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४२१. भेंट : रायटरके प्रतिनिधिको'

लन्दन

दिसम्बर १८, १९१४

रायटरके प्रतिनिधिसे एक भेंटके दौरान भारतीय नेताने जोर देकर कहा कि दक्षिण आफ्रिकामें जो समझौता हुआ है वह उन भारतीयों के लिए अत्यन्त प्रसन्नताकी बात है जो महान् संकट कालमें सरकारका साथ दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि जनरल बोथा और जनरल स्मट्सके साथ मेरी जो अन्तिम मुलाकातें हुईं, मेरे मनमें उनकी बड़ी ही मीठी यादगार हैं।

श्री गांधीने संघ सरकारकी इस बातके लिए सराहना की कि उसने भारतीयोंकी भावनाओंको, यहाँ तक कि छोटे-छोटे मामलोंमें भी, ध्यानमें रखा, और मुझे खुशी है कि में भारतमें यह कह सकूँगा।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, २३-१२-१९१४


४२२. भाषण : लन्दनके विदाई समारोह में

[ लन्दन

दिसम्बर १८, १९१४]

श्री गांधीके, व्याख्यान देनेके लिए खड़े होते ही, श्रोताओंने करतल ध्वनि की। उन्होंने अपने भाषण में कहा हम दोनों -- मैं और मेरी पत्नी- --भारत लौट रहे हैं। हमारा काम पूरा नहीं हो पाया और हमारा स्वास्थ्य भी गिर गया है परन्तु हम आशापूर्ण भाषाका ही प्रयोग करना चाहते हैं। श्री गांधीने यह भी कहा कि यद्यपि दो-दो डॉक्टरोंने काम करनेकी मनाही की है फिर भी मेरा खयाल है कि यदि अब भी सेवाकार्य में हाथ बॅटानेकी अनुमति मिल जाये, तो उस कामसे ही मेरी कमजोरी जाती रहेगी। जब आहत

१. यह रायटरके एक खरीतेसे उद्धृत किया गया है।

२. वेस्टमिन्स्टर पैलेस होटल में गांधीजी और श्री कस्तूरबाको विदाई-भोज दिया गया । चार्ल्स रॉबर्ट्स, सर हेनरी कॉटन, श्री और श्रीमती जे० एच० पोलक, कुमारी एफ० डब्ल्यू० विंटरबॉटम उपस्थित थे । अध्यक्षका आसन श्री जे० एम० परीखने ग्रहण किया था। सर हेनरी कॉटनके भाषणके पश्चात् श्री जे० एम० परीख, श्री सी० रॉबर्ट्स और श्रीमती आलिव ग्राइनरके भाषण हुए थे। गांधीजीने उत्तर दिया था। अमृत बाजार पत्रिकाके लन्दन-स्थित संवाददाताका जो विवरण इंडियन ओपिनियन, (२७-१-१९१५) में प्रकाशित हुआ था। उस विवरण के साथ इस विवरणका मिलान कर लिया गया है।