पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/५९८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२४.
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मयको

विचार मुझे ढाढस देता है और सर्वाधिक अन्धकारपूर्ण क्षणों में यही विचार आपको भी ढाढस दे ।

आप सबको हम दोनोंकी ओरसे प्यार ।

आपका हृदयसे,

मो० क० गांधी

गांधीजी के स्वाक्षरों में मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४४१७) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य : ए० एच० वेस्ट

४२४. पत्र : छगनलाल गांधीको

'अरबिया' स्टीमरपर

पौष सुदी ७, बुधवार, [ दिसम्बर २३, १९१४]

चि० छगनलाल,

ईश्वरकी लीला विचित्र है। मैं अप्रत्याशित रूपसे और सहसा ही लन्दन छोड़ने में समर्थ हो सका हूँ । अब देश पहुँच सकूँगा या नहीं यह देखना अभी बाकी है। जबतक बम्बई नहीं पहुँच जाता देश पहुँचनेकी बातमें सन्देह होता रहेगा। बहुत बार निराश होना पड़ा है। हम दोनोंकी तबीयत अबतक तो ठीक रही है। खूब सँभाल रखते हैं। देखना है, मुझमें पहले जैसी ताकत लौटी है या नहीं। हमारा काम इंग्लैंडसे लिये हुए भोजनपर चल रहा है। दो भाग केलेका आटा और एक भाग घी लेकर हमने विस्कुट तथा रोटी बनाई है। इन्हींके साथ पानीमें भीगे हुए सूखे मेवे लेते हैं। पका हुआ फल स्टीमरसे लेते हैं। पका केला आना बन्द हो गया है; इसलिए वे अधपके केले आँचमें पका कर हमें देते हैं। साथमें मूंगफली, खजूर आदि ले रखे हैं। दूसरे दर्जेका टिकट है। तीसरा दर्जा अर्थात् डेक इस [ जहाज ] में नहीं है। भीड़ बहुत है । डेकपर [ घूमने- फिरनेकी] जगह नहीं है। ग्यारह बारह जनवरी तक बम्बई पहुँचना चाहिए ।

स्टीमरपर बंगाली भाषाका अभ्यास करता हूँ। सर्दी होनेके कारण अबतक बहुत नहीं पढ़ पाया हूँ।

श्री कैलेनबैकके लिए बहुत प्रयत्न किये जा रहे हैं। उन्हें स्वीकृति मिली तो वे तुरन्त आ जायेंगे।

गांधीजीके स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ६०९८) की फोटो-नकलसे ।