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परिशिष्ट ३
गृह मन्त्रीका तार

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अप्रैल १५, १९१३

आपका ९ तारीखका पहला तार। मन्त्रीके आदेशानुसार आपके मुद्दोंका निम्नलिखित उत्तर दे रहा हूँ। खण्ड तीनकी हद तक, अधिवासके मामलोंको छोड़कर अपील निकाय सभी मामलों में अदालतोंका स्थान ले लेंगे ! पहले भी ऐसा किये जानेकी काफी पुख्ता नजीरें हैं । खण्ड ४, उपखण्ड १ की धारा (क) के बारे में आपने जो पहला मुद्दा उठाया है वह खण्ड ५ (च) से पूरा हो जाता है। फ्री स्टेटमें प्रवेश निषेधका प्रस्ताव नया नहीं है और उसे पहलेवाले विधेयकमें भी रखा गया था। खण्ड ४, उपखण्ड ३ में एक ही बन्दरगाहपर उतरनेकी बन्दिश सम्बन्धी व्यवस्था अनुभवके आधार पर प्रशासनिक सुविधाकी दृष्टिले आवश्यक है; इसका मंशा उन बन्दरगाहोंसे अनधिकृत प्रवेशको रोकना है जहाँ सरकार निषिद्ध प्रवासियोंकी गतिविधियोंपर कोई सन्तोषजनक नियन्त्रण नहीं रख पाती । खण्ड ५ के उपखण्ड (च) में आपके सुझाये परिवर्तनका अर्थ तो एक ऐसा नया अधिकार देना हो जायेगा जिसका अभीतक अस्तित्व नहीं था । जहाँतक उस खण्डके उपबन्धोंका सवाल है, मन्त्री महोदयकी रायमें अधिवासके प्रमाणपत्र नेटालके मामले में कोई अधिकार प्रदान नहीं करते। ट्रान्सवालके मामले में १९०८ के अधिनियम ३ का खण्ड २ ऐसे अधिकार देता है; और उनका अवश्य सम्मान किया जायेगा। किन्तु मन्त्री महोदय यह नहीं मानते कि किसी भारतीयके मामले में ये अधिकार किसी यूरोपीयसे कुछ बढ़कर हो सकते हैं; क्योंकि यूरोपीय लम्बी अनुपस्थितिके कारण दक्षिण आफ्रिका अधिवास खो सकता है ।

वर्तमान शैक्षणिक परीक्षा पास कर सकनेवाले शिक्षित भारतीयों द्वारा केपसे नेटाल और नेटालसे केपमें जा बसनेके सवालपर मन्त्री महोदयने पिछले वर्षं विधेयकके द्वितीय वाचनके समय अपने भाषण में स्थिति स्पष्ट शब्दोंमें बता दी थी। उन्होंने कहा था कि दक्षिण आफ्रिकामें एशियाश्योंके आन्तरप्रान्तीय भावा- गमनपर जो वर्तमान निन्यत्रण है, उन्हें और अधिक कठोर नहीं बनाया जायेगा। इस नीतिको छोड़नेका कोई मंशा नहीं है, यह नीति कुछ राहत देकर अथवा प्रशासनिक कार्रवाईको नरम बनाकर कार्यान्वित की जायेगी । सर्ल-निर्णयके बारेमें सरकार पहले ही कह चुकी है कि पत्नियों और नाबालिग बच्चोंके बारेमें उसका वर्तमान नीतिको छोड़नेका कोई इरादा नहीं है। आपके दूसरे तारके संदर्भ में चुने गये शिक्षित प्रवेशार्थीकी पत्नी और नावालिग बच्चोंको उसके साथ आनेपर प्रवेश मिलेगा और यदि वे प्रवेशार्थी द्वारा अधिवासका अधिकार प्राप्त कर लेनेके बाद आते हैं तो वे छूटके अन्तर्गत माने जायेंगे। ज्ञापनके बारेमें, जैसा कि पिछले वर्ष आपको बताया गया, शपथपूर्वक ज्ञापन देना प्रवेशको व्यवस्था नहीं है, और मन्त्री महोदय ऐसा नहीं मानते कि इससे कोई कठिनाई उत्पन्न होगी। फ्री स्टेटमें एशियाई समाज निवास हो नहीं करता, इसलिए ऐसी कल्पना नहीं की जा सकती कि जिन सम्पूर्ण शिक्षित भारतीयोंको भारतीय समाजके हित में प्रवेश दिया जायेगा वे किसी भी दिन उस प्रान्तमें बसना चाहेंगे। यदा-कदा वहाँ जानेकी अनौपचारिक व्यवस्था है। अन्तिम मुद्देके विषय में, पिछले वर्षका मसविदा दोषपूर्ण था इसलिए उसमें कुछ शब्द जोड़े गये है । अन्तर्मे, मन्त्री महोदय आपके तारों और पत्रादिमें सत्याग्रहके उल्लेखकी जोरदार भर्त्सना करते हैं। विचाराधीन प्रश्नके बारेमें सारे संवमें भावनाकी तीव्रताको देखते इसीकी पूरी सम्भावना है कि तारों आदिमें जो कुछ सोचकर धमकियाँ दी गई थीं, नतीजे उसके बिल्कुल उलटे निकलें।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ७-६-१९१३