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परिशिष्ट


परिशिष्ट १
सर्ल-निर्णयका पूरा पाठ

अब हम सुविख्यात सर्ल-निर्णयका पूरा पाठ दे सकनेकी स्थितिमें हैं। न्यायमूर्ति श्री सर्लने निर्णय देते हुए कहा : इस मामले में निर्णय देने से पहले यदि मुझे उसका और अच्छी तरह अध्ययन करनेका समय मिल सकता तो मुझे खुशी होती, किन्तु एक स्टीमरको रवानगी होनेवाली है । अतः यह फौरी मामला बन गया है और इसपर तत्काल निर्णयकी आवश्यकता है । इसके तथ्योंको लेकर कोई विवाद नहीं है। प्रार्थी एक भारतीय है जो सन् १९०२ से पोर्ट एलिजाबेथमें रहता आया है। उसने पिछले वर्ष भारत जानेके लिए अनुमतिपत्र प्राप्त किया और वहाँ जाकर उसने मुस्लिम रीतिसे बाई मरियम नामक एक स्त्रीसे “विवाह " कर लिया । यह स्त्री अब १९०६ के अधिनियम ३० के अन्तर्गत प्रार्थीक साथ एक प्रवासीके रूपमें इस देश में प्रवेश पाना चाहती है। यह बात मान ली गई है कि वह १९०६ के अधिनियम ३० के खण्ड ३ (क) की शर्तोंको पूरा नहीं करती, और जबतक उसे अधिनियम के खण्ड ४ (ङ) के अन्तर्गत प्रार्थीकी पत्नी न माना जाये, वह प्रवेशका दावा नहीं कर सकती । प्रतिबन्धीके मामले में मुझे जो कठिनाई प्रतीत हुई वह यह थी कि याचिका (पिटीशन) के साथ भारतके एक मजिस्ट्रेटका प्रमाणपत्र संलग्न था जिसमें कहा गया था कि वह बाई मरियम प्रार्थीकी पत्नी है। किन्तु मैं समझता हूँ कि यह प्रमाणपत्र सबूतके तौरपर उस समय स्वीकार किया गया जब प्रार्थने यह स्वीकार किया कि यह तथाकथित विवाह ऐसा विवाह है जिसे सामान्यतः बहुपत्नीक विवाह कहते हैं। दूसरे शब्दोंमें, प्रार्थी बाई मरियमके साथ अपने वैवाहिक सम्बन्ध रखते हुए अन्य स्त्रियोंसे भी वैसे ही विवाह कर सकनेको स्वतन्त्र था। तथ्य यह है कि उसने वैसा नहीं किया है, और उभय पक्षोंके बीच विवादका प्रश्न यहींतक सीमित हो गया कि 'अधिनियमके खण्ड ४ (इ) में पत्नी' शब्दका क्या अर्थ है '; क्या इसका अर्थ है इस देशके कानूनोंकी रू से वैध माने जानेवाले विवाहसे विवाहिता पत्नी; अथवा इस शब्दका अर्थ इतना व्यापक करना चाहिए कि इसमें वह तथाकथित पत्नी भी शामिल की जा सके जिसका विवाह बहुपत्नीक प्रथाको मान्य करनेवाले रिवाजके अनुसार हुआ है ? इस देशकी अदालतोंने तथाकथित मुस्लिम विवाहोंको वैध विवाह माननेसे सदैव इनकार किया है । यद्यपि केप उपनिवेशके सन् १८६० के अधिनियम १६ द्वारा ऐसी व्यवस्था की गई थी कि विवाह-अधिकारी ऐसे विवाहोंको पुन: सम्पन्न कराकर उन्हें वैधता प्रदान कर सकते थे, किन्तु जबतक इस प्रकार उन्हें पुनः सम्पन्न न कराया जाये तबतक वे वैध विवाहोंकी श्रेणीमें नहीं आते। यह स्पष्ट है कि इस मामले में विवाहको इस प्रकार सम्पन्न नहीं किया गया है, और ऐसा कोई बयान भी नहीं दिया गया है जिससे इस आशयका कोई इरादा जाहिर होता हो कि बाई मरियमको उतरनेकी अनुमति दे देनेपर विवाहको पुनः सम्पन्न कराया जायेगा । उक्त कानूनके परिणाम स्वरूप ही मजिस्ट्रेट द्वारा निर्णीत मामलेपर तथा उद्धृत किये इसी प्रकारके अन्य मामलोंपर निर्णय किये गये थे । किसी प्रवासीके साथ उसकी पत्नीको भी देशमें आने देनेका उद्देश्य निस्सन्देह पति और पत्नीके वे पारस्परिक घनिष्ठ वैध सम्बन्ध हैं जिनके कारण वे कानूनको दृष्टिसे बहुतसे कामोंमें परस्पर भागीदार हैं, और अदालत द्वारा कानूनी सम्बन्ध विच्छेद न हो जाये तबतक पति अपनी