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परिशिष्ट ६ प्रवास - नियमन विधेयक और अधिनियमका मसविदा १ विधेयक जैसा पेश किया गया ३. संघकी किसी भी अदालतको, संघ अथवा किसी प्रान्तमें अधिवासके प्रश्नके अलावा अन्य किसी भी मामले में मन्त्री, किसी निकाय (बोर्ड) प्रवासी अधिकारी, या किसी [ न्यायालयके] मास्टरकी किसी कार्रवाई, कार्य, आदेश अथवा वारंटपर पुनर्विचार करने, उसे खण्डित करने, उलटने, उसके विरुद्ध निषेधादेश देने या उनमें अन्यथा हस्तक्षेप करनेका अधिकार नहीं होगा बशर्ते कि ऐसी कार्रवाई पा कार्यं, इस अधिनियम के अन्तर्गत किया गया हो या ऐसा आदेश या वारंट इस अधिनियमके अधीन जारी किया गया हो और जिस व्यक्तिके खिलाफ निषिद्ध प्रवासीके रूपमें कार्रवाई की जा रही हो उसकी नजर- बन्दी या उसे संघ अथवा किसी प्रान्तसे हटानेके सिलसिले में हो । अधिनियम जैसा गजटमें प्रकाशित हुआ ३. (१) संघकी किसी भी अदालतको, ऐसे कानूनी प्रश्नोंको छोड़ कर जिन्हें किसी निकायने इस खण्डमें बताये अनुसार [न्यायालय के निर्णयके लिए ] सुरक्षित रखा हो, अन्य किसी भी मामले में मन्त्री, किसी भी निकाय, प्रवासी अधिकारी या मास्टरकी किसी कार्रवाई, कार्य, आदेश अथवा वारंटपर पुनर्विचार करने, उसे खण्डित करने, उलटने, उसके विरुद्ध निषेधादेश देने या उनमें अन्यथा हस्तक्षेप करनेका कोई अधिकार नहीं होगा; बशर्ते कि ऐसी कार्रवाई या कार्य इस अधिनियम के अन्तर्गत किया गया हो, या ऐसा आदेश या वारंट इस अधिनियमके अधीन जारी किया गया हो और जिस व्यक्तिके खिलाफ निषिद्ध प्रवासीके रूपमें कार्रवाई की जा रही हो, उसकी नजरबन्दी या उसे संघ अथवा किसी प्रान्तसे हटानेके सिलसिले में हो । (२) कोई निकाय स्वेच्छासे, या अपील करनेवाले व्यक्ति अथवा किसी प्रवासी अधिकारीके अनुरोधपर किसी ऐसे कानूनी प्रश्नको, जो उस निकाय द्वारा पिछले खण्डके अन्तर्गत सुनी गई किसी अपीलके फल- स्वरूप उत्पन्न हो, [ ऐसे मामलोंके सम्बन्धमें ] न्याया- धिकार रखनेवाले किसी उच्चतर न्यायालय में सुनवाईके लिए सुरक्षित रख सकता है; और ऐसे प्रश्नको एक विशेष मामलेके रूपमें उक्त ढंगकी अदालतकी राय लेने के उद्देश्यसे उस अदालत के रजिस्ट्रारको भेजेगा; इस प्रकार विचारार्थं भेजे गये प्रश्नपर उक्त अदालत सुनवाई कर सकती है और वह जो जरूरी समझे वह निकायसे माँग सकती है । वह इस मामलेपर यदि उसके सम्बन्धमें उक्त ढंगकी कोई सूचना प्राप्त हुई हो तो उसको ध्यान में रखते हुए अन्यथा उसके १. इंडियन ओपिनियन में विधेयकका मसविदा ( जिस रूपमें उसे संसद में पेश किया गया था ) और गजटमें प्रकाशित अधिनियम की विभिन्न धाराओंको समानान्तर स्तम्भों में प्रकाशित किया गया था ताकि एक ही नजर में देखा जा सके कि उनके रूपमें क्या-क्या संशोधन किये गये ।