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पत्र: ए० एच० वेस्टको५४७

मैं यहाँ भी इतना व्यस्त रहता हूँ कि मैंने यह पत्र तीन किस्तों में लिखा है। पिछले हफ्ते शुरू किया था। उसके बाद कल हाथमें लिया और आज [ कार्तिक वद ] बारहवें दिन पूरा किया है।

अन्य समाचार आपको दूसरे पत्रसे मिलेंगे। भाई सोराबजी घायलोंकी सेवा- सुश्रूषामें हैं।

'मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ५६५७) तथा (जी० एन० २६५९) की फोटो-नकलसे भी।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी

४१५. पत्र : ए० एच० वेस्टको

लन्दन, एस० डब्ल्यू ०

नवम्बर २०, १९१४

प्रिय वेस्ट,

महीनों बाद तुम्हारा बड़ा प्यारा पत्र मिला। तुम सब लोग लिखते हो कि मैंने अपने समाचार नहीं लिखे। यह विचित्र बात है। वास्तवमें एक भी डाक ऐसी नहीं गई जिससे मैंने या मेरे बदले सोराबजीने किसी-न-किसीको फीनिक्समें पत्र नहीं भेजा हो। इसीलिए जाहिर है कि मेरे सभी पत्र, या उनमें से कुछ रास्तेमें गुम हो गये हैं।

काश कि तुम्हारा अनुमान ठीक होता और मैं अपने घायल सिपाहियोंके बीच काम कर रहा होता । सेवादलके अधिकांश सदस्य जरूर नेटलेमें ऐसा काम कर रहे हैं। जब अनि जत्था गया, मैं बिस्तरपर पड़ा था। मेरी उपस्थिति वैसे भी इसलिए जरूरी थी कि पर्याप्त संख्या में लोगोंको इकट्ठा किया जा सके। खैर; बादमें मेरे जानेकी बात थी परन्तु अब मेरे रास्ते में अप्रत्याशित कठिनाइयाँ डाली जा रही हैं और मुझे नेटले या अन्य किसी भी ऐसे अस्पतालमें नहीं जाने दिया जा रहा है, जहाँ हमारे घायल सिपाही हैं। क्योंकि अधिकारियोंको भय है कि मैं कहीं शरारत न करूं । वैसे रोकनेका बनावटी कारण खराब स्वास्थ्य बताया जाता है। हो सकता है कि मेरा ही अन्दाज बिलकुल गलत हो; कुछ भी हो मैंने भारत उपमन्त्री श्री रॉबर्ट्सके सामने सारी बातें रख दी हैं और शायद शीघ्र ही मुझे कोई सूचना मिल जायेगी।

इस प्रकार, तुम देखोगे कि मैं अभीतक श्रीमती गांधी या श्री कैलेनबैक के साथ ही बना हुआ हूँ। हम सब अब श्री गणदेवियाकी छाया में रह रहे हैं। जैसा तुम जानते हो वे सेवादलके सचिव हैं। वे भारतीय विद्यार्थियों के एक बोडिंग हाउसके मालिक हैं। उन्होंने उसमें एक बहुत अच्छा कमरा दे दिया है।

१. नवम्बर १५, १९१४ ।