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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि हमारे प्रयत्नोंके बावजूद समाजको तीसरा संघर्ष प्रारम्भ करना पड़ा तो वह निश्चय ही बहुत कटु और दुःखदायी होगा और उसमें पहलेसे अधिक कष्ट झेलने पड़ेंगे । यह स्पष्ट है कि ऐसे कठिन संघर्ष में भाग लेनेके लिए हजारों लोग तैयार नहीं होंगे, किन्तु विधेयककी मंशाको समझते हुए जितने लोग भी उसके विरुद्ध हैं, वे सब उन लोगों के कार्यों का समर्थन तो कर ही सकते हैं जिनमें कारावास या उसके सिवा सरकार कोई अन्य कठिनतर दंड देना चाहे तो उसके कष्टोंको सहनेकी इच्छा और क्षमता हो। उन्हें केवल इसीलिए अलग नहीं खड़े रहना है कि वे जेल नहीं जा सकते। वे उन लोगोंकी देखभाल कर सकते हैं, जिन्हें कष्ट-सहन करनेवाले अपने पीछे छोड़ कर जायेंगे । वे सरकारको यह सूचित कर सकते हैं कि राहतकी माँग करनेमें वे उन लोगोंके साथ हैं, और वे पूरे मनसे आन्दोलनका समर्थन करते हैं। मैं मानता हूँ कि इस सभामें ऐसे दो वर्गोंके लोग ही मौजूद हैं, और चूँकि विचाराधीन विधेयकसे इसके सभी सदस्य समान रूपसे प्रभावित होते हैं, इसलिए इसमें एक ही भावना व्याप्त है । आशा है, मैंने जिस तारका उल्लेख अपने भाषणके प्रारम्भमें किया उसपर सरकार ध्यान देगी । किन्तु, यदि दुर्भाग्यवश वह ऐसा नहीं कर पाई तो मुझे आशा है कि यह सभा उस एकमात्र प्रस्तावको पास कर देगी, जो इसके समक्ष पेश किया जायेगा।

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स: ५५१/३९


परिशिष्ट ५
(१) गृह मन्त्रीका तार

[ केप टाउन ]

मई २९, १९९३

आपका इसी माइको २७ तारीखका तार । आपके द्वारा उठाये गये सभी मुद्दोंपर सरकार और संसदने पूरी तरह विचार किया। विवाहके प्रश्नपर लोकसभा (हाउस ऑफ असेम्बली) हालमें स्वीकृत संशोधन द्वारा जिस हदतक गई है उससे आगे जानेको तैयार नहीं है । और यदि भारतीय समाजको वह सन्तोषजनक न लगे तो मन्त्री महोदयको गम्भीरतापूर्वक सीनेटसे यह कहनेके लिए सोचना पड़ेगा कि सम्बन्धित व्यवस्था हटा दी जाये, और मामले भविष्य में उन्हीं तरीकोंसे प्रशासनिक स्तर पर तय करनेके लिए छोड़ दिये जायें जिन्हें मन्त्री महोदय कह चुके हैं कि वे अपनानेको तैयार हैं, और वस्तुतः इस समय अपना रहे हैं । मन्त्री महोदयने लिहाजके तौर पर ही श्री अलेक्ज़ेंडर द्वारा प्रस्तावित संशोधनपर विचार किया था और इसी आश्वासन पर उसे स्वीकार किया था कि उससे भारतीयोंकी शिकायतें दूर हो जायेंगी । दक्षिण आफ्रिकामें जन्मे भारतीयोके केप प्रान्त में प्रवेश और निवास करनेके अधिकारके बारेमें अब आप जो बात कह रहे हैं उसे संसद स्वीकार नहीं करेगी। जिन प्रश्नोंको लेकर समझौता हुआ था उनमें से केपमें भारतीयोंकी स्थितिसे किसीका सम्बन्ध नहीं था, और केपकी संसदको यह असंदिग्ध अधिकार था कि वह अपने बनाये हुए प्रवासी कानूनकी व्यवस्थाओं में ऐच्छिक परिवर्तन कर सके, संसद केप प्रान्तके जनमतके ध्यानसे ही आपके उठाये हुए मुद्दोंपर आपको माँग पूरी करनेमें असमर्थ रही। आपको यह तो मानना ही चाहिए