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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री ऐन्ड्रयूज़के पत्रसे तो ऐसा लगता था कि खर्च गुरुदेव उठायेंगे। परन्तु तुमको उसकी चर्चा नहीं करनी है। वे खर्चका भार वहन करें तो ठीक और न करें तो भी ठीक।

जहाँतक बन पड़े सब चीजें अपने हाथसे करना । जो न हो सके तो उसके बिना गुजारा करनेकी आदत डालना।

हम खेती और मेहनत-मजूरीसे अपना निर्वाह करना सीख जायें तो सब कुछ कमा लिया और सब कुछ सीख लिया। मुझे भी यही सीखना है। लेकिन मैं तो कदाचित् बिना सीखे ही प्राण-त्याग करूंगा। तुम्हारे सम्बन्धमें वैसा नहीं होना चाहिए।

वहाँ यदि गुरुदेवको सुभीता न हो और जगहका अभाव हो तो उनसे तम्बूमें रहनेकी अथवा अन्य कोई व्यवस्था किये जानेकी मांग करना।

मुझे यह तो निश्चय हो गया है कि फिलहाल फीनिक्सके समान उच्च आदर्शों तौर-तरीकोंवाली कोई अन्य संस्था दुनियामें नहीं है। यह अच्छी है कि तुम्हारी भी वही धारणा है। मेरा स्वास्थ्य अभी सुधरा नहीं है, तिसपर कलसे बाको तीव्र रक्तस्राव हो रहा है। नहीं जानता कि भगवान्की क्या इच्छा है? बा बिस्तर- पर है और मैं जबरदस्ती उठ खड़ा हुआ हूँ। फिर भी तुम सब निश्चित रहना ।

मेरी खुराकमें वनस्पति-क्षारकी कमी होनेके कारण डॉक्टर एलिन्सनने कन्द-मूल तथा हरी सब्जियाँ खानेकी सलाह दी है। इसीसे [ इस ] भयंकर स्थिति में उनका भी प्रयोग कर रहा हूँ। मेरी खुराक यह है : प्रातःकाल सूप लेता हूँ, जिसमें वहाँसे लाये हुए दो-तीन चम्मच सूखे केले [ का पाउडर ] और मूंगफली होती है, टमाटर तथा एक चम्मच तेल भी डालता हूँ। दोपहरको एक छोटी गाजर, कच्चा छोटा आधा शलजम तथा गेहूँ अथवा केलेके आटेके बने हुए आठ बिस्कुट उबालकर खाता हूँ । कभी-कभी गाजर और शलजमके स्थानपर कच्ची बन्दगोभीके कुचले हुए दो पत्ते लेता हूँ। शामको दो चम्मच उबले हुए चावल, उपर्युक्त मात्रामें हरा शाक अथवा पानीमें भीगे हुए अंजीर और साथमें केला तथा गेहूँके आटेकी बनी रोटीका छोटा टुकड़ा लेता हूँ। फिलहाल तो यह दिनचर्या है। [ धीरे-धीरे ] पके भोजनसे कच्चेपर और गेहूँसे मूंगफली आदिपर आ जानेका इरादा है। सवेरे दो सेव लेता हूँ । हरी सब्जियाँ खाते हुए अब लगभग एक महीना हो गया होगा। उसमें कुछ नुकसान तो दिखाई नहीं दिया। तुम कहा करते थे कि हरा-शाक खाया जा सकता है लेकिन मुझे विश्वास नहीं होता था। यहाँ बहुत-से लोग हरी सब्जी खाते जान पड़ते हैं। इसमें बहुत-सी बातें आ जाती हैं। लेकिन वे सब अभी तो नहीं लिखीं जा सकतीं, फिर कभी लिखूंगा। दूध-घीको त्यागनेका प्रण मैंने यहीं लिया है। डॉक्टरोंने बहुत जोर लगाया और मुझे लगा कि कहीं लड़खड़ा न जाऊँ इस कारण [ यह प्रण ] लिया है। अब मैं तो यह वस्तुएँ इस जन्ममें कभी नहीं खाऊँगा। अन्य व्रत वहाँ लूंगा। इस बीच प्रसंगवश यहीं लेने पड़े तो कह नहीं सकता।

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ६०९७) की फोटो-नकलसे; और गांधीजीनी साधनासे भी।

१. दक्षिण आफ्रिका।