाणपत्र अमान्य करार दिया जा सकेगा ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २६-७-१९१३

शिनाख्ती निशानियाँ

परिशिष्ट ८
ई० एम० जॉर्जेसका पत्र

प्रिटोरिया

भगस्त १९, १९१३

प्रिय श्री गांधी,

प्रवासी विनियमन अधिनियम, १९१३के विषय में हमारे बीच हुए पत्र व्यवहारके सिलसिलेमें निवेदन है कि आपके द्वारा उठाये गये मुद्दोंपर मंत्री महोदय पूरी तरह विचार कर चुके हैं; और मैं जनरल स्मटसके अनुरोधपर आपको उनका मत सूचित कर रहा हूँ।

१. आपने पहला मुद्दा यह उठाया था कि भविष्य में गिरमिटिया भारतीयोंकी सन्तान अधिनियमके खण्ड ५ की परन्तुक धाराका लाभ उठाकर केप प्रान्तमें प्रवेश नहीं कर सकेगी। मैं जनरल स्मटसके अनुरोध पर ही लिख रहा हूँ कि यह एक बिल्कुल ही नया मुद्दा है; जनवरी-फरवरी १९१२ में जनरल स्मटसके साथ अपने पत्र-व्यवहार में आपने भारतीयों और सरकारके बीच सभी विवादग्रस्त मुद्दे उठाये थे पर इसके बारेमें आपने तब कुछ भी नहीं लिखा था। आपने निजी सचिवके नाम अपने २९ जनवरीके पत्र और १ फरवरीके तार में केप और नेटाल प्रान्तके प्रवासी कानूनों में व्यवस्थित शैक्षणिक परीक्षा पास करनेपर संघके अन्य भागोंसे इन प्रान्तों में प्रवेश करनेके शिक्षित भारतीयोंके अधिकारका हवाला दिया था और १५ फरवरी, १९१२ के अपने पत्रमें आपने स्पष्ट कहा था कि यदि वर्तमान वैधानिक स्थिति बरकरार रखी जाये अर्थात् प्रान्तोंके तत्सम्बन्धी कानूनों द्वारा व्यवस्थित शैक्षणिक परीक्षाएँ पास करनेपर शिक्षित एशियाइयोंके ट्रान्सवालसे नेटाल या केप (और शायद नेटालसे केप और केपसे नेटाल ?) में प्रवेश करनेके अधिकारको बरकरार रखा जाये, तो सत्याग्रहियोंको कोई शिकायत नहीं रह जायेगी ।

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