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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

खण्ड १३ अधिकारीको यह सत्ता प्रदान करता है कि वह इस बातके यथेष्ट प्रमाणके रूपमें किसी यात्री द्वारा जुटाथा साक्ष्य मंजूर कर सकता है कि जहाजसे उतरनेपर उस यात्रीका निर्वाह-व्यय उसके मित्र उठा सकते हैं और वह सरकारपर भार नहीं बनेगा।

खण्ड १४ इस प्रकार है :-

प्रवासी अधिकारी अधिनियमके खण्ड पाँचके अनुच्छेद (छ) के अन्तर्गत किसी पत्नी या बच्चेके सम्बन्धमें पेश किये गये प्रार्थनापत्रके सिलसिलेमें, प्रसंगानुसार विवाह या जन्मके प्रमाणपत्रकी विधिपूर्वक प्रमाणित प्रति माँग सकता है; या यदि ऐसे विवाह प्रमाणपत्र या जन्म प्रमाणपत्रको प्रति पेश न की जा सकती हो तो प्रवासी अधिकारी एक ऐसा सरकारी प्रमाणपत्र पेश करनेके लिए कह सकता है जिसपर---

(क)वैसा प्रमाणपत्र देनेके लिए सक्षम किसी अधिकारीके हस्ताक्षर हों और जिसमें उस अधिकारीने अपनी व्यक्तिगत जानकारी के आधारपर कहा हो कि अमुक तिथिको उल्लिखित परिस्थितियों में दोनोंका विवाह सम्पन्न हुआ था; था ( यथास्थिति) यह कि प्रमाणपत्र में उल्लिखित माता- पिताके अमुक तिथिको, अमुक स्थानपर वह सन्तान हुई थी; या

(ख) एक ऐसा प्रमाणपत्र पेश करनेके लिए कह सकता है जिसपर वैसा प्रमाणपत्र देनेके लिए सक्षम एक अधिकारीके हस्ताक्षर हों और जिसमें कहा गया हो कि विवाहकी परिस्थितियों और तिथिके सम्बन्धमें या बच्चेकी जन्म तिथि और माता-पिता के सम्बन्धमें उसके सामने शपथपूर्वक मौखिक साक्ष्य या अन्य साक्ष्य पेश किया गया है, और वह मौखिक साक्ष्य पा अन्य साक्ष्य, उसके सम्बन्धमें उस अधिकारीकी रायके साथ, उस प्रमाणपत्रसे संलग्न है।

‘प्रवासी अधिकारी इस विनियममें उल्लिखित किसी भी प्रमाणपत्रमें उल्लिखित व्यक्तियोंकी शिनाख्त के सिलसिलेमें उस प्रमाणपत्रके साथ अधिक सन्तोषप्रद साक्ष्य प्रस्तुत करनेके लिए कह सकता है, और सन्देह होनेपर प्रवासी अधिकारी इस सम्बन्धमें आश्वस्त होनेके लिए आवश्यक और अधिक साक्ष्य माँग सकता है कि उस प्रमाणपत्र में उल्लिखित किसी पत्नी या सन्तानको सचमुच ही इस अधिनियम के खण्ड पाँचके अनुच्छेद (छ) के अन्तर्गत निषिद्ध प्रवासी नहीं ठहराया जा सकता।'

खण्ड १५ द्वारा अधिकारीको यह सत्ता प्रदान की गई है कि वह किसी व्यक्तिके निषिद्ध प्रवासी होनेका सन्देह होनेपर उसको गिरफ्तारीका वारंट निकाल सकता है।

खण्ड १६ से १८ तक का सम्बन्ध रोगों और डॉक्टरी जाँच-पड़तालसे सम्बन्धित है।

खण्ड १९ काफी बड़ा है; उसका विषय अपीलकी विधि है । उसमें अपीलकी सूचनाका स्वरूप निश्चित किया गया है। अपीलकी सुनवाईके कालमें प्रार्थीको नजरबन्दीके लिए नियत स्थानपर रखा जा सकता है।

खण्ड १९ का उपखण्ड (३) थोड़ा महत्वपूर्ण है, इसलिए हम नीचे उसे पूरा उद्धृत करते है:-

' यदि किसी प्रवासी अधिकारीके अपने मुकाममें कोई ऐसा बोर्ड न हो, जिसकी बैठक सामान्यतः वहाँ होती हो या हो रही हो या होनेवाली हो, तो [जहाँ ऐसा बोर्ड हो] उस क्षेत्रके लिए जिम्मेदार प्रवासी अधिकारीसे तार द्वारा लिखा-पढ़ी करेगा और अपीलकर्ताको सूचित करेगा कि यदि वह अपनी अपीलकी सुनवाई के दौरान उपस्थित रहना चाहे तो उसे प्रवासी अधिकारी द्वारा अपने ऊपर लगाई जाने- चाली शर्तोंके अधीन और उसीके द्वारा तैनात पहरेमें जल अथवा थल-मार्गसे जिस स्थानपर क्षेत्राधिकारसे युक्त बोर्ड की बैठक होनेवाली हो उस स्थान तक जाना होगा और आवश्यक हुआ तो उसी पहरेमें लौटना होगा । अपने यातायात और पहरेका खर्च उस अपीलकर्ताको देना पड़ेगा। उस स्थानपर पहुँचनेके बाद अपील- कर्ताके साथ इस विनियमके उपखण्ड (२) की व्यवस्थाके अनुसार कार्रवाई की जायेगी।

उपखण्ड (४) के अन्तर्गत अधिकारी अपीलकर्ताको एक अस्थायी अनुमतिपत्र दे सकता है । अपील- बोर्ड गवाह तलब कर सकता है; अपीलकर्ता साक्ष्य पेश कर सकता है; वकील उसका प्रतिनिधित्व कर