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४१७. पत्र : मगनलाल गांधीको

मार्गशीर्ष वदी २ [दिसम्बर ४, १९१४]

चि० मगनलाल,

मैं अभी बिस्तरेमें पड़ा हुआ हूँ। तुम्हें एक लम्बा पत्र लिखना आरम्भ किया है। जब पूरा हो तभी ठीक। मेरी चिन्ता नहीं करनी है। मुझे श्री ऐन्ड्रयूजका बहुत मधुर पत्र मिला है। उनका यह कहना है कि गुरुदेव भी तुम सबको शान्तिनिकेतन में रखकर बहुत खुश होंगे। वे लिखते हैं कि तुम्हारे जानेसे वहाँ रहनेवाले शिष्यों में [ अभी भी ] जो थोड़ा-सा जातिभेद है वह खत्म हो जायेगा और कुल मिलाकर शान्ति- निकेतनको लाभ ही होगा। ऐसा हो जाये, यह तुम सबके हाथ में है। यदि फीनिक्स के समस्त आदर्शोंका पालन किया गया तो [ हमारे बारेमें ] गुरुदेवकी धारणाएँ खरी उतरेंगी । तुम सब सेवा करना, करवाना नहीं । खेतीको न भूलना। अपने बोये हुए वृक्षोंका उपयोग हम नहीं कर सकेंगे, इस विचारको मनमें न आने देना । सब लोगोंके उठनसे पहले उठना । अपना भोजन तो स्वयं बनाना ही और यदि हो सके तो [ वहाँ रहनेवाले ] सब लोगोंका भोजन बनानेका काम भी अपने हाथमें ले लेना । गुरुदेवके प्रति सम्मानकी भावनासे और तुम सबको प्रोत्साहन देने के लिए मैंने बिस्तर में पड़े-पड़े बँगला सीखना शुरू कर दिया है। श्रीमती मूरत कृत व्याकरण तथा बॅगला बाल-पुस्तक पूरी कर ली है। आज पाँच दिन हो गये हैं। अभ्यास सोमवारको शुरू किया था । आज शुक्रवार है। मुझे लगता है कि गुजरातीसे बंगला सीखना अधिक आसान है। तुम सब बॅगला सीख लेना । इसकी [ वर्णमाला ] भी सहल है। गुजराती और तमिलका अभ्यास जारी रहना चाहिए। संस्कृत तो है ही।

तुम्हारे भोजनादिका खर्च गुरुदेव उठा रहे हैं। तमिलके [अभ्यासके] लिए डॉक्टरसे भाई राजङ्गमको माँग लेना । डॉक्टरका कहना है कि उनके पुत्र वहाँ हैं । तुम्हारा उनके साथ पत्र व्यवहार चल रहा होगा। मगनभाईके पुत्रको बुलवा भेजना। बाकी फिर। यह पत्र सबके लिए है। बा तुम सबसे मिलने के लिए आतुर है। उसकी सेवाकी तुलना नहीं की जा सकती।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजी के स्वाक्षरों में मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५६५५) से ।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी