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परिशिष्ट २
प्रस्ताव : फ्रीडडॉर्पकी सार्वजनिक सभामें

जोहानिसबर्ग

मार्च ३०, १९१३

प्रस्ताव १

ब्रिटिश भारतीय संवके तत्त्वावधान में आयोजित ब्रिटिश भारतीयोंकी यह सार्वजनिक सभा सर्वोच्च न्यापालयके केप प्रान्तीय डिवीजनके उस निर्णयपर गहरा दुःख और निराशा प्रकट करती है, जिसमें भारतके महान् धर्मोकी रीतिके अनुसार सम्पन्न गैर-ईसाई भारतीय विवाहोंको, जो भारत में कानूनी तौर पर मान्य हैं, गैर-कानूनी करार दिया गया है और इस प्रकार भारतके महान् धर्मोका अपमान किया गया है। यह सभा सरकारसे सादर किन्तु उत्कट अनुरोध करती है कि वह इस विषम स्थितिके निराकरणके लिए एक ऐसा कानून पास करे जिसके द्वारा संघ-भर में ऐसे विवाहोंको कानूनी मान्यता प्राप्त हो जाये ।

प्रस्ताव २

इस सभाके विचारमें, यदि पहले प्रस्तावमें उल्लिखित निर्णयपर तर्कसंगत ढंगसे अमल किया गया तो उसके परिणाम स्वरूप भारतीयोंके पारिवारिक सम्बन्धोंमें भारी अव्यवस्था आ जायेगी; बसे-बसाये घर उजड़ जायेंगे; पति-पत्नी एक-दूसरेसे अलग हो जायेंगे; [ भारतीयोंकी] वैध सन्तान अपने उत्तराधिकारसे वचित हो जायेगी या संघके कुछ हिस्सोंमें, विरासत और स्वामित्व हस्तान्तरण करसे सम्बन्धित उत्तरा धिकार कानूनके लाभसे वंचित हो जायेंगी; और जिन भारतीयोंको दक्षिण आफ्रिकामें रहनेका अधिकार है। उनके कानून-सम्मत स्त्री-बच्चोंको संघमें प्रवेश नहीं मिलेगा।

प्रस्ताव ३

सभा यह भी सोचती है कि उक्त निर्गयसे पैदा होनेवाले सवाल दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंके लिए इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि जबतक माँगी गई राहत नहीं दे दी जाती तबतक अपनी तथा अपनी स्त्रियोंकी प्रतिष्ठाको रक्षाके लिए समाजका यह अनिवार्य कर्तव्य है कि वह सत्याग्रहका सहारा ले।

प्रस्ताव ४

ब्रिटिश भारतीयों की यह सभा अध्यक्ष महोदयको यह अधिकार देती है कि वे उपर्युक्त प्रस्तावोंकी प्रतियां संघ-सरकार, साम्राज्य सरकार और भारत सरकारको भेज दें।

प्रमाणित किया जाता है कि प्रतिलिपि शुद्ध है।

अ० मु० काछलिया

अध्यक्ष

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफिस रेकड्स: ५५१/३९

१२-३६ अ० मु० काछलिया अध्यक्ष