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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सहायक दल (एम्बुलेंस कोर ) का संघटन हुआ था, तब मुझे इस बातको देखकर बहुत प्रसन्नता हुई थी कि बहुतसे विद्यार्थी तथा अन्य लोग सामने आये और उन्होंने खुशीसे अपनी-अपनी सेवाएँ अर्पित कीं। कर्नल कामताप्रसाद, श्री तर्खड़ और श्री परीख जैसे व्यक्तियोंसे नेटलेके अस्पतालमें चपरासियोंकी हैसियतसे काम करनेकी कभी आशा नहीं की जा सकती थी परन्तु उन्होंने उसे प्रसन्नतापूर्वक किया। इस प्रकार भारतीयोंने यह प्रमाणित कर दिया है कि यदि हमारे स्वत्वों और अधिकारोंको मान्यता प्रदान की जाती रहे तो हम अपना कर्त्तव्य-पालन करनेमें सक्षम हैं। (हर्ष-ध्वनि) । सेवा दलको गठित करनेका सम्पूर्ण विचार इसीलिए उत्पन्न हुआ था कि मुझे ऐसा लगा कि भारतीयोंके दिलोंमें साम्राज्यके संकटके अवसरपर सहायता करनेकी जो इच्छा उत्पन्न हुई उसे फलित करनेका कोई मार्ग निकलना ही चाहिये । ( हर्ष-ध्वनि ) । श्री गांधीने कहा कि श्री रॉबर्ट्स, जिन्होंने हमारे द्वारा की जानेवाली सेवाओंकी कद्र की है, हमारे धन्यवादके पात्र हैं। मैंने परमात्मासे प्रार्थना करते हुए मनन किया कि इस संकट-कालमें भारतीय किस प्रकारकी सहायता कर सकते हैं और इस प्रार्थनाके बाद ही सेवा-दलका प्रादुर्भाव हुआ । वैसे मुझे दुःख है कि मैं इस सेवामें भाग न ले पाऊँगा। मैंने बहुत चाहा कि श्री रॉबर्ट्स मुझे भी कोई काम सौंप देते परन्तु वह मेरे स्वास्थ्यके कारण सम्भव न हो सका और डॉक्टर अपने निर्णयपर कायम रहे। मैंने दलसे इस्तीफा नहीं दिया है। यदि अपनी मातृभूमिमें मेरा स्वास्थ्य सुधर गया और लड़ाई जारी रही, तो मेरा इरादा बुलावा मिलते ही वापस आ जानेका है।' (हर्ष-ध्वनि) । दक्षिण आफ्रिकामें जो काम मैंने किया है उसे करना मेरा धर्म ही था, उसका श्रेय लेनेकी कोई बात नहीं है। भारत पहुँचनेपर मेरी यही कामना रहेगी कि जो कर्त्तव्य सामने आता जाये उसे निबाहता जाऊँ। में लगभग २५ वर्षसे अपने देशसे बाहर हूँ। मेरे मित्र और मेरे गुरु श्री गोखलेने मुझे सावधान कर दिया कि [ भारतमें अभी ] भारतीय प्रश्नोंपर जबान न खोलना, क्योंकि भारत तुम्हारे लिए अभी विदेश ही है। (हँसी) । परन्तु मेरे मनमें जिस भारतकी तसवीर है वह भारत संसार में अपना सानी नहीं रखता। मेरी कल्पनाके भारतमें बहुत ऊँवे दरजेका आध्यात्मिक भण्डार मौजूद है। मैं इस बातका स्वप्न देख रहा हूँ और आशा करता हूँ कि भारत और इंग्लैंडके ऐसे सम्बन्ध होंगे कि उनसे समस्त संसारको आध्यात्मिक सन्तोष एवं उत्थानका मार्ग मिल सकेगा। अपना भाषण समाप्त करने के पूर्व में श्रीमती सेसिल रॉबर्ट्सको धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता। उन्होंने मेरी तथा

१. अमृत बाजार पत्रिकाने जो विवरण प्रकाशित किया था, उसमें लिखा था कि गांधीजीने अपने भाषण में कहा “ आशा करता हूँ कि यदि वापस आया और यदि तबतक युद्ध जारी रहा तो मैं अस्पतालों में सेवा-शुश्रूषा और परिचर्या करनेवाले के एक चपरासीकी हैसियतसे काम करनेको तैयार रहूँगा। ”

२. अमृत बाजार पत्रिका में प्रकाशित विवरण इस प्रकार है-मेरा विश्वास है कि भारत वह देश है जहाँ बड़े से बड़ा आध्यात्मिक भण्डार मौजूद है कि जिसके द्वारा समस्त संसारको राहत मिल सकती है और जिसकी बदौलत वह ऊँचा उठ सकता है। हम सब भारत और ब्रिटेनके बीचके सम्बन्धको सुदृढ़ बनानेकी चेष्टा करें और उसका रास्ता यह है कि एकमें जो-कुछ सबसे सुन्दर हो वह दूसरेको दे ।