पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 12.pdf/५८६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५४६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए मैं तैयार नहीं हूँ। ऐसा करनेकी मेरी हिम्मत न हुई। उसी हिम्मतको पानेके लिए देश जाता हूँ। देशमें वैसा अवसर है, यहाँ नहीं। और यहाँ ऐसा कर सकनेके लिए मुझे लाख गुना अधिक बलवान आत्माकी आवश्यकता है। तब मेरा दूसरा कर्त्तव्य क्या है ? रोती हुई बहनों, पत्नियों और माँओंको छोड़कर भाई, पति और बच्चे जाने- अनजाने मरनेके लिए निकल पड़े हैं। हजारों तो कट भी गये। फिर मैं चैनसे बैठा रहूँ और अन्न खाऊँ ? गीता में कहा गया है कि यज्ञ किये बिना अन्न खानेवाला व्यक्ति चोर माना जाता है। वर्तमान परिस्थितिमें यज्ञ आत्म-बलिदान था और है । तब मैंने देखा कि मुझे भी यज्ञ करना चाहिए। मैं स्वयं बन्दूक तो नहीं चला सकता लेकिन घायलोंकी सार-सँभाल तो कर सकता हूँ। उनमें तो मुझे जर्मनोंकी सार-सँभाल करनेका अवसर भी मिल सकता है। मैं यह काम निष्पक्ष-भावसे कर सकता हूँ । उससे दया- भावनाको आघात नहीं पहुँचता । इससे मैंने अपनी सेवाएँ अर्पित करनेका निश्चय किया। मेरा अपना निजी महत्त्व कुछ नहीं है। अब मैं सामाजिक महत्त्वका व्यक्ति हो गया हूँ। मुझे दूसरोंसे भी बात करनी चाहिए। दूसरे तो लड़नेवाले हैं, और युद्धके विरुद्ध नहीं हैं। मुझे उनके लिए बिना शर्तका पत्र लिखना चाहिए, सो मैंने लिखा । उसमें तुमने यह वाक्य भी देखा होगा कि " 'हम जिस कामके योग्य [सिद्ध ] हों वह काम हम बिना किसी शर्तके करेंगे।" यह बात सब जानते हैं कि मैं युद्धके योग्य नहीं हूँ इसलिए मुझे लड़नेका काम दिया ही नहीं जा सकता। "बिना शर्त" [ शब्दों ] का खुलासा यह है । लेकिन मुख्य बात तो यह है कि मैं रोगियोंकी देखभाल कर भी सकूँगा या नहीं। उस कारण मैंने यह बात बहुत विस्तारसे समझाई है। इसपर भी सम्भव है आप समझ न सकें। [ ऐसा हो] तो मुझे फिर लिखना । समय-समयपर उत्तर देता रहूँगा। धीरे-धीरे समझ जायेंगे। मैंने तो बहुत विचारपूर्वक कदम उठाया है। मुझसे जब वहाँ प्रश्न पूछे जाते तब मैं कहता कि मुझसे अब एम्बुलेन्सका काम भी न हो सकेगा। आपने देखा है कि मेरी स्थिति अभी तक पहले जैसी ही है। यह बात ठीक वैसी ही है जैसे मुझसे साँप नहीं मारा जाता। लेकिन जबतक मैं कायरकी भाँति साँपसे डरता रहूँगा तबतक मैं यदि उसे मारूंगा नहीं तो पकड़कर कहीं दूर अवश्य छोड़ आऊँगा । यह भी हिंसा है। और दूर ले जाते समय यदि वह संघर्ष करे तो उसे छड़ीसे इतना दबाऊँ कि उसके रक्त बहने लगे या छड़ीसे कुचला जाकर वह मर जाये तो भी मुझसे साँप मारा नहीं जाता। यह बात तो [कायम ] रहती है और रहनी भी चाहिए। जबतक निर्भयताका गुण मुझमें पूरी तरहसे नहीं आता तबतक मैं पूर्ण सत्याग्रही नहीं माना जा सकता। मैं इस निर्भयताको प्राप्त करनेका अथक प्रयत्न कर रहा हूँ और करता रहूँगा। इस दिशा में मुझे सफलता मिलने तक आप सब मेरी भीरुताको सहन करना। आप सब लोग निर्भय बननेके लिए प्रयत्नशील रहना।

यह पत्र आप सब पढ़ लें और भाई मेढको पढ़नके लिए भेज दें। बादमें यह पत्र अथवा इसकी प्रति चि० मगनलालको भेज दी जाये ताकि वह भी [ मेरी बातोंका ] सार समझ जाये।

१. "एक गोपनीय गश्ती-पत्र", पृष्ठ ५१८ ।