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पत्र: ए० एच० वेस्टको

मेरी पत्नीकी बीमारीके दिनोंमें हम दोनोंका बड़ा खयाल रखा। हम लोग अपरिचित व्यक्तियों की भाँति इंग्लैंड आये थे, परन्तु शीघ्र ही हमें अनेक मित्र प्राप्त हो गये । यदि लोग अपने-आप भारतीयों के प्रति इतनी ममता दिखाते हैं तो इंग्लैंड और भारतके पारस्परिक सम्बन्धोंमें कोई-न-कोई अच्छाई जरूर है।'

हमारा सौभाग्य है कि हमें अनेक ऐसे मित्र मिले, जिन्होंने हमारी सहायता की है और हमारा उत्साह बढ़ाया । हम आशा करते हैं और ईश्वरसे प्रार्थना करते हैं कि हम अपनी इस प्रशंसाके अनुरूप अपने कर्त्तव्योंका पालन करते रहें और इस सभाने जो प्रेमभाव प्रदर्शित किया है तथा आफ्रिकासे विदा होते समय हमारे सम्मानमें जो समारोह वहाँ किया गया था, हम उस सबके योग्य बने । आशा है कि हमारे अनेक कृपालु मित्रोंसे हमारी यह विदाई अन्तिम विदाई नहीं है।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया, २५-१२-१९१४ और इंडियन ओपिनियन, २७-१-१९१५


४२३. पत्र : ए० एच० वेस्टको

पी० ऐंड ओ० एस० एन० को०,

एस० एस०,

दिसम्बर २३, १९१४

प्रिय वेस्ट,

मैं अब पूरी तरह थक गया हूँ, किन्तु बड़े दिनका त्यौहार निकट आनेके कारण मैं आपको अपने स्नेहपूर्ण विचार भेजे बिना नहीं रह सकता। हम अचानक और जरा जल्दी ही रवाना हो गय । तूफानी मौसमको देखते हुए हमारा स्वास्थ्य ठीक चल रहा है। स्वास्थ्य सुधार होनेपर आशा करता हूँ कि मैं 'इंडियन ओपिनियन 'के लिए फिरसे लिखना शुरू कर दूंगा । कृपया कुमारी स्मिथको उनकी माताके निधनपर समवेदनाका सन्देश भेज दीजिए।

मुझे भारत जाते-जाते इतनी बार रुक जाना पड़ा है कि एकाएक मनको विश्वास नहीं होता कि मैं भारत जानेवाले जहाजमें बैठा हूँ। और मेरी समझ में ही नहीं आता कि वहाँ पहुँचकर मुझे स्वयं क्या करना होगा ? फिर भी हे सदय प्रकाश, घिरे हुए अन्धकारमें मुझे रास्ता दिखा; मुझे आगे ले चल' यही



१. इसके बादका अंश अमृत बाजार पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के आधारपर है ।